बंगलादेश में तख्तापलट के बाद जिस तरीके से हिन्दू समुदाय पर हमले हो रहे हैं उससे स्थिति बेहद जटिल हाे चुकी है। बंगलादेश में शेख हसीना सरकार के पतन और उनके भारत में शरण लेने के बाद उन्मादी भीड़ ने िहन्दू मंदिरों को निशाना बनाया। हिन्दुओं के घरों को आग लगाई गई। लगातार हिंसा, बर्बरता और सामाजिक उत्पीड़न का शिकार हो रहे अल्पसंख्यकों की अगली कड़ी में इस्कॉन से जुड़े धर्मगुरु चिन्मय कृष्णदास की गिरफ्तारी और उनकी जमानत याचिका खारिज होने के बाद उनके वकील की निर्मम हत्या इस्लामी कट्टरवाद की पराकाष्ठा को ही दर्शाती है। बंगलादेश में िहन्दुओं की आबादी लगभग 9 फीसदी है। अपनी सुरक्षा की गुहार लगाने के बावजूद यूनुस के नेतृत्व में बनी अंतरिम सरकार किसी भी तरह से उन्हें सुरक्षा की गारंटी देने को तैयार नहीं है। हिन्दू समुदाय पर हमलों से भारत काफी चिंतित है और भारत ने लगातार बंगलादेश से विरोध जताते हुए अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की मांग की है। इसके बावजूद वहां की सरकार कार्रवाई करने की बजाय बार-बार हिमाकत कर रही है।
भारत में भी इस मुद्दे पर काफी आक्रोश है। भारत के िहन्दू संगठन और संत समाज जगह-जगह प्रदर्शन कर रहे हैं। बंगलादेश की िहमाकत तो देखिये उसने ढाका स्थित भारतीय राजदूत को तलब कर भारत की प्रतिक्रिया पर िवरोध जताया है। ऐसा लगता है कि यूनुस सरकार ने बंगलादेश की सेनाओं को अल्पसंख्यकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों पर नकेल कसने का अधिकार दे दिया है। चिन्मय दास के खिलाफ मामला हिंदुओं के एक ऐसे समूह से संबंधित है, जिन्होंने कथित तौर पर भगवा झंडे फहराए थे और उन्हें बंगलादेश के राष्ट्रीय ध्वज से ऊंचा रखा था। राजद्रोह का मामला दायर करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता को बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी से निष्कासित कर दिया गया है, जिससे यह संदेह पैदा हो गया है कि इस मामले पर कार्रवाई नामुनासिब थी। ऐसे तनावपूर्ण माहौल में, एक वरिष्ठ धार्मिक व्यक्ति की संक्षिप्त गिरफ्तारी और हिरासत सिर्फ सांप्रदायिक तनाव को ही भड़काएगी। कार्रवाइयों के साथ-साथ अदालतों के जरिए इस्कॉन समूह पर प्रतिबंध लगाने का कदम भी यूनुस सरकार की आलोचना को बढ़ावा दे रहा है। नई दिल्ली लगातार मुखर होकर बंगलादेश से अपने अल्पसंख्यकों की रक्षा करने और एक सम्मानित व्यक्ति के साथ इस किस्म के कठोर व्यवहार से बचने के लिए कहती रही है। हालांकि, मोदी सरकार के यूनुस शासन के साथ तनावपूर्ण संबंधों की वजह से इन आह्वानों को कोई खास तवज्जो नहीं मिली है। एक कड़ी प्रतिक्रिया में बंगलादेश के विदेश मंत्रालय ने भारत के बयानों पर ‘निराशा और दुख’ जाहिर किया और भारत पर हालात को ‘गलत तरीके से पेश करने’ का आरोप लगाया। बंगलादेश की सरकार ने दास के खिलाफ लगाए गए ‘विशिष्ट आरोपों’ का बचाव भी किया।
स्वतंत्रता के समय पूर्वी पाकिस्तान की हिन्दू आबादी लगभग 23 प्रतिशत थी जो अब घटकर केवल 9 प्रतिशत रह गई है। हिन्दू आबादी घटने का कारण इस्लामिक देश में रहने की असुरक्षा की भावना थी। बंगलादेेश का इतिहास बताता है कि जब-जब वहां सेना सत्ता में आई है, तो वहां कट्टरपंथियों को संरक्षण मिला है। यह विडम्बना ही है कि जिस बंगलादेश को स्वतंत्र कराने में भारत की बड़ी भूमिका रही है, आज वह देश ही भारत के विरोध में खड़ा है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि बंगलादेश में कट्टरपंथी ताकतें अपना वर्चस्व कायम कर चुकी हैं। अगर कट्टरपंथियों को काबू नहीं किया गया तो बंगलादेश इस्लामी गढ़ बन जाएगा, जिससे पूर्वी भारत को खतरा उत्पन्न होगा। बंगलादेश के हिन्दू पलायन करके भारत का रुख कर सकते हैं।
अब सवाल यह है कि भारत के पास विकल्प क्या है? भारत प्रत्यक्ष रूप से हस्तक्षेप नहीं कर सकता। भारत के पास एकमात्र विकल्प यह है कि वह ढाका पर लोकतंत्र की बहाली के लिए दबाव बनाए। भारत सरकार को राजनीतिक और कूटनीतिक प्रयासों से बंगलादेश की अंतरिम सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वहां हिन्दुओं की सुरक्षा के लिए कदम उठाए जा सकें। अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों का दबाव ही काम आ सकता है। यह भी स्पष्ट है कि बंगलादेश में पाक समर्थित कट्टरपंथी संगठन भारत विरोधी माहौल बनाने में जुटे हुए हैं। इसलिए भारत को पड़ोसी देश बंगलादेश से सतर्क होकर द्विपक्षीय चैनल खुले रखने चाहिए और उसे इस बात का अहसास दिलाना चाहिए कि राजनीतिक परिवर्तन के बाद पनपा कट्टरवाद उसके िहत में नहीं है। उसे अपने देश के नागरिकों की सुरक्षा करनी चाहिए।