भारत और तंजानिया के बीच पारम्परिक रूप से घनिष्ठ मैत्रीपूर्ण और सहयोगात्मक संबंध रहे हैं। तंजानिया इस दशक के सबसे तेजी से बढ़ते अफ्रीकी देशों में से एक है और वह भारत-अफ्रीका संबंधों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। दार एस सलाम में भारतीय उच्चायोग नवम्बर 1961 से काम कर रहा है और जांजीबार में भारत का महावाणिज्य दूतावास अक्तूबर 1974 में स्थापित किया गया था। वर्तमान में तंजानिया में भारतीय मूल के 60,000 से अधिक लोग रहते हैं, उनमें से अनेक व्यापारी हैं और तंजानिया की अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को नियंत्रित करते हैं। तंजानिया में भारतीयों का लम्बा इतिहास रहा है जो गुजरातियों के आगमन से शुरू होता है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर तंजानिया दौरे पर हैं। जहां उन्होंने राष्ट्रपति हुसैन अली के साथ आईएनएस त्रिशूल पर आयोजित डैक रिसेप्शन में भाग लिया और बाद में भारतीय समुदाय के लोगों से मुलाकात की। भारत तंजानिया में 6 जल परियोजनाओं में शामिल है। जिनसे जांजीबार के 10 लाख लोगों को पीने का पानी उपलब्ध होगा। इस दौरान एस. जयशंकर और राष्ट्रपति हुसैन की मौजूदगी में जांजीबार में आईआईटी मद्रास का एक कैम्पस स्थापित करने के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए।
भारत के बाहर स्थापित होने वाला यह पहला परिसर होगा। यह समझौता दोनों देशों के बीच लम्बे समय से चली आ रही दोस्ती को दर्शाता है और भारत द्वारा पूरे अफ्रीका और दक्षिण में लोगों के बीच संबंध बनाने पर ध्यान केन्द्रित करता है। इस परिसर में पढ़ाई करने के लिए अन्य देशों के साथ-साथ भारतीय छात्रों को भी अप्लाई करने का मौका मिलेगा। भविष्य में उच्च प्रदर्शन करने वाले भारतीय विश्वविद्यालयों को अन्य देशों में परिसर स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। यह अनूठी साझेदारी आईआईटी मद्रास की शीर्ष रैंक वाली शैक्षिक विशेषज्ञता को अफ्रीका में एक प्रमुख गंतव्य पर लाएगी और इस क्षेत्र की अनिवार्य वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करेगी। शैक्षणिक कार्यक्रम, पाठ्यक्रम, विद्यार्थी चयन पहलू और शैक्षणिक विवरण का काम आईआईटी मद्रास द्वारा किए जाएंगे, जबकि पूंजी और परिचालन व्यय जांजीबार-तंजानिया सरकार द्वारा पूरा किया जाएगा। इस परिसर में दाखिला लेने वाले छात्रों को आईआईटी मद्रास की डिग्री प्रदान की जाएगी। अत्याधुनिक अंतःविषयी डिग्री से एक विविध समूह को आकर्षित करने की आशा है और इसमें तंजानिया और अन्य देशों के विद्यार्थी भी शामिल होंगे। आईआईटी परिसर की स्थापना से विश्व स्तर पर भारत की प्रतिष्ठा और इसके राजनयिक संबंधों में वृद्धि होगी और आईआईटी मद्रास की अन्तर्राष्ट्रीय पहचान का विस्तार होगा। इस अन्तर्राष्ट्रीय परिसर में विद्यार्थी और फैकल्टी की विविधता के कारण आईआईटी मद्रास की शिक्षा और अनुसंधान गुणवत्ता और बढ़ेगी। यह विश्व भर में अन्य शीर्ष रैंक वाले शैक्षणिक संस्थानों के साथ अनुसंधान सहयोग को गहरा करने के लिए काम करेगा।
विदेश मंत्री एस जयशंकर की तंजानिया यात्रा का एक बड़ा मकसद भी है। दरअसल हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते दखल पर नकेल कसने के लिए भारत लगातार रणनीतिक तैयारियां कर रहा है। इसके साथ ही भारत ईरान, ओमान के पोर्ट पर अपनी मौजूदगी बढ़ाने के साथ ही पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ संबंधों को मजबूत बना रहा है। भारत का युद्धपोत आईएनएस त्रिशूल भी इस समय तंजानिया में खड़ा है। यह आधुनिक हथियारों, सैंसर और कई भूमिका निभाने में सक्षम हैलीकाप्टरों के साथ चलता है। सन् 2016 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तंजानिया के शहर दार एस सलाम पहुंचे थे तो स्थानीय लोगों ने तिरंगा हाथों में लेकर उनका स्वागत किया था। परम्परा के तहत मोदी ने वहां दोस्ती का ड्रम भी बजाया था। इससे पहले 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी तंजानिया गए थे। तंजानिया भारत के लिए इसलिए भी खास है, क्योंकि अरब सागर से लगे होने के कारण इसका सामरिक महत्व है और त्रिशूल की मौजूदगी अपने आप में मायने रखती है। तंजानिया में प्राकृतिक गैस के विशाल भंडार मौजूद हैं। तंजानिया की तेल कम्पनी को खड़ा करने में भारत की विशेष भूमिका है। तंजानिया चाहता है कि भारत उसके गैस भंडारों के दोहन में सहयोग करे।
जिस तरह से भारत ईरान के चाबहार पोर्ट, ओमान के डुक्म पोर्ट पर अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है, उस हिसाब से पूर्वी अफ्रीकी देशों के साथ नजदीकी महत्वपूर्ण हो जाती है। हिंद महासागर में चीन के प्रभाव बढ़ाने की कोशिशों को देखते हुए यह जरूरी भी हो जाता है। समुद्री सुरक्षा को लेकर दोनों देशों के साझा हित हैं। समंदर के रास्ते ही डकैती, मादक पदार्थों की तस्करी, आतंकी गतिविधियों को अंजाम दिया जाता है। विदेशमंत्री एस जयशंकर की तंजानिया यात्रा से दोनों देशों के संबंधों के नए आयाम स्थापित होना तय है।