समाज में विभिन्न प्रकार की सामाजिक उथल-पुथल नजर आ रही है। रोजाना हमें कई तरह की घटनाएं देखने को मिलती हैं। इनमें से कई घटनाएं लैंगिक भेदभाव से जुड़ी हुई होती हैं। लैंगिक भेदभाव हमारे समाज में कोई नया नहीं है, लेकिन समस्या और भी बड़ी हो जाती है जब समाज में प्रतिष्ठा हासिल कर चुकी महिलाएं अपने उत्पीड़न की शिकायत करती हैं। समय के बदलाव के साथ-साथ भारतीय महिलाएं हर क्षेत्र में अपना मुकाम बना चुकी हैं। भारतीय महिलाओं ने क्रिकेट से लेकर एथलेटिक्स तक अपनी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अदम्य उपस्थिति दर्ज की है। लेकिन हमें उन चुनौतियों को स्वीकार करना चाहिए जिनका सामना करते हुए उन्होंने उपलब्धियां हासिल की हैं। हमारे समाज में लड़कों को अक्सर शारीरिक गतिविधियों, बाहरी कामों में भाग लेने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जबकि लड़कियों को ऐसी गतिविधियां करने से प्रतिबंधित किया जाता है। लड़कियों को आमतौर पर घर के बुजुर्गों द्वारा दिए गए निर्देशन का पालन करते हुए घर का काम करने और घर के अन्दर रहने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
हरियाणा, पंजाब ही नहीं दक्षिण भारतीय राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों से समाज की सीमाओं को पार कर महिलाएं देश का गौरव बढ़ा रही हैं। उन्हें भी बहुत सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। किसी भी अन्य क्षेत्र की तरह भारतीय खेल क्षेत्र भी हमारे समाज में मौजूद गहरी जड़ें जमा चुके पूर्वाग्रहों और लैंगिक असमानताओं से अछूता नहीं है। ऐसी कई बाधाएं हैं जो महिलाओं को उनकी क्षमता को पूरा अहसास करने से रोक रही हैं। खेलों में कदाचार से निपटने के मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट की न्यायाधीश हिमा कोहली ने उठाया है। उन्होंने खेल के माध्यम से महिला सशक्तिकरण विषय पर एक राष्ट्रीय सेमिनार को सम्बोधित करते हुए खेलों के माध्यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधारों का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ऐसी नीतियों में खेल के क्षेत्र में लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव और यौन उत्पीड़न को सम्बोधित करने के लिए मजबूत तंत्र स्थापित किया जाना चाहिए। खेल के क्षेत्र में महिलाएं सम्मान, भेदभाव और उत्पीड़न से सुरक्षा की हकदार हैं।
न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, “इन नीतियों में विभिन्न पहलुओं की जांच की जानी चाहिए, जिसमें समान अवसर सुनिश्चित करना, वित्तीय बैकअप प्रदान करना और खेल के क्षेत्र में किसी भी लिंग आधारित हिंसा, भेदभाव और उत्पीड़न की रिपोर्टिंग और निवारण के लिए तंत्र स्थापित करना शामिल है।” “इस तरह के कदाचार के मामलों की रिपोर्टिंग और समयबद्ध निवारण के लिए एक मजबूत तंत्र स्थापित करना जरूरी है। इसमें हेल्पलाइन स्थापित करना, शिकायतों की जांच के लिए स्वतंत्र वैधानिक समितियों की स्थापना करना और अपराधियों पर सख्त दंड लगाना शामिल है।” “एक सुरक्षित और समावेशी वातावरण बनाने से पूरे समाज को एक शक्तिशाली संदेश जाएगा कि खेल में महिलाएं सभी प्रकार के भेदभाव और उत्पीड़न से सम्मान, सम्मान और सुरक्षा की हकदार हैं । ” महिलाओं की आकांक्षाओं को सीमित करने वाली प्रतिगामी मानसिकता और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती दी जानी चाहिए और कहा कि मजबूत प्रणाली विकसित करना महत्वपूर्ण है जो महिला एथलीटों का समर्थन करती है. समान वेतन सुनिश्चित करती है और उन्हें वित्तीय बाधाओं के बिना अपने करियर को आगे बढ़ाने के अवसर प्रदान करती है।
हमें ऐसे वातावरण को बढ़ावा देना चाहिए जहां महिलाओं को अपने खेल के सपनों को आगे बढ़ाने और अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। हाल ही में जेंडर आधारित भेदभाव पर ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2022 में कुल 146 देशों की सूची में भारत 135वें पायदान पर है। यही नहीं वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (डब्लूईएफ) द्वारा जारी इस इंडेक्स के मुताबिक भारत दुनिया के अंतिम ग्यारह देशों में शामिल है जहां सबसे ज्यादा लैंगिक असमानता मौजूद है। दक्षिण एशिया में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों में भारत तीसरा देश है। भारत केवल अफगानिस्तान और पाकिस्तान से आगे है। लैंगिक असमानता के मामले में भारत अपने अन्य पड़ोसी देशों बांग्लादेश, नेपाल, म्यांमार, श्रीलंका, मालदीव और भूटान से भी काफी पीछे है। दुनिया के 146 देशों की लैंगिक असमानता आधार पर जारी यह रिपोर्ट महिलाओं की शिक्षा, राजनीति, आर्थिक अवसर, स्वास्थ्य जैसे अन्य क्षेत्रों में उनकी स्थिति के आधार पर तैयार की गई है। लैंगिक समानता को 0 से 100 स्केल पर स्कोर दिया गया है। वर्ल्ड इकोनामिक फोरम के मुताबिक दुनिया भर में मौजूदा लैंगिक असमानता को खत्म करने में 132 साल लग जाएंगे। अगर दक्षिण एशिया में मौजूदा असमानता की बात करें तो यहां इस भेदभाव को खत्म करने के लिए लगभग 197 साल का इंतजार करना होगा।
हमें प्रतिभाओं को घोषित करने वाले ऐसे तंत्र को बढ़ावा देने के लिए मजबूत बुनियादी ढांचे और विशेषज्ञों में निवेश करना चाहिए। खेल महासंघों की कमान खिलाड़ियों के हाथ में देनी चाहिए। हमें प्रतिगामी मानसिकता और सांस्कृतिक मानदंडों को चुनौती देनी चाहिए जो हमारी महिलाओं और लड़कियों की आकांक्षाओं को सीमित करते हों। अगर हम महिला खिलाड़ियों की शिकायतों का निवारण नहीं करते तो फिर कौन सी लड़की ऐसी चुनौतियों का सामना करने के लिए आगे आएगी। खेल महिलाओं के लिए आर्थिक सशक्तिकरण का बड़ा साधन हो सकते हैं, जब महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा मिले।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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