दादा-दादी, नाना-नानी, माता-पिता, पति-पत्नी, भाई-बहन या किसी भी प्रियजन की दुनिया से विदाई सचमुच बहुत असहनीय होती है। यह भारत देश है जहां प्रियजनों को हर खास मौके पर याद रखा जाता है। भारत का आध्यात्म और धर्म इतना महान है कि इन प्रियजनों के निमित पितृपक्ष अर्थात श्राद्ध यानि कि इनकी याद में तर्पण करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी जाती है। आचार्य और पंडित लोग आकर पूरे कुल और गौत्र के बारे में जानकारी एकत्र करते हुए आध्यात्म के हर पहलू को स्पष्ट करते हुए उनके व्यंजन तैयार करते हैं। आचार्य जी और पंडित जी उसी रूप में स्वीकार करने के बाद पूजे जाते हैं और फिर घर के सभी लोग प्रसाद के तौर पर इसे स्वीकार करते हैं। आज के युग में इन संस्कारों का महत्व बहुत ज्यादा है। जमाना टैक्नोलॉजी का है। यहां तक कि समय के अभाव में पूजा-पाठ भी हाई-फाई हो चुके हैं।
किसी के घर में वृद्ध माता-पिता को कमाऊ बच्चों ने टॉप की फ्लोर दे रखी है। माता-पिता अस्सी से ऊपर हैं। उन्हें आने-जाने में दिक्कत होती है। वे बच्चों से गुहार लगाते हैं कि हमें नीचे के फ्लोर पर रहने दो लेकिन उनकी बात नहीं मानी जाती। वे कल तक परिवार के रिश्तेदारों से अपना दु:ख-दर्द बांटते थे फिर कालोनी वालों से बांटा और अब हर किसी से अपनी बात कहते हैं तो सोशल मीडिया पर अनायास ही सवाल उठने लगे कि अगर जीवित मां-बाप की ही इच्छाओं का सम्मान किया जाए, उनकी हर बात मान ली जाए तो यह सबसे बड़ा सम्मान है। यही सबसे बड़ी पूजा होगी और सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि जिंदे जी माता-पिता का सम्मान संतान का कर्त्तव्य भी होना चाहिए। सोशल मीडिया पर कहा जा रहा है कि श्राद्धों में माता-पिता की पूजा करना कोई बुरी बात नहीं है परंतु बेहतर यही होगा कि माता-पिता के जीवित रहते उनका सम्मान और उनका मान रख लो इससे बड़ी कोई पूजा और इससे बड़ा कोई धर्म नहीं हो सकता। सोशल मीडिया पर ऐसी बातें जब वायरल होती हैं तो मन बहुत पीडि़त होता है। परंतु सच यही है और इंसान की फितरत भी यही है कि उसे यह सब झेलना पड़ता है। यह जानते हुए भी कि आज की पीढ़ी जब वृद्ध हो जायेगी तो उसे हर तरह का माहौल झेलना पड़ेगा। भारत जैसे देश में श्रवण कुमार जैसी संतान हुई, जिन्होंने अपने माता-पिता को तीर्थ यात्रा करवाते हुए अपने प्राण कुर्बान किए। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने क्या कुछ नहीं किया। लक्ष्मण ने भाई के लिए क्या कुछ नहीं किया। भीष्म पितामह ने अपने पिता की खुशी के लिए जिंदा जी सब कुछ किया और अविवाहित रहने की भीष्म प्रतिज्ञा निभाई।
सीनियर सिटीजन अर्थात वृद्धों का सम्मान करना और उनकी बात को मानना यह एक बहुत बड़ी बात है। पुराने बुजुर्ग पुराने सोने की तरह होते हैं इसीलिए ‘ओल्ड इज गोल्ड’ कहा गया है। हमारे वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के अनेक समारोह में हमारे पारिवारिक सदस्य नरेंद्र चंचल आते रहे हैं और जब वह मां की भेंटे गाया करते थे तो यही कहते थे और डंके की चोट पर कहते थे कि जो घर पर आपकी पूजनीय माता जी हैं उनका सम्मान करो उसके बाद तस्वीर में बैठी इस मां की जय माता की कहो लेकिन अपने जीवित माता-पिता का सम्मान कर लो तो सब कुछ मिल जायेगा। उनकी इस बात में बहुत वजन था। यह एक सच्ची आत्मा की आवाज थी लेकिन आप दिल पर हाथ रखकर कहिए कि चंचल भईया बिल्कुल सही कहते थे। मुझे भाभी जी कहकर यही कहना कि बच्चों को अपने माता-पिता का सम्मान एक संस्कार की तरह करना चाहिए और अगर माता-पिता के जाने के बाद उन्हें याद किया और सम्मान किया तो फिर इसका क्या फायदा।
खैर इसे एक गंभीर विषय मानकर हम आपके विवेक पर छोड़ रहे हैं लेकिन मैं एक सामाजिक मुद्दे पर और चर्चा करना चाहती हूं कि श्राद्धों के दिनों में कई लोग तर्पण कार्य के लिए मंदिर में जाते हैं, पवित्र सरोवरों के आसपास पूजा करते हैं, तो वहां पूजा सामग्री जो इस्तेमाल की जाती है पूजा के बाद उसे वहां से हटाकर साफ-सुथरे ढंग से विसर्जन की व्यवस्था नियमों के मुताबिक की जानी चाहिए। मंदिरों में और मंदिरों के आसपास यही नहीं तीर्थ स्थलों में भी हम पूजा के दौरान या श्राद्धों में ही तर्पण के दौरान पूजा सामग्री इधर-उधर पॉलिथीन में प्रयोग करने के बाद फेंक देते हैं, हमें इसके बारे में भी सोचना चाहिए। यह हमारे बुजुर्गों के सम्मान से जुड़ी है जिनके निमित हम श्राद्ध कर रहे होते हैं। घरों में राम-राम, राधे-राधे, जय माता दी अगर कहे जाए तो यह बड़ों का सम्मान ही है। बुजुर्गों को एक बार राम-राम कहने से ढेरों आशीर्वाद मिलते हैं। बुजुर्गों का चरण स्पर्श करने से स्वर्ग का सुख मिलता है। यह बात योग विशिष्ट में भगवान विष्णु ने कही है। माता-पिता का सम्मान सबसे बड़ी पूजा है यह बात भगवान राम ने अपने गुरु विश्वामित्र से और लक्ष्मण ने उर्मिला से कही थी। हम माता-पिता के सम्मान की बात कर रहे हैं, उनके श्राद्ध की बात कर रहे हैं और उनके ज्ञान की बात कर रहे हैं। बुजुर्गों का सम्मान ही सबसे बड़ा श्राद्ध और सबसे बड़ी पूजा है, जिसे जीवित रहते हुए निभाया जाना चाहिए।