फडणवीस की नई सरकार - Punjab Kesari
Girl in a jacket

फडणवीस की नई सरकार

महाराष्ट्र में भाजपानीत महायुति गठबन्धन की चौंकाने वाली विजय के बावजूद…

महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी नीत महायुति गठबन्धन की चौंकाने वाली विजय के बावजूद जिस प्रकार राज्य के मुख्यमन्त्री पद का नाम घोषित करने में देरी हुई उससे राजनैतिक क्षेत्रों में कई प्रकार की अफवाहें फैलीं मगर अन्ततः भाजपा के नेता और पूर्व मुख्यमन्त्री श्री देवेन्द्र फडणवीस के नेतृत्व में सरकार का गठन हो गया और गुरुवार को उन्होंने पद व गोपनीयता की शपथ भी ले ली। हालांकि शपथ ग्रहण समारोह सार्वजनिक रूप से मुम्बई के आजाद मैदान में सम्पन्न हुआ मगर 23 नवम्बर को चुनाव परिणाम घोषित होने के बाद महाराष्ट्रवासियों को इस दिन का 12 दिन तक इन्तजार करना पड़ा। महायुति में भाजपा के अलावा शिवसेना (शिन्दे) व राष्ट्रवादी कांग्रेस (अजित पवार) भी शामिल हैं। श्री फडणवीस के साथ दो उपमुख्यमन्त्रियों सर्वश्री एकनाथ शिन्दे व अजीत पवार ने भी शपथ लेकर राज्य के लोगों को यह सन्देश दिया है कि महायुति में किसी प्रकार का आपसी द्वन्द्व नहीं है मगर सरकार बनने में जो इतनी देरी हुई है उसका कोई न कोई तो सबब जरूर रहा होगा क्योंकि इन तीनों ही पार्टियों को चुनाव में अभूतपूर्व जीत हासिल हुई है।

भाजपा ने तो राज्य में पहली बार 288 सदस्यीय विधानसभा में 132 सीटें जीतकर जो हड़कम्प मचाया था वह अप्रत्याशित माना जा रहा था और विपक्षी दल इस जीत को आसानी से पचा नहीं पा रहे थे जिसकी वजह से उन्होंने चुनाव आयोग की भूमिका पर भी कई प्रकार के प्रश्नचिन्ह जड़ दिये थे। चुनाव आयोग से कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने भी शिकायतें की जिसका संज्ञान चुनाव आयोग ने लिया। मगर विगत महीने की 23 तारीख को घोषित चुनाव परिणामों को अब बदला नहीं जा सकता है। महाराष्ट्र की फडणवीस सरकार कई मायनों में राज्य की जनता का ध्यान खींचेगी। एक तो राज्य में विपक्षी गठबन्धन महाविकास अघाड़ी का लगभग सफाया जैसा हो गया है और महायुति को 234 सीटें प्राप्त हुई हैं। जनता का फैसला अति निर्णायक फैसला था जिसे विपक्षी दलों को भी स्वीकार करना चाहिए और आत्म विश्लेषण करना चाहिए लेकिन इसके साथ ही महायुति को भी यह विचार करना चाहिए अभूतपूर्व बहुमत के बावजूद जिस प्रकार शिवसेना के नेता व पूर्व मुख्यमन्त्री श्री एकनाथ शिन्दे को सरकार में शामिल करने की कसरतें हुई उसका प्रभाव आम जनता पर क्या पड़ेगा।

प्रचंड चुनावी जीत के बावजूद जिस प्रकार निवर्तमान मुख्यमन्त्री श्री एकनाथ शिन्दे की नाराजगी की खबरें फैली उससे जनता में यही सन्देश गया कि श्री शिन्दे को उपमुख्यमन्त्री बनने पर एेतराज था क्योंकि उनकी पिछली सरकार में श्री फडणवीस स्वयं उपमुख्यमन्त्री थे। यह भी सच है कि महाराष्ट्र में भाजपा के पैर जमाने वाली असली पार्टी शिवसेना ही रही है। हालांकि यह शिवसेना स्व. बाल ठाकरे की शिवसेना थी जिससे ढाई साल पहले अपना नाता तोड़कर श्री शिन्दे ने अपनी अलग शिवसेना बनाई थी और जिसकी बागडोर आजकल उनके पुत्र उद्धव ठाकरे के हाथ में है। इस शिवसेना को केवल 20 सीटें ही मिली हैं जबकि शिन्दे की सेना को 57 सीटें मिली हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में भी शिन्दे शिवसेना को अच्छी सफलता मिली थी और इसे सात सीटें प्राप्त हो गई थीं। जहां तक अजित पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस का सवाल है तो लोकसभा चुनावों में इसे मात्र एक सीट मिली थी और विधानसभा चुनावों में 41 सीटें मिली हैं। राज्य की राजनीति में सबसे कद्दावर व अनुभवी माने जाने वाले श्री शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस को सिर्फ 10 सीटें ही विधानसभा चुनावों में मिली हैं।

वास्तव में महाराष्ट्र की जनता ने विधानसभा चुनावों में करामात किया है और बदलते समय के अनुसार अपनी वरीयताएं भी बदल दी हैं। इसलिए फडणवीस सरकार की जिम्मेदारी और भी ज्यादा बढ़ गई है। राज्य की सामाजिक परिस्थितियों को देखें तो महाराष्ट्र सामाजिक बदलाव व आर्थिक मोर्चे पर भी प्रगतिवादी रहा है। यह संविधान निर्माता बाबा साहेब अम्बेडकर की प्रयोगशाला भी रहा और कांग्रेस पार्टी के आर्थिक नव विकासवाद की कर्मस्थली भी रहा। पुरातन रूढि़यों के खिलाफ इसकी धरती पर न जाने कितने सामाजिक आन्दोलन चले हैं। इस नजरिये से देखें तो भाजपा के श्री फडणवीस को कांटों के बिस्तर पर सोना होगा क्योंकि वह ब्राह्मण मुख्यमन्त्री हैं। महाराष्ट्र के पूरे जीवनकाल में अभी तक एक और ब्राह्मण मुख्यमन्त्री हुए हैं जिनका नाम मनोहर जोशी था। वह शिवसेना द्वारा मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बाला साहेब के जीवित रहते 90 के दशक में बैठाये गये थे। उनके बाद 2014 में श्री फडणवीस भाजपा-शिवसेना की सरकार के मुख्यमन्त्री बने और पूरे पांच साल इस पद पर बने रहे। 2019 में भी फडणवीस तब मुख्यमन्त्री बने थे जब भाजपा-शिवसेना के गठबन्धन में चुनाव जीतने वाले श्री फडणवीस केवल पांच दिन के लिए मुख्यमन्त्री रहे थे क्योंकि चुनावों के बाद शिवसेना गठबन्धन से अलग हो गई थी और फडणवीस ने राष्ट्रवादी कांग्रेस के अजित पवार से हाथ मिला कर उन्हें भी उप-मुख्यमन्त्री पद की शपथ भोर होते ही राजभवन में दिलवा दी थी। तब शिवसेना ने कांग्रेस से हाथ मिला लिया था और महाविकास अघाड़ी का गठन किया था।

खैर यह तो ताजा इतिहास है जिससे सभी वाकिफ हैं अतः अब सवाल यह है कि फडणवीस की सरकार स्थिर सरकार साबित हो और राज्य की जनता के हक में फैसले करने वाली सरकार के रूप में देखी जाये। श्री एकनाथ शिन्दे ने उप- मुख्यमन्त्री पद स्वीकार करके भाजपा पर कोई एहसान किया हो, एेसा बिल्कुल नहीं है। राज्यों में सरकारों में एेसा होता रहा है कि पिछली मुख्यमन्त्री नये मुख्यमन्त्री की सरकार में उसका सहायक मन्त्री बन गया। एेसा मध्य प्रदेश में भी हुआ था। बाबूलाल गौर पहले मुख्यमन्त्री रहे और बाद में उपमुख्यमन्त्री भी बन गये। अतः श्री फडणवीस का इससे काम ही हल्का होगा। शिन्दे ने अपने ढाई साल के शासन में सिद्ध किया है कि वह जनता के मुख्यमन्त्री के रूप में पहचान रखते हैं। इसी वजह से उनकी पार्टी को लोगों ने असली शिवसेना समझा। इसलिए शिन्दे फडणवीस सरकार की एक मजबूत कड़ी होंगे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fourteen − nine =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।