एक सुनहरे मौके का चूक जाना...! - Punjab Kesari
Girl in a jacket

एक सुनहरे मौके का चूक जाना…!

भारतीय टीम का अजेय संकल्प था और 140 करोड़ भारतीयों को विश्वकप जीतने की उम्मीद थी। भारतीय टीम की पराजय गले नहीं उतर रही है लेकिन हकीकत यही है। सारे खिलाड़ी फॉर्म में, एक के बाद एक जीत और फाइनल में पहुंच कर इतना बड़ा झटका? यह एक सुनहरे मौके के चूक जाने की दर्दनाक कहानी है। स्वाभाविक सी बात है कि जो जीतता है उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता और जो हारता है वह मायूस जरूर होता है लेकिन मेरी यह स्पष्ट मान्यता रही है कि हार भी जीतने की कोशिश का ही एक अंग है। पराजय से ही जीत का जज्बा पैदा होता है, जीत और हार से ज्यादा महत्व खेल के तौर-तरीके, खेल भावना और खेल के बुनियादी उसूलों का है। इस लिहाज से दोनों ही टीमें बधाई की हकदार हैं।
सेमीफाइनल मैच की वो खेल भावना आपको याद ही होगी जब हमारे स्टार बल्लेबाज विराट कोहली ने न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियमसन को गले लगा लिया था। दोनों ही टीमें सेमीफाइनल मैच में शानदार खेली थीं। खेल भावना की चर्चा करते हुए मुझे इंग्लैंड की टीम की भी याद आ रही है जो भारत की नुक्ताचीनी करने से नहीं चूकी। एक तरफ भद्र पुरुषों का खेल कहते हैं और दूसरी तरफ नुक्ताचीनी करते हैं? बिना दबाव में आए भारत ने क्रिकेट के जन्मदाता को बता दिया कि कभी तुम हम पर राज करते थे, आज हम तुम पर राज कर रहे हैं।
निश्चय ही वर्ल्डकप के फाइनल तक पहुंचना किसी भी टीम के लिए आसान तो बिल्कुल ही नहीं था। ऑस्ट्रेलिया और भारत ने फाइनल में जगह बनाई तो खेल में अपनी श्रेष्ठता के कारण बनाई। जहां तक भारत का सवाल है तो इस मुकाम पर पहुंचने के पीछे मेहनत, लगन, आत्मविश्वास, अनुशासन, प्रशिक्षण, समर्पण और जीत की अदम्य इच्छा थी। हकीकत यही है कि जीवन के किसी भी क्षेत्र में चाहे वो खेल हो, व्यापार-व्यवसाय हो या फिर तकनीकी विशेषज्ञता या राजनीति, हर जगह ये गुण जरूरी हैं। आपको हिमालय पर परचम फहराना हो या फिर समंदर में गोते लगाना हो, खोजी प्रवृत्ति और गुरु की जरूरत भी होती है। एक भी गुण कम हुए तो परचम फहराना मुश्किल काम है, ओलंपिक से लेकर एशियाड तक में छोटे-छोटे देश भी यदि मेडल तालिका में ऊपर रहते हैं तो यह उनके समर्पण का ही प्रतिफल है।
मैंने इस देश में क्रिकेट को धर्म के रूप में परिवर्तित होते देखा है। तेंदुलकर को क्रिकेट का भगवान बनते देखा है। महाराजा रणजीत सिंह से लेकर सी.के. नायडू, मुश्ताक अली से लेकर गावस्कर, सौरव गांगुली और माही तक की विरासत हमारे सामने है। किस-किस का नाम लूं? कहने का आशय यह है कि हमारे यहां अच्छे खिलाड़ियों की कभी कमी नहीं रही। कमी रही है तो संसाधनों की। मैंने कश्मीर की वादियों में बसे छोटे-छोटे गांवों से लेकर देश के दूसरे हिस्सों में बच्चों को बगैर साधनों के भी क्रिकेट खेलते देखा है। जरा सोचिए कि यदि स्कूल से लेकर कॉलेज स्तर तक फील्डिंग, बॉलिंग, बैटिंग और कीपिंग के गुरु यानी कोच उपलब्ध हों तो भारतीय क्रिकेट किस मुकाम पर पहुंच जाएगा। भारत का क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड 2.25 बिलियन डॉलर की संपत्ति के साथ दुनिया का सबसे धनी क्रिकेट बोर्ड है। सरकार और बीसीसीआई चाहें तो गांव-गांव में संसाधन जुटाए जा सकते हैं।
जहां तक दूसरे खेलों का सवाल है तो हमारे पास ऐतिहासिक विरासत है। मैं जिस यवतमाल हनुमान अखाड़े का आज अध्यक्ष हूं वहां के युवा तत्कालीन अध्यक्ष काणे साहब के साथ ओलंपिक में मलखंब का प्रदर्शन करने गए थे। पहलवानों के हैरतअंगेज कारनामे देखकर हिटलर भी अचंभित हो गया था। उसने पहलवानों की प्रशंसा की थी। मुझे लगता है कि दूसरे खेलों में भी भारत को शिखर पर ले जाना है तो कॉरपोरेट क्षेत्र को इसमें पूरी क्षमता के साथ शामिल करना चाहिए, टैक्स में छूट मिलेगी तो कॉरपोरेट जगत सहर्ष आगे आएगा। हर स्कूल में ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि बचपन में ही यह अंदाजा लग जाए कि अमुक बच्चे में अमुक खेल की योग्यताएं हैं, उसी के अनुरूप कोचिंग दी जाए। खेल संगठनों से कई राजनेता जुड़े रहे हैं और उन्होंने संगठनों को मजबूत भी बनाया है लेकिन कुछ ऐसे राजनेता भी रहे हैं जिन्होंने संगठनों को अपनी जागीर बना लिया। इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी है कि जो योग्य खिलाड़ी हैं, उनके साथ कोई राजनीति नहीं होनी चाहिए। संसाधन इतने हों कि किसी पीटी उषा को जूते के बिना न दौड़ना पड़े, किसी मैरीकॉम के सामने आर्थिक तंगी न आए या किसी अंजलि भागवत को शूटिंग में भाग लेने के लिए मशक्कत न करनी पड़े। आज हम मोहम्मद शमी का गुणगान कर रहे हैं। होना भी चाहिए लेकिन यह भी ध्यान रखना चाहिए कि भविष्य के किसी शमी को कोचिंग के लिए बेगाने शहर में दर-दर भटकना न पड़े।
और सबसे महत्वपूर्ण बात कि हमें बच्चों को खेल के मैदान उपलब्ध कराने होंगे। स्कूल खोलने की अनुमति देते वक्त ही सुनिश्चित करना होगा कि स्कूल के पास खेल के मैदान हों, मैदानों पर कब्जे को संगीन अपराध घोषित करना होगा। माता-पिता को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे मैदान में पहुंचें क्योंकि बच्चों को पढ़ाई की कोचिंग में ऐसा झोंक दिया गया है कि खेल की कोचिंग की तरफ ध्यान ही नहीं है। हम सब मिलकर कोशिश करें तो हालात सुधर सकते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

five + 15 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।