फिर कफ सिरप पर संशय - Punjab Kesari
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फिर कफ सिरप पर संशय

भारत में बने कप सिरप को लेकर एक बार फिर संशय के बादल गहरा गए हैं।

भारत में बने कप सिरप को लेकर एक बार फिर संशय के बादल गहरा गए हैं। उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावा किया है कि भारत की कम्पनी मैरियन बायोटेक के कफ सिरप का इस्तेमाल करने से समरकंद शहर में 18 बच्चों की मौत हुई है। मैरियन बायोटेक को 2012 में उज्बेकिस्तान में पंजीकृत किया गया था और तब से ही उसकी दवाओं की बिक्री शुरू हो गई थी, लेकिन कम्पनी के सिरप पर 10 साल बाद सवाल उठ रहे हैं। कोई भी दवा बाजार में आने से पहले कड़े परीक्षण से गुजरती है। दवाओं को हर मानक से परखा जाता है। फिर भी भारतीय कम्पनी की दवा पर सवाल उठने से न केवल भारतीय दवा उद्योग की प्रतिष्ठा पर धक्का लगता है बल्कि देश की छवि भी प्रभावित होती है। इससे पहले अफ्रीकी देश गाम्बिया ने भी हरियाणा के सोनीपत की कम्पनी द्वारा तैयार कफ सिरप से लगभग 70 बच्चों की मौत का दावा किया था। तब इस मुद्दे पर तूफान खड़ा हो गया था। आनन-फानन में संयुक्त राष्ट्र की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने हरियाणा की दवा कम्पनी पर गम्भीर दोष मड़ दिए थे। भारत विरोधी पश्चिमी मीडिया ने इस खबर को हैडलाइन्स में छापा था। डब्ल्यूएचओ ने दुनिया के तमाम देशों में भारतीय कफ सिरप की बिक्री पर रोक लगाने की सलाह दी थी। केन्द्र सरकार के औषधि मानक नियंत्रण संगठन ने हरियाणा की दवा नियंत्रण एजैंसी के सहयोग से मामले की जांच शुरू कर दी थी। कप सिरप की जांच के बाद तथ्य कुछ और ही निकले और सरकार ने दवाओं को किसी भी तरह से हानिकारक न बताते हुए कम्पनी को क्लीन चिट दे दी। 
भारत सरकार ने स्पष्ट रूप से कहा कि गाम्बिया में बच्चों की मौत का भारतीय कम्पनी के सिरप से कोई संबंध नहीं है। बिना किसी ठोस आधार के बेतुके आरोप लगाने पर डब्ल्यूएचओ  को आड़े  हाथों लिया। बाद में गाम्बिया ने भी बच्चों की मौत के मामले में यू टर्न ले लिया। उसका कहना था कि दरअसल बच्चों की मौत गुर्दे में समस्या की वजह से हुई थी। इनमें से 66 बच्चों को ई-कोलई और डायरिया की समस्या थी। ऐसे में उन्हें कफ सिरप देना ही गलत था। भारत सरकार ने डब्ल्यूएचओ को कड़े शब्दों में पत्र लिखकर इस बात पर नाराजगी जताई कि उसने आनन-फानन में बिना जांच किए भारतीय कफ सिरप को निशाना बनाया और भारत की छवि को बदनाम करने का प्रयास किया। इस संबंध में भी पूरी जांच-पड़ताल की जाएगी, तब दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। डब्ल्यूएचओ की भूमिका पर सवाल उठते रहे हैं।
निस्संदेह दुनिया की प्रतिष्ठित संस्था की इस तरह की गैर-जिम्मेदार बयानबाजी दुर्भाग्यपूर्ण है। क्या इसके मूल में भारत विरोधी ताकतों की साजिश थी? यदि हां तो उसकी जांच की जानी चाहिए। हाल के वर्षों में अफ्रीका व गरीब मुल्कों में भारतीय दवा कम्पनियों की अच्छी पहचान बनी है। एक तो दवाएं सस्ती हैं, वहीं कारगर भी। इस लोकप्रियता से बौखलाई भारत विरोधी ताकतों ने गाम्बिया की घटना के जरिये भारत को बदनाम करने का प्रयास किया। दरअसल पश्चिमी देशों की महाकाय दवा निर्माता कम्पनियां विकासशील देशों में अपने कारोबार को मिलने वाली किसी भी चुनाैती के​​ खिलाफ ऐसी साजिशें रचती रहती हैं। जिनसे भारत को सावधान रहने की जरूरत है। लेकिन सबसे ज्यादा चिंता की बात तो विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका को लेकर है, जिसने बिना किसी जांच के आरोप भारतीय दवा कम्पनी पर लगा दिए। सर्वविदित है कि पूरे कोरोना संकट के दौरान डब्ल्यूएचओ पूरी तरह से नाकाम हुआ। वह कोरोना वायरस के मूल स्रोत का पता नहीं लगा सका। कहा तो यहां तक गया कि इसके प्रमुख की नियुक्ति में चीन की भूमिका रही, जिसके चलते प्रमुख ने कोरोना संकट के बाद दुनिया के निशाने पर आए चीन का बचाव किया। निस्संदेह अपनी तमाम नाकामियों पर पर्दा डालने के लिए यह संगठन बेतुकी बयानबाजी का सहारा ले रहा है।
कोरोना महामारी के दौरान भारत ने स्वदेशी वैक्सीन तैयार कर पूरी दुनिया की मदद की थी। भारतीय वैक्सीन को न केवल पड़ोसी देशों को बल्कि दूर दराज के देशों तक पहुंचाया गया। अनेक देशों को जीवन रक्षक उपकरण भी दिए गए। तब भी डब्ल्यूएचओ ने भारतीय वैक्सीन को मान्यता देने में जानबूझ कर ​विलम्ब किया था। भारत निर्मित कोरोना वैक्सीन ने गरीब व विकासशील देशों में महामारी से लड़ने में नई आशाएं जगाई थीं, जिससे दुनिया भर के देशों के साथ भारत के संबंध काफी मधुर हो गए थे। भारत अब मैडिकल हब बन चुका है। भारतीय दवाओं का कारोबार अब काफी बढ़ चुका है। ऐसे में भारतीय दवाओं पर सवाल उठना काफी दुखदायी है। इसमेें कोई संदेह नहीं कि भारत में नकली दवाएं भी पकड़ी जाती हैं और दवाओं की कीमतों को लेकर भी आम जनता सवाल उठाती रहती है। इसलिए भारत को काफी सतर्क रहने की जरूरत है। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि देश व विदेश में घटिया और नकली दवाएं लोगों को खतरे में न डालें। इस झूठ का पर्दाफाश भी होना चाहिए कि कहीं पश्चिमी शक्तियों के कूटनीतिक दबाव के कारण भारत को बदनाम करने की कोई सुनियोजित साजिश तो नहीं चल रही।  केन्द्रीय दवा नियामक संस्था को समय-समय पर फार्मा कम्पनियों की जांच, दवाओं की गुणवत्ता और उनकी विश्वसनीयता का आंकलन करना होगा। भारत के दवा उद्योग की प्रतिष्ठा बचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाने चाहिएं, ताकि सकारात्मक परिणाम आ सकें और बार-बार कफ सिरप पर लगाए जाने वाले आरोपों की  पुर्नावृत्ति रोकी जा सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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