सर्वोच्च न्यायालय का केन्द्र व राज्य सरकारों को यह निर्देश कि नफरती बयानों या दो समुदायों के बीच घृणा फैलाने वाले वक्तव्यों पर यथोचित कानूनी कार्रवाई की जाये और विश्व हिन्दू परिषद व बजरंग दल की रैलियों पर वीडियो निगरानी रखते हुए पुलिस व सुरक्षा बलों की तैनाती की जाये पूर्णतः समयोचित और राष्ट्रीय एकता के हक में है। हमने हरियाणा के मेवात के इलाके के नूंह व अन्य कस्बों समेत गुरुग्राम में जिस प्रकार की साम्प्रदायिक हिंसा हाल ही में देखी है उससे यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कुछ लोग धर्म की आड़ में इस देश का शान्ति व सौहार्द समाप्त कर देना चाहते हैं और भारतीय नागरिकों को मजहबी लबादा ओढ़ कर एक-दूसरे का ही दुश्मन बना देना चाहते हैं? यह काम निश्चित रूप से नफरत या घृणा फैलाकर ही किया जा सकता है क्योंकि नफरत से ही हिंसा का उदय होता है। हम यह कैसे भूल जाते हैं कि इस हिंसा का मुख्य कारण एक एेसा अपराधी सोनू मानेसर है जिस पर दो निरपराध मुस्लिम युवकों को जिन्दा जला देने का गंभीर आरोप है। यदि एेसा व्यक्ति सावन के महीने में आयोजित होने वाली भगवान शंकर के नलहड़ मन्दिर की शोभायात्रा में शामिल होने का एेलान करता है तो सबसे पहले हिन्दुओं को ही अपनी धार्मिक यात्रा को कलुष होने से बचाना चाहिए था और इलाके की पुलिस को पूरी सावधानी बरतने के लिए कहना चाहिए था क्योंकि भगवान शंकर तो स्वयं ‘गरल पान’ के प्रतीक हैं।
यदि सोनू मानेसर नलहड़ मन्दिर यात्रा के बहाना मेवात की जनता के बीच साम्प्रदायिक विद्वेश भड़काने की साजिश रच रहा था तो प्रशासन को समय रहते ही चौकन्ना होकर इस प्रयास पर पानी फेर देना चाहिए था परन्तु एेसा नहीं हो सका और दंगाइयों को सरकारी व निजी सम्पत्ति फूंकने के साथ ही निरपराध लोगों की हत्या करने का अवसर मिल गया। समाज को इन दंगाइयों को पहचानना होगा और चेहरे से धर्म के नकाब को तार-तार करना होगा। मगर क्या सितम हुआ कि गुरुग्राम में ही नकाब ओढ़-ओढ़ कर इन दंगाइयों ने एक विशेष समुदाय के लोगों की दुकानों व आशियानों को फूंका और इसकी जद में कुछ हिन्दुओं की दुकानें व आशियाने भी आ गये? इसी से सिद्ध हुआ कि दंगाई का मजहब से कोई मतलब नहीं होता उसका लक्ष्य केवल समाज में दहशत पैदा करना होता है और एक समुदाय के लोगों को दुश्मन समझना होता है जिससे नफरत और घृणा फैले तथा हिंसा का विस्तार हो।
सर्वोच्च न्यायालय ने बहुत पहले आदेश दिया था कि राज्य सरकारों का प्रशासन उन लोगों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की सम्बन्धित धारा के खिलाफ कार्रवाई करे जो दो समुदायों के बीच रंजिश बढ़ाने से जुड़ी हुई हैं। मगर हम देख रहे हैं और अभी तक अनुभव बताता है कि इस मामले में शिथिलता बरती जाती है। यह कितनी बार लिखा जाये कि भारत मुसलमानों का भी उतना ही देश है जितना कि हिन्दुओं का क्योंकि दोनों के पुरखों ने ही इसे विकसित व उन्नत बनाने में अपनी-अपनी भूमिका निभाई है। दोनों का रक्त ही इस मुल्क की मिट्टी में शामिल है। क्या बजरंग दल या विश्व हिन्दू परिषद के लोगों को मेवात के इितहास के बारे में जरा भी जानकारी है? मेवाती मुसलमान एेसे भारतीय मुसलमान हैं जो अपने हिन्दू पुरखों का पूरा इतिहास अपने पास संजो कर रखते हैं और अपने गोत्र के आधार पर अपनी नई पीढि़यों की जन्मपत्रियां बनवाते हैं। मेवात का इलाका एक प्रकार से ब्रज क्षेत्र में ही आता है। अतः भगवान कृष्ण के प्रति भी इनकी श्रद्धा रहती है और खुद को ब्रजवासी कहने में भी गर्व का अनुभव करते हैं। होली-दिवाली का त्यौहार मनाने के साथ ही ये हिन्दुओं के अन्य तीज-त्यौहारों को भी सांकेतिक रूप में जरूर मनाते हैं और साथ ही ईद भी मनाते हैं। ये वो मेवाती मुसलमान हैं जिन्होंने 1719 में मुगल बादशाह मुहम्मद शाह रंगीले के खिलाफ अभियान पर निकले मराठा सरदार बाजीराव पेशवा को दिल्ली तक पहुंचने का सहर्ष रास्ता दिया था क्योंकि बादशाह ने मथुरा में अपनी बहुत बड़ी सेना अवध के नवाब सआदत खां के नेतृत्व में तैनात कर रखी थी और बाजीराव पेशवा ग्वालियर से दिल्ली की तरफ कूच कर रहे थे। सवाल यह है कि हम लड़ किन लोगों से रहे हैं? बजरंग दल जैसे संगठन किन लोगों के खिलाफ जहर उगल रहे हैं ? ये हमारे ही लोग हैं और हम में से हैं।
बेशक 1947 में मची मारकाट को देखते हुए मेवाती मुसलमानों ने घबरा कर पाकिस्तान जाने की जब सोची तो महात्मा गांधी ने उन्हें आश्वासन दिया कि वे भारत में अपने पुरखों की धरती को छोड़ कर जाने का विचार त्याग दें। इसके पीछे एक कारण यह था कि जब 23 मार्च, 1940 को मुहम्मद अली जिन्ना ने लाहौर में पाकिस्तान प्रस्ताव मुस्लिम लीग की सभा में पारित कर दिया तो अप्रैल महीने में ही दिल्ली में भारतीय मुसलमानों की बहुत बड़ी सभा हुई जिसमें खान अब्दुल गफ्फार खान के अलावा देवबन्द के जमीयत उल-उलेमाए हिन्द के मौलाना मदनी ने भी भाग लिया और सिन्ध के मुख्यमन्त्री अल्लाबख्श सुमरू ने भी शिरकत की। इस सभा में मुसलमानों की 12 से अधिक पार्टियों ने भाग लिया और इसमें प्रस्ताव पारित किया कि भारत के मुसलमान पाकिस्तान का निर्माण नहीं चाहते। इसमें मेवाती मुसलमानों ने बड़ी संख्या में भाग लिया था। इन देशभक्त मुसलमानों को केवल इनके मजहब के आधार पर अलग करके कैसे देखा जाना चाहिए जबकि वे भारत के बाइज्जत नागरिक हैं। नफरत से हम अपने देश को ही कमजोर कर रहे हैं और इसकी तरक्की को पीछे ले जा रहे हैं। गुरुग्राम में सैकड़ों विदेशी कम्पनियों के दफ्तर हैं। क्या हम उन्हें सन्देश देना चाहते हैं कि भारत के लोग आज भी मजहबी तास्सुब के चश्मे से ही किसी इंसान की परख करते हैं? हमारा हिन्दू तत्व ज्ञान तो सबसे पहले हमें मानव मात्र के कल्याण की शिक्षा देता है।