मत बनाओ इंसान को भगवान - Punjab Kesari
Girl in a jacket

मत बनाओ इंसान को भगवान

NULL

भारत विश्व गुरु की उपाधि से विभूषित रहा है। ऋषि-मुनियों द्वारा रचित वेद, पुराण आदि ग्रन्थों ने भारत ही नहीं बल्कि समूचे विश्व को ज्ञान दिया है। हजारों वर्षों के बाद भी इन पर शोध हो रहा है। भारतीय समाज में आदिगुरु शंकराचार्य, भगवान महावीर, बुद्ध, गुरुनानक देव, स्वामी दयानन्द और स्वामी विवेकानन्द समेत अनेक सन्त व्यक्तित्व हमारे लिए पूजनीय एवं वन्दनीय रहे हैं। हमारे समाज में सन्तों की गुरु, मार्गदर्शक, संकटमोचक की भूमिका रही है। इन सन्तों की राष्ट्र निर्माण में अहम भूमिका रही है। कोई व्यक्ति सन्त कब होता है। अपने लिए कोई भी सांसारिक इच्छा नहीं रखने तथा जनकल्याण में अपना जीवन बिताने वालों को ही सन्त कहते हैं। सांसारिक हित करने की इच्छा समाप्त होकर जब परहित की इच्छा प्रबल हो जाती है, तब व्यक्ति सन्त हो जाता है। भर्तृहरि कहते हैं-सन्त: स्वयं परहिते विहिताभियोगा:। अत: सन्त स्वयं ही अपने को पराये हित में लगाए रखते हैं।

शास्त्रों में पाखण्ड करने वालों से सावधान किया गया है। गुरु की शरणागत कैसे हों, इसके लिए सन्त के लक्षण भी बताए गए हैं। गुरु का चयन अपने विवेक पर निर्भर है। सन्त के लक्षण शास्त्रों में सहन करने की शक्ति, तृष्णा रहित होना, हर जीव, समाज, धर्म के प्रति करुणाभाव होना, ऋषियों के प्रति मर्यादा, उठने-बैठने, चलने-बोलने में मर्यादा भाव झलकना बताया गया है। श्रीमद् भागवत का अर्थ ही भगवान का होना है। ज्ञान वेदान्त से भरा है भागवत। सभी वेदों का सार है भागवत। जो शत्रु-मित्र में समदर्शी हैं, सत्यवादी हैं, सेवा करने को तैयार रहते हैं, प्रदर्शन और आडम्बर से दूर रहते हैं, जिनमें संग्रह की बजाय दान की वृत्ति है, जो सदाचारी, सन्तोषी और दयालु हैं, वे ही सन्त हैं। एक बार सम्राट अकबर ने सन्त कुम्भनदास को दर्शन के लिए आगरा के पास फतेहपुर सीकरी में अपने दरबार में बुलाया। कुम्भनदास ने पहले दरबार में जाने से मना कर दिया लेकिन तमाम अनुरोधों के बाद वह सीकरी गए। अकबर ने उनका स्वागत-सत्कार किया लेकिन सन्त ने सम्राट से कुछ भी लेने से इन्कार कर दिया। कुम्भनदास जब दरबार से लौटे तो उन्होंने एक पत्र लिखा-

”सन्तन को कहां सीकरी सो काम
आवत जात पनहिया दूरी
बिसर गयो हरिनाम।”

आज अध्यात्म रंग बदल गया है। जितने भी पाखण्डी, ढोंगी बाबा हैं, उन्हें सन्त के रूप में पूजा गया। सत्ता ने भी कभी वास्तविक सन्तों को पूछा ही नहीं, जिसके अनुयायी ज्यादा यानी वोट बैंक की शक्ति है, उसके पीछे सत्ता हो गई। आप सब विचार कीजिये कि क्या आज के दौर के सभी बाबाओं में सन्त होने के कोई लक्षण हैं या नहीं। ऐसी स्थिति उत्पन्न ही क्यों हुई, इसके लिए हिन्दू समाज भी जिम्मेदार है। सन्तों का नाम कलंकित क्यों हुआ? संन्यासी का कोई परिवार नहीं होता लेकिन अनेक महंतों और मठाधीशों ने अपने आश्रम और करोड़ों की सम्पत्ति अपने परिवारों के नाम कर दी। महामण्डलेश्वर, पीठाधीशों के पद डिग्रियों की तरह बांटे गए। धर्म की विडम्बना ही है कि सत्ता की शह पर कुछ लोग शंकराचार्य बन बैठे। ऐसी उपाधियां बांटने के लिए कोई नियम, कोई प्रक्रिया तय नहीं। लोगों को ठगने वाले, बलात्कारी और सैक्स रैकेट चलाने वाले बाबाओं को महामण्डलेश्वर की उपाधि दे दी गई। कुछ रोमांटिक किस्म की चर्चित महिलाओं को भी महामण्डलेश्वर की उपाधि दी गई थी तब जबर्दस्त विवाद हो गया था। किसी का जो दिल करे, वह अपने आगे उपाधि लगा देता है। अखाड़ों ने क्यों नहीं सोचा कि ऐसी उपाधियां देने से धर्म को ही क्षति पहुंचती है। आज के फर्जी बाबाओं को मार्केटिंग में महारत प्राप्त है। राष्ट्रहित और धर्म के प्रति इनकी कोई निष्ठा नहीं। धर्म का व्यवसाय फल-फूल रहा है।

अनेक धार्मिक गुरुओं के आपराधिक कृत्य सामने आने के बाद अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने फर्जी बाबाओं की सूची जारी की है। अखाड़ा परिषद और विश्व हिन्दू परिषद ने यह भी तय किया है कि अब से किसी भी व्यक्ति की पड़ताल करके और उसका आकलन करने के बाद ही सन्त की उपाधि दी जाएगी। सन्त की उपाधि देने से पहले अखाड़ा परिषद यह भी देखेगी कि व्यक्ति की जीवनशैली किस तरह की है। सन्त के पास नकदी या उसके नाम पर सम्पत्ति तो नहीं। अखाड़ा परिषद को यह कदम बहुत पहले उठाना चाहिए था, फिर भी देर आयद-दुरुस्त आयद। बाबा बदल गए लेकिन भक्त नहीं बदले। भक्त कल भी अपने भगवान के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकते थे, आज भी नहीं सुन सकते। चुनौती बहुत बड़ी है कि अब समाज में नए भगवान पैदा न हों। मूल समस्या गरीबी है। आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर लोग ही बाबाओं के चक्कर में फंसते हैं। कोई धन से तो कोई तन-मन से दु:खी है, इसलिए वे फंसते चले जाते हैं। ढोंगी बाबा उनका शोषण करते हैं। लोगों को अन्धविश्वास से दूर करने के लिए भी धार्मिक संगठनों को एक सशक्त राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की जरूरत है। लोगों को भी चाहिए कि किसी इंसान को भगवान मत बनाओ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

2 × two =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।