न जाने कितने माल्या, नीरव और कोठारी - Punjab Kesari
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न जाने कितने माल्या, नीरव और कोठारी

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पंजाब नेशनल बैंक में हुए सबसे बड़े घोटाले के सार्वजनिक होने के बाद से ही बैंकों में धोखाधड़ी के चौंकाने वाले आंकड़े तो सामने आ ही रहे हैं, अब रोटोमैक पैन बनाने वाले कम्पनी मालिक विक्रम कोठारी के 800 करोड़ के घोटाले का भांडा फूटा है। यह मामला भी हजारों करोड़ तक पहुंच सकता है। सरकार ने स्वयं स्वीकार किया है कि सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को साल 2012 से 2016 के बीच धोखा देकर 22,443 करोड़ का चूना लगाया गया है। यह जानकारी कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पिछले दिनों संसद में प्रश्नकाल के दौरान दी थी। मंत्री महोदय द्वारा दिया गया आंकड़ा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट बेंगलुरु की एक स्टडी रिपोर्ट के आंकड़ों से मेल खाता है।
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2017 के पहले 9 महीने में आईसीआईसीआई बैंक में धोखाधड़ी के करीब 455, स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में 429, स्टैंडर्ड चार्टर्ड बैंक में 244 और एचडीएफसी बैंक में 237 मामले पकड़े गए। ये सभी मामले एक लाख रुपए या इससे ज्यादा के थे। रिपोर्ट के अनुसार धोखाधड़ी के ज्यादातर मामलों में बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत थी। अब रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट के मुताबिक हर चार घण्टे में एक बैंक कर्मचारी फ्रॉड में पकड़ा जा रहा है। छोटे से लेकर बड़े उद्योगपति भी विजय माल्या, नीरव मोदी की राह अपनाने लगे हैं। बैंकों से ऋण लो, विदेशों में उद्योग स्थापित करो और भाग निकलो। अगर समूचा बैंकिंग तंत्र भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा हुआ है तो यह आशंका निर्मूल नहीं कि​ बैंकिंग व्यवस्था बुरी तरह से लड़खड़ा चुकी है और यह किसी भी समय धराशायी हो सकती है। यह गम्भीर चिन्ता का विषय है कि बैंकों के एनपीए यानी फंसे कर्ज की समस्या का कोई ठोस समाधान होता न तो दिखाई दे रहा है और न ही कोई उम्मीद दिखाई दे रही है।
फंसे कर्ज को बट्टे खाते में डालने के अलावा कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा। बैंकों के अधिकारी यह मानने लगे हैं कि कुल फंसे कर्ज के एक चौथाई से अधिक की वसूली शायद ही हो सके, तो इसका अर्थ यही है कि सरकार के साथ-साथ रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया को बैंकिंग व्यवस्था को बचाए रखने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे। बैंकिंग व्यवस्था का ध्वस्त होना देश की साख के लिए अच्छा नहीं है। बैंक वित्तीय घोटालों को लेकर दुनिया भर में चर्चित हो रहे हैं। ऐसा इस समय होना देश की आर्थिक व्यवस्था के लिए नुक्सानदेह है क्योंकि पूरी दुनिया भारत को तेज गति से विकास करने वाले देश के रूप में देख रही है आैर सरकार भारतीय बाजार को निवेश के आदर्श ठिकाने के तौर पर पेश करने में लगी हुई है। बैंक घोटालों के चलते देश की छवि प्रभावित होगी तो फिर यहां निवेश करने कौन आएगा। भारत विदेशी निवेशकों का भरोसा कैसे जीतेगा? केन्द्र सरकार का बार-बार यह कहना कि एनपीए समस्या पूर्ववर्ती सरकारों की देन है, ऐसे आरोपों से भी जनता को आश्वस्त नहीं किया जा सकता। अब तक एनपीए समस्या से निपटने के लिए सरकार आैर रिजर्व बैंक ने जो भी कदम उठाए हैं उन सभी पर बैंकों ने एक के बाद एक पानी फेर दिया है। देश की जनता घोटालों को लेकर काफी चिन्तित है। आम आदमी के पैसे की सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। लोग आपस में चर्चा कर रहे हैं कि बैंक डूब गए तो उनके पैसों का क्या होगा।
वर्ष 2011 में कुछ बैंक अफसरों ने 10 हजार संदिग्ध बैंक खाते खोले आैर उनसे ऋण के 1500 करोड़ रुपए ट्रांसफर कर लिए थे। यह अधिकारी बैंक ऑफ महाराष्ट्र, ओरिएंटल बैंक ऑफ कामर्स आैर आईडीबीआई जैसे बैंकों के थे। 2014 में कोलकाता के उद्योगपति विपिन वोहरा पर कथित तौर पर फर्जी दस्तावेज के सहारे सैंट्रल बैंक ऑफ इंडिया से 1400 करोड़ रुपए का ऋण लेने का आरोप लगा। 2014 में ही सिंडीकेट बैंक के एक्स चेयरमैन और प्रबन्ध निदेशक एस.के. जैन पर रिश्वत लेकर 8 हजार करोड़ का ऋण मंजूर करने का आरोप लगा। इसी वर्ष यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने विजय माल्या को विलफुल डिफाल्टर घोषित कर दिया। इसके बाद एसबीआई और पीएनबी ने भी यूबीआई की राह अपनाई।
2016 में चार धोखेबाजों ने मिलकर सिंडीकेट बैंक के खातों से एक हजार करोड़ उड़ा लिए और 380 फर्जी बैंक खाते बनाए गए और जाली लेन-देन को अन्जाम दिया। पिछला वर्ष तो विजय माल्या के कारण चर्चित रहा। 2017 में ही 7 हजार करोड़ का घोटाला विनमस डायमंड्स के खिलाफ सामने आया था। जीतन मेहता की विनमस डायमंड्स का मामला भी नीरव मोदी की तर्ज पर ही था। कोलकाता के ही नीलेश पारेख का मामला भी काफी सु​र्खियों में रहा। पारेख ने 20 बैंकों को 2,223 करोड़ का चूना लगाया था आैर यह पैसा शेल कम्पनियों के जरिये हांगकांग, सिंगापुर और संयुक्त अरब अमीरात ट्रांसफर कर दिया था। न जाने भारत में कितने और विजय माल्या हैं, कितने नीरव मोदी हैं और कितने ही नीलेश पारेख। कितना अजीब लगता है कि एक ओर देश की अर्थव्यवस्था की गुलाबी तस्वीर पेश की जा रही है दूसरी तरफ बैंकिंग व्यवस्था का काला पहलू उजागर हो रहा है। यह देश के लिए खतरे का ही संकेत है।
अधिक जानकारियों के लिए बने रहिये पंजाब केसरी के साथ।

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