हिजाब पर विभाजित फैसला - Punjab Kesari
Girl in a jacket

हिजाब पर विभाजित फैसला

मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने को लेकर चल रहे विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने

मुस्लिम महिलाओं के हिजाब पहनने को लेकर चल रहे विवाद पर सर्वोच्च न्यायालय की दो सदस्यीय पीठ ने जिस तरह का विभाजित फैसला दिया है उससे यह मामला आगे के लिए टल गया है जिसका फैसला न्यायालय की बड़ी पीठ करेगी। दोनों न्यायमूर्तियों ने अपने फैसलों को मुख्य न्यायाधीश श्री यू.यू. ललित के पास भेज दिया है जिस पर वह फैसला करेंगे कि इस मामले के अन्तिम हल के लिए कितनी सदस्यीय और किस प्रकृति की पीठ गठित की जाये। विभाजित फैसला न्यायमूर्ति हेमन्त गुप्ता व सुधांशु धूलिया का आया है। श्री गुप्ता ने स्पष्ट रूप से हिजाब को विद्यालयों में प्रतिबन्धित रखने के हक में फैसला दिया है जबकि श्री धूलिया ने इसके बिल्कुल उलट राय व्यक्त करते हुए लिखा है कि विषय युवतियों की शिक्षा से जुड़ा हुआ है जो कि बहुत महत्वपूर्ण है, अतः वह हिजाब पहनने के खिलाफ नहीं है और इसे व्यक्तिगत पसन्द या नापसन्द के दायरे में रख कर देखते हैं। न्यायामूर्ति गुप्ता का कहना है कि हिजाब का धार्मिक अधिकार से कोई लेना-देना नहीं है अतः विद्यालयों में वहां लागू पोशाक नियमों का पालन सभी विद्यार्थियों को एक समान रूप से करना चाहिए। दरअसल सर्वोच्च न्यायालय में कर्नाटक के उडुपी शहर की गैर स्नातक कालेजों की छात्राओं की तरफ से एक याचिका दायर की गई थी जिसमें कर्नाटक उच्च न्यायालय के विगत मार्च महीने में दिये गये उस फैसले को चुनौती दी गई थी जिसमें हिजाब पर प्रतिबन्ध लगाये जाने के पक्ष मे फैसला दिया गया था। 
इस याचिका पर सर्वोच्च न्यायालय में विगत 22 सितम्बर को ही सुनवाई पूरी हो गई थी और उसी दिन दोनों न्यायमूर्तियों ने अपना-अपना फैसला 13 अक्टूबर के लिए सुरक्षित रख लिया था। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा था कि इस्लाम मजहब में हिजाब पहनना आवश्यक धार्मिक रवायत नहीं है और संविधान के अनुच्छेद 25 में मिली धार्मिक स्वतन्त्रता वाजिब शर्तों के साथ ही लागू होती है।  उच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार द्वारा विगत 5 फरवरी को जारी उस आदेश को भी वैध ठहराया था जिसमें कहा गया था कि हिजाब पहनने की उन सरकारी विद्यालयों में अनुमति नहीं होगी जहां विद्यार्थियों के लिए पोशाक नियम लागू हैं। कर्नाटक उच्च न्यायालय के इस फैसले के खिलाफ कुछ छात्राओं ने सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर करके दलील दी कि हिजाब पहनना अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार के तहत आता है जिसका प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत है। इसके साथ ही अनुच्छेद 25 के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी भावना के अनुसार स्वयं को व्यक्त करने का अधिकार भी है। मगर उच्च न्यायालय ने इन दलीलों को स्वीकार नहीं किया और विद्यालयों में हिजाब पहनने पर पाबन्दी लगाये जाने के हक में फैसला दिया। 
सवाल यह पैदा होता है कि जब पूरी दुनिया के 57 इस्लामी मुल्कों में से 54 में ही हिजाब को लेकर महिलाओं पर कोई पाबन्दी नहीं है तो भारत जैसे पंथनिरपेक्ष देश में मुस्लिम समुदाय के उलेमा और मुल्ला-मौलवी इस देश की युवतियों पर हिजाब को कैसे नाजिल कर सकते हैं। ईरान जहां मुस्लिम कानून शरीया के अनुसार निजाम चलता है वहां लागू हिजाब नियम के खिलाफ महिलाएं व्यापक प्रदर्शन कर रही हैं और उनके इस आन्दोलन को विश्वव्यापी समर्थन मिल रहा है। ईरान में हिजाब विरोधी आन्दोलन के चलते अभी तक एक सौ से अधिक महिलाओं की पुलिस जुल्मों से मृत्यु तक हो चुकी है और यह आंदोलन लगातार फैलता जा रहा है तथा इस देश का पुरुष वर्ग भी महिलाओं का समर्थन कर रहा है तो भारत में उल्टी गंगा किस प्रकार बह सकती है। भारत के मुस्लिम उलेमा यदि अपने समुदाय की औरतों को मजहब के नाम पर सातवीं सदी में जीने के लिए मजबूर करते हैं तो यह भारतीय संविधान के तहत नागरिकों को मिली निजी स्वतन्त्रता का सीधा उल्लंघन है।
 भारत में पैदा हुई कोई भी मुस्लिम छात्रा सबसे पहले भारतीय छात्रा है और इस देश की संस्कृति की छाया में ही वह अपना जीवन देखती है। अफगानिस्तान के तालिबान राज में भी हिजाब महिलाओं के लिए अनिवार्य है जहां युवतियों के नागरिक अधिकार तासलिबान की मर्जी से तय होते हैं। भारत में सरकार चाहे जिस भी राजनैतिक पार्टी की हो मगर नागरिकों के अधिकार संविधान से ही तय होते हैं जो सबके लिए बराबर होते हैं। कर्नाटक का मुसलमान पहले भारतीय और उसके बाद कन्नडिगा होता है और कन्नड़ संस्कृति के रंग में रंगा होता है परन्तु प्रतिबन्धित पीएफआई जैसे कट्टरपंथी संगठन ने इसी साल 2022 से मुस्लिम छात्राओं में हिजाब पहनने की मुहिम चलाई जिससे उसे राजनैतिक लाभ हो सके। वरना दक्षिण के मुसलमान नागरिकों की वेषभूषा से लेकर बोलचाल तक में केवल कन्नड़ संस्कृति ही झलकती है। यही स्थिति केरल से लेकर तमिलनाडु व आन्ध्र प्रदेश के मुसलमानों की भी है। हैदराबाद इसका अपवाद इसलिए रहा है कि इस शहर में एक जमाने तक निजामशाही रही। शिक्षा व्यक्ति को पीछे से आगे की ओर ले जाती है और वह देश या समुदाय कभी तरक्की नहीं कर सकता जिसकी औरतें पिछड़ी ही बना कर रखी जायें। अब यह हिजाब का मामला सर्वोच्च न्यायालय की बड़ी पीठ के समक्ष जायेगा जिसमें इस मुद्दे पर हमेशा के ​लिए दो टूक फैसला होगा। अपेक्षा करनी चाहिए कि भारत की मुस्लिम औरतें उस दम घोंटू वातावरण से मुक्त होंगी जिसमें वह मात्र पुरुषों की सम्पत्ति समझी जाती है और उनके नागरिक व्यक्तित्व को पहरे में रखा जाता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।