इंजीनियरिंग से मोह भंग - Punjab Kesari
Girl in a jacket

इंजीनियरिंग से मोह भंग

सत्तर-अस्सी के दशक में भारत में साक्षरता बहुत कम थी। मुट्ठी भर युवा ही तकनीकी अध्ययन और डिग्री

सत्तर-अस्सी के दशक में भारत में साक्षरता बहुत कम थी। मुट्ठी भर युवा ही तकनीकी अध्ययन और डिग्री ले पाते थे। देश में इस समय तकनीकी और उच्च शिक्षा सबसे बुरे दौर में है। इंजीनियरिंग संस्थान से पढ़ाई करने के बाद आधे से अधिक छात्राें को नौकरी नहीं मिल पा रही। यहां तक कि आईआईटी, एनआईटी और ट्रिपल आईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों के भी 23 फीसदी छात्रों का प्लेसमैंट नहीं हो रहा। वर्ष 2017-18 में गैर प्रतिष्ठित संस्थान से पढ़ाई पूरी करने वाले 7 लाख 93 हजार छात्रों में से तीन लाख 59 हजार छात्रों का ही प्लेसमैंट हो पाया। 
इसी तरह की स्थि​ति 2018-19 में भी देखी गई। प्रतिष्ठित संस्थानों के पास होने वाले लगभग 23 हजार छात्रों में से केवल 5 हजार छात्रों को ही नौकरी मिली। मानव संसाधन मंत्रालय का कहना है कि अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद अगले सत्र में रोजगार की कम सम्भावना वाले पाठ्यक्रमों को अनुमति नहीं देगा। अगर यही हाल रहा तो फिर इंजीनियर कौन बनना चाहेगा। इंजीनियर बनने के बाद भी नौकरी नहीं मिलती तो फिर ऐसी शिक्षा का क्या फायदा। आज इंजीनियर बन चुके युवा चतुर्थ श्रेणी की नौकरियां करने को मजबूर हैं। देश इस समय तकनीकी और उच्च शिक्षा के लिए सबसे बुरा समय झेल रहा है। शिक्षा का पूरा ढांचा चरमराया हुआ है लेकिन सब असहाय होकर देख रहे हैं। 
वैसे तो यूपीए शासनकाल में ही तकनीकी ​शिक्षा में गुणवत्ता की नींव कमजोर होने लगी थी और देशभर में इंजीनियरिंग सहित कई तकनीकी कोर्सों में लाखों सीटें खाली रहने लगी थीं। जिसका आंकड़ा साल दर साल बढ़ता ही गया। उच्च शिक्षा का मौजूदा संकट क्यों पैदा हुआ इसके लिए हमें पहले इसकी संरचना को समझना होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि सरकार ने सरकारी विश्वविद्यालय, आईआईटी, आईआईएम, एनआईटी जैसे संस्थानों पर काफी धन खर्च किया है। जबकि देशभर में 95 फीसदी युवा प्राइवेट विश्वविद्यालयों और संस्थानों से ​शिक्षा लेकर निकलते हैं। 
अगर इन 95 फीसदी छात्रों पर संकट होगा तो उसका असर न केवल देश की अर्थव्यवस्था पर बल्कि सामाजिक ताने-बाने पर भी पड़ेगा। समस्या यह है कि प्राइवेट संस्थानों में से कुछ ही हैं जो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ-साथ छात्रों को हुनर भी सिखाते हैं ताकि वे रोजगार प्राप्त कर सकें। कुछ संस्थानों में ही स्किल डवलपमेंट पर ध्यान दिया जाता है। प्राइवेट विश्वविद्यालय और संस्थान केवल शिक्षा के बड़े शॉपिंग काम्प्लैक्स बन चुके हैं। उनका काम केवल ​ि​डग्रियां बांट कर धन कमाना है। 
यह संस्थान विज्ञापनबाजी के बल पर ऐसी ख्याति अर्जित कर लेते हैं कि छात्र इनकी ओर आकर्षित हो जाते हैं। माता-पिता कर्ज लेकर भी अपने बच्चों को यहां पढ़ाते हैं लेकिन उन्हें नौकरी के लिए दर-दर भटकना पड़ता है। न तो इनके पास छात्रों का कौशल विकास करने की योजना है और न ही इच्छा शक्ति। हर साल लाखों युवा रोजगार बाजार में आते हैं, इनमें से 37 प्रतिशत ही रोजगार के काबिल होते हैं। कई वर्ष से डिग्रीधारकों और स्किल के बीच अंतर बढ़ता जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कम्पनियों  में भी अनुभवी और स्किल वाले युवाओं को प्राथमिकता दी जाती है। 
इन कम्पनियों का कहना है कि आज के दौर में केवल किताबी ज्ञान जरूरी नहीं, कुछ नई सोच से काम करने वाले कुशल युवाओं की जरूरत है। हमारे देश में इंजीनियरिंग कौशल के जरिये नए आविष्कार करने वाले और नए ​िडजाइन बनाने वाले कार्य कुशल इंजीनियरों का अकाल है। जो इंजीनियरिंग की नौकरियां कर रहे हैं उनकी योग्यता को कार्य कुशलता के पैमाने पर नापा जाए तो हैरत में डालने वाले आंकड़े सामने आएंगे। 
आप जानकर हैरान होंगे कि देश के 95 फीसदी इंजीनियर ठीक से कोडिंग करना भी नहीं जानते। हैरत की बात तो यह है कि कुछ निजी संस्थान ताे ‘घर बैठे इंजीनियर बनें’ पाठ्यक्रम के जरिये कई वर्षों तक डिग्रियां बांटते रहे। बाद में इन पर प्रतिबंध लगाया गया। अब इंजीनियरिंग की सीटें खाली रहने लगीं तो निजी संस्थानों को अन्य पाठ्यक्रम शुरू करने को मजबूर होना पड़ रहा है। पिछले सत्र में इंजीनियरिंग संस्थानों में 49.30 फीसदी सीटें खाली बची थीं। 
इसलिए दिसम्बर 2018 में एक विशेष समिति ने नए इंजीनियरिंग कालेजों की एफिलिएशन पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा दिया है, जो 2020 में शुरू होगा। नए शैक्षणिक सत्र में नए इंजीनियरिंग कालेजों में बीटैक के दाखिले नहीं होंगे। देश में पारम्परिक कोर्स की सीटों को नए रोजगार देने वाले कोर्स से जोड़ा जाना चाहिए। देश में अरबों रुपये का कोचिंग कारोबार चल रहा है लेकिन तकनीकी शिक्षा की स्थिति में कोई सुधार नहीं हो पा रहा। मानव संसाधन मंत्रालय को कौशल विकास कार्यक्रमों को तेज करना होगा और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के मानक तय करने होंगे। देखना होगा कि मंत्रालय क्या कदम उठाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

sixteen − 11 =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।