चीन के विदेश मंत्री चिन गांग को हटाकर उनकी जगह कम्युनिस्ट पार्टी के विदेश मामलों के प्रमुख वांग यी को फिर से विदेश मंत्री बना दिया गया है। चीन की शीर्ष विधायिका ने विदेश मंत्री के रूप में वांग यी की नियुक्ति के पक्ष में वोट दिया। चीन के लिए चिन गांग के पतन की खबर बहुत बड़ी है लेकिन हमेशा की तरह इस खबर को भी मामूली जानकारी के साथ सार्वजनिक किया गया। चिन गांग राष्ट्रपति शी जिनपिंग के काफी करीबी रहे। वह कई दिनों से लापता थे और इस पर रहस्य की परतें चढ़ती जा रही थीं। एक महीना पहले ही अमेरिकी विदेश मंत्री से बीजिंग में मिले थे। जब दाेनों देश उच्च स्तर पर राजनयिक रिश्तों को बहाल करने पर सहमत हुए थे। चीन में हाई प्रोफाइल चेहरों का गायब हो जाना कोई नई बात नहीं। चीन के अरबपति कारोबरी जैकमा भी काफी अरसा गायब रह चुके हैं और चीन में शी जिनपिंग के विरोधियों का गायब हो जाना कोई नई बात नहीं। राजनीतिक क्षेत्रों में अटकलों का बाजार गर्म है। पहले यह जानकारी मिली थी कि चिन गांग बीमार हैं। उसके बाद एक टीवी प्रेजेंटर महिला के साथ उनके अफेयर की अफवाह उड़ी। यह महिला सोशल मीडिया पर काफी सक्रिय थी लेकिन अफवाहों का बाजार गर्म हो गया तो वह भी सोशल मीडिया से गायब हो गई। यह भी अनुमान लगाया जा रहा है कि उनको राजनीतिक रूप से सजा दी गई। हो सकता है कि चिन गांग के राजनीतिक विरोधियों ने कम्युनिस्ट पार्टी में टी.वी. प्रेजेंटर के साथ उनके अफेयर काे नैतिकता का सवाल बनाकर इसे इस्तेमाल किया हो और पार्टी ने इसे अनुशासन के तौर पर लिया हो।
चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के काम करने का अपना ही तरीका है और इसमें किसी भी सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता। चीन ने जितनी भी प्रगति की है उसकी प्रशंसा भारत के लगभग सभी राजनीतिक दल करते रहे हैं। भारत और चीन लगभग एक साथ साम्राज्यवादी शासन से मुक्त हुए लेकिन चीन ने जितनी प्रगति की है उतनी हमने नहीं की। भारतीय लोकतंत्र और चीन शासन प्रणाली में बहुत अंतर है। भारत में स्वस्थ लोकतंत्र है जबकि चीन में साम्यवाद है, लोकतंत्र नहीं। दोनों के बीच का अंतर दो अलग-अलग प्रणालियों के बीच का अंतर है। चीन अपने नागरिकों को लोकतंत्र की अनुमति देने से डरता है। भारत में धार्मक आजादी है। भारत की परम्परा है कि सभी धर्मों का सम्मान किया जाता है।
भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। यहां कोई भी राजनीतिक नेतृत्व के खिलाफ खुलकर बोल सकता है जबकि चीन में सब कुछ सरकार द्वारा नियंत्रित होता है। अगर चीन में लोग सरकार के खिलाफ बोलने की हिम्मत रखते हैं तो उन्हें दुनिया से गायब होने के लिए तैयार रहना चाहिए। चीन में सरकार किसी भी मस्जिद या चर्च को बंद कर सकती है और कोई भी उसका विरोध नहीं कर सकता। भारत में यदि ऐसा कुछ भी प्रयास किया जाता है ताे इसे साम्प्रदायिक करार दिया जाता है। चीन में लोकतंत्र पर बहस 19वीं सदी से चीनी राजनीति में एक प्रमुख वैचारिक युद्ध का मैदान रही है लेकिन चीन कभी उदार लोकतंत्र बन ही नहीं पाया। चीन एक सत्तावादी, एक दलीय देश के रूप में सामने आया। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिग ने जिस तरह से अधिकारों को नियंत्रण में लिया है और आजीवन राष्ट्रपति बने रहने का मार्ग प्रशस्त किया है इसे एक तानाशाही शासन ही कहा जाएगा। चीन में बोलने की आजादी, एकत्र होने की आजादी और धर्म की स्वतंत्रता सभी पर गम्भीर रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया है। वहां मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है।
देश के शीर्ष नेताओं का चुनाव किस तरह किया जाता है इस पर आम चीनी जनता को जानने का अधिकार नहीं है। चीन में मीडिया भी पूरी तरह से सरकारी है। चीन की गगनचुम्बी इमारतों, लगातार बढ़ती अरबपतियों की संख्या और चीन के विकास के पीछे कम्युनिस्ट शासन का अधिनायकवादी रूप छिपा हुआ है जबकि भारत की प्रगति के पीछे है स्वस्थ लोकतंत्र। भारत और चीन लगातार सीमा विवाद को लेकर टकराते रहते हैं। चीन अपने शक्तिशाली होने का प्रभुत्व दिखाना चाहता है। चीन ने हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों को ताक पर रखा। जबकि भारत ने हमेशा से ही पूंजीवादी और समाजवादी विचारधारा के संतुलन को अपना आधार बनाया। भारत और चीन दोनों एशिया ही नहीं विश्वभर में उभर रहे महत्वपूर्ण देशों में से एक है। दोनों के पास जन और धन की कमी नहीं है। भारत अब विश्व की तीसरी बड़ी अर्थव्यवस्था है। वह दिन दूर नहीं जब भारत स्वस्थ लोकतंत्र के बल पर चीन को पछाड़ देगा। बेहतर यही होगा कि चीन भारत को मित्र देश मान कर विवादों को शांति से हल करें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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