लोकतंत्र जिन्दाबाद-जिन्दाबाद - Punjab Kesari
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लोकतंत्र जिन्दाबाद-जिन्दाबाद

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अगर भारत जैसे देश में किसी से यह पूछा जाए कि विश्व में सबसे बड़ा लोकतांत्रिक राष्ट्र कौन है तो बिना शक हमारे देश का नाम ही सही जवाब होगा। इसमें कोई शक नहीं कि हमारे लोकतंत्र में अक्सर सत्ता और विपक्ष में टकराव रहता है, यह कोई नई बात नहीं बल्कि देश में 1952 के प्रथम चुनावों के बाद से ही आज तक चल रही परंपरा ही है। विरोध होते हुए भी सहमति बन जाना यही हमारे लोकतंत्र की सबसे बड़ी विशेषता है। पिछले दिनों संसद के उच्च सदन राज्यसभा की 3 सीटों के लिए गुजरात की बिसात पर जो चुनाव हुआ वह सचमुच यादगारी है, वह सचमुच एक उदाहरण है, वह सचमुच एक आदर्श है जो यह प्रमाणित करता है कि भारत में लोकतंत्र की जड़ें पूरी दुनिया में सबसे गहरी हैं, इसीलिए भारत को दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश कहा जाता है। चुनाव आयोग भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा पहरेदार है तभी तो यहां विपक्ष को अपनी आवाज बुलंद करने का मौका मिलता है और सबसे बड़ी खूबी यह है कि उसकी आवाज न केवल संसद में बल्कि स्वतंत्र संस्था चुनाव आयोग भी सुनता है और अपना फैसला सुनाता है।

ऐसे में यह कहना कि गुजरात राज्यसभा चुनावों में कांग्रेस के चाणक्य अहमद पटेल की जीत हुई है और यह बहुत महान जीत है तो इसकी गहराई में इस तथ्य को भी न भूलें कि चुनाव आयोग ने विपक्ष की आवाज को सुनते हुए सही फैसला किया। संविधान की व्यवस्था का पालन किया। एक सदस्य वोट डालते समय अपना वोट सार्वजनिक नहीं कर सकता, इसे लेकर चुनाव आयोग ने व्यवस्था का पालन करते हुए कांग्रेस की शिकायत का सम्मान किया। क्या कमाल है कि गुजरात से तीन सीटों के चुनाव में भाजपा के चीफ अमित शाह, केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी शान से जीते तो वहीं कांग्रेस के अहमद पटेल भी अंतिम क्षणों में जीते।किसी को जरा सा भी कोई शक हो तो वह शिकायत कर सकता है। कांग्रेस ने अपनी शिकायत रखी और चुनाव आयोग ने प्रमाणित कर दिया कि इस देश में कानून से ऊपर कोई नहीं है। सबसे बड़ी बात यह है कि चुनाव आयोग की व्यवस्था को एक झुग्गी-झोपड़ी वाले से लेकर एक कोठी वाला तक मानता है और वोट डालने के लिए घर से निकलता है। देश में अब बड़े-बड़े पर्चेनुमा मतपत्र नहीं रहे। मतपेटी की जगह ईवीएम ने ले ली है। चुनाव परिणाम चाहे पंचायत के हों या संसद के, अब पांच-पांच छह-छह दिन की मतगणना के बाद नहीं बल्कि चंद घंटों में आ जाते हैं।

यह हाइटेक व्यवस्था भी इसी चुनाव आयोग की देन है। हम फिर से गुजरात की बिसात पर तीन सीटों के लिए हुए राज्यसभा चुनावों को भारतीय लोकतंत्र की उस विजय के रूप में देख रहे हैं जिसे हर राजनीतिक दल को एक नजीर के रूप में स्वीकार करना चाहिए। यह जानते हुए भी कि कांग्रेस के छह सदस्य उसे छोड़ चुके हैं, सात बागी हो चुके हैं और वे भाजपा में आना चाहते थे उसके बावजूद व्यवस्था का अच्छे तरीके से निर्वाह हुआ। यह बात पक्की हो गई कि भाजपा कोई जोर-जबर्दस्ती नहीं कर रही थी बल्कि नियमों का पालन कर रही थी, क्योंकि जब कांग्रेस अपने 45 विधायकों को गांधीनगर से बंगलुरु ले गई और कर्नाटक के मंत्री शिवकुमार के यहां आयकर विभाग ने छापा मारा तो कांग्रेस की ओर से यही कहा गया कि भाजपा चुनाव जीतने के लिए किसी भी हद तक भी जा सकती है लेकिन उसकी यह शिकायत गलत निकली।
भाजपा ने अगर चुनाव जीतना होता तो चुनाव आयोग पर वह दवाब भी डाल सकती थी। हालांकि कांग्रेस यही आरोप लगाती रही। कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी तो यह इसका लोकतांत्रिक अधिकार था। अगर भाजपा के लोग चुनाव आयोग के पास अपना पक्ष रखने के लिए चले गए तो फिर कांग्रेस को सेक क्यों लग रहा था? कांग्रेस शिकायत कर ले तो जायज और भाजपा अपना पक्ष रखे तो नाजायज। चुनाव आयोग ने दूध का दूध और पानी का पानी कर दिया।

अगर यही सब कुछ पश्चिम बंगाल में हुआ होता तो सचमुच हिंसा हो जाती परंतु यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य था। वहां की मिट्टी में सचमुच एक व्यवस्था है, एक कानून है, एक नीति है जिसका हर कोई पालन करता है। यह गुजरात की पहचान है, हमारी व्यवस्था की पहचान है और चुनाव आयोग इसकी पहरेदारी रखता है तथा सही वक्त पर सही फैसला करता है। लिहाजा कांग्रेस भी समझ गई कि भविष्य में वह बिना मतलब किसी पर आरोप नहीं लगाएगी। सबसे पहले बधाई का पात्र कोई है तो वह भाजपा और मोदी सरकार है। जो संविधान के प्रति न केवल जवाबदेह बल्कि उसमें यकीन रखती है, उसे निभाती है और उसी में देश को जीने का अंदाज सिखाती है। कांग्रेस को यह बात बुरी लग सकती है जब तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का 1975 में चुनाव इलाहाबाद हाइकोर्ट ने अवैध घोषित कर दिया था तब श्रीमती गांधी ने इस्तीफा न देकर इमरजेंसी लगा दी थी। इस अव्यवस्था का जवाब कांग्रेस को देना पड़ा था तो यह भी हमारे लोकतंत्र की ही जवाबदेही थी। कहने का मतलब यह है कि व्यवस्थाओं का पालन करना ही होगा और जिस तरह से चुनाव आयोग यह भूमिका निभा रहा है, भारतीय लोकतंत्र को उस पर नाज है तो हम यही कहेंगे कि कांग्रेस जिंदाबाद, भाजपा जिंदाबाद, चुनाव आयोग जिंदाबाद और लोकतंत्र जिंदाबाद।

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