दिल्ली जो एक शहर था, आलम में इंतेखाब ! - Punjab Kesari
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दिल्ली जो एक शहर था, आलम में इंतेखाब !

​िदल्ली जो एक शहर था, आलम में इंतेखाब,
रहते थे यहां मुनताखिब ही रोजगार के,
इसको फ़लक ने लूट के पामाल कर दिया,
हम रहने वाले हैं इसी उजड़े दयार के!”
नामचीन उर्दू व फ़ारसी शायर, मीर तकी मीर ने दिल्ली के संबंध में यह शेर उस समय कहा था, जब फिरंगियों ने दिल्ली को तहस-नहस कर दिया था। इसी प्रकार से शेख़ मुहम्मद इब्राहीम जौक ने भी दिल्ली की खूबसूरती पर कहा था :
“दिल्ली के कूचे न थे, औराक-ए-मुसव्विर थे,
जो शक्ल नज़र आई, तस्वीर नज़र आई!”
दिल्ली की कुछ तासीर ही ऐसी है कि जो यहां आता है, इसी का हो जाता है। दिल्ली के कनॉट प्लेस पर एक लेखक ने अपनी किताब “दिल्ली का पहला प्यार : कनॉट प्लेस” में लिखा है कि यूं तो कहा जाता है कि रोम से अधिक ऐतिहासिक कोई अन्य शहर नहीं है, जो अनुचित है क्योंकि दिल्ली, जो सात बार उजड़ी और बसी, उससे अधिक ऐतिहासिक शहर कोई दूसरा नहीं है, क्योंकि इसकी ईंट, ईंट पर इतिहास लिखा है। वास्तव में इस बात में दम है, मगर दिल्ली के मालिकों ने इसकी परवाह नहीं की। दिल्ली के मौसम, दिल्ली के फल, दिल्ली के भोज, दिल्ली के स्मारक, दिल्ली के मेले, और जाने क्या-क्या लुभावनी चीजें हैं, जिनके कारण, कोई माने या न माने दिल्ली आज विश्व के शहरों की मलिका है।
बीते दिनों, दिल्ली के मालिकों में से एक सरकार ने प्रण लिया वह दिल्ली को पेरिस बनाएगी, ठीक ऐसे ही, जैसे एक बार मायावती ने लखनऊ के लिए कहा था। इस संबंध में पिछले दस वर्ष में केंद्र ने दिल्ली में अवश्य कुछ ऐसे काम किए हैं, जिन से दिल्ली वालों का सर गर्व से ऊंचा हुआ है। नया संसद भवन, नया प्रगति मंडप प्रगति मैदान, इंडिया गेट के लॉन, नया अमर जवान ज्योति स्मारक और न जाने क्या-क्या।
भले ही अंग्रेज़ों ने भारत पर राज किया, मगर कोई तो बात थी कि लाहौर, कोलकाता, कानपुर, इलाहाबाद, आगरा आदि को छोड़ कर दिल्ली को ही राजधानी बनाया।
भारत की राजधानी दिल्ली एक ऐसा शहर है, जो अपने समृद्ध इतिहास और विविध संस्कृति के लिए जाना जाता है। यहां की खूबसूरती और ऐतिहासिक जगहों को देखने के लिए देश से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी लोग आते हैं। राजधानी दिल्ली एक राजनीतिक केंद्र भी है। दिल्ली का प्राचीनतम उल्लेख महाभारत नामक महापुराण में मिलता है जहां इसका उल्लेख प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के रूप में किया गया है। इन्द्रप्रस्थ महाभारत काल में पांडवों की राजधानी थी। पुरातात्विक रूप से जो पहले प्रमाण मिले हैं उससे पता चलता है कि ईसा से दो हजार वर्ष पहले भी दिल्ली तथा उसके आस-पास मानव निवास करते थे।
अधिकतर इतिहासकारों का मानना है कि लगभग 50 ईसा पूर्व में मौर्य राजा ढिल्लू ने इस शहर की स्थापना की थी जिसकी वजह से उन्हीं के नाम पर इस शहर का नाम दिल्ली रखा गया। ढिल्लू राजा को धिल्लू और दिलू के नाम से भी जाना जाता था। वहीं कुछ लोगों का मानना है कि तोमर वंश के राजा ने इस जगह का नाम ढिली रखा, जो दिल्ली का पुराना नाम था।
इतिहास के अनुसार लगभग 736 ईस्वी में दिल्ली पर तोमर राजवंश का शासन हुआ करता था। इसके बाद दिल्ली में चौहान राजवंश का शासन काल शुरू हुआ। बाद में कुतुबुद्दीन ऐबक ने दिल्ली में गुलाम राजवंश की स्थापना की। इसके बाद दिल्ली पर तुगलक वंश ने शासन किया। सन् 1450 से 1526 तक लोधी वंश ने शासन संभाला। लोधी वंश के बाद साल 1526 में दिल्ली में मुगल वंश की स्थापना की। 1857 की क्रांति के बाद अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया।
आजादी से पहले जब देश पर ब्रिटिश शासन था। लगभग 1903 से लेकर आजादी तक दिल्ली पर ब्रिटिश राज था। आजादी के बाद दिल्ली को स्वतंत्र भारत की राजधानी घोषित किया गया। ब्रिटिश काल में इंडिया गेट और राष्ट्रपति भवन जैसी ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण किया गया। बाद में औपचारिक रूप से 13 फरवरी 1931 को देश की राजधानी बनीं। दिल्ली से पहले देश की राजधानी कलकत्ता थी। दिल्ली के कर्णधार अगर ठान लें तो वास्तव में यह पेरिस, रोम, न्यूयॉर्क और लंदन को पीछे छोड़ सकती है।

-फिरोज बख्त अहमद 

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