पंजाबियों के दम पर दिल्ली फतेह - Punjab Kesari
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पंजाबियों के दम पर दिल्ली फतेह

दिल्ली में भले ही हर समुदाय, जाति और धर्म के लोग आकर रहते हैं मगर…

दिल्ली में भले ही हर समुदाय, जाति और धर्म के लोग आकर रहते हैं मगर इसमें कोई संदेह नहीं कि दिल्ली में आज भी पंजाबियों का दबदबा कायम है और दिल्ली में किस पार्टी की सरकार बनेगी इसका फैसला भी पंजाबी वोटरों के द्वारा ही किया जाता है। 1993 में भी जब भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी तो मदन लाल खुराना को मुख्यमंत्री सिर्फ इसलिए ही बनाया गया था क्यांेकि वह पंजाबी समुदाय से थे और उन्होंने पंजाबियों और सिखों को भी भाजपा के समीप लाने में अहम भूमिका अदा की थी। उस समय भी दिल्ली भाजपा का अध्यक्ष पद पंजाबी के पास था। उसके बाद से लेकर आज तक दिल्ली में अध्यक्ष पद किसी पंजाबी को नहीं दिया गया। शायद भाजपा के इतने वर्षों तक सत्ता से बाहर रहने का यह भी एक कारण रहा है।

पिछले कुछ समय पहले दिल्ली भाजपा में वीरेन्द्र सचदेवा के रुप में एक बार फिर से पंजाबी अध्यक्ष दिया गया जिसने अपनी काबलियत के दम पर एक बार फिर से दिल्ली में पंजाबी समुदाय को एकजुट करते हुए भाजपा को करीब 26 वर्षों बाद पुनः दिल्ली की सत्ता दिलाई है जिसके चलते पंजा​िबयों की मांग भी उठने लगी है कि एक बार फिर से दिल्ली में मुख्यमंत्री का पद किसी पंजाबी को दिया जाना चाहिए।

इस बार हालांकि सिख वोटर दुविधा में फंसा दिखाई दे रहा था। जहां एक वर्ग प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सिख समुदाय के लिए किए गये कार्यों के चलते सिखों को भाजपा के पक्ष में वोट करने की अपील कर रहा था तो दूसरा वर्ग किसानी मुद्दों का समाधान ना होने, लम्बे समय से शम्भू बार्डर सील किए जाने, बन्दी सिखों की रिहाई जैसे मुद्दों पर भाजपा से नाराज भी था मगर चुनाव से कुछ दिन पूर्व राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा के द्वारा सिख सैल संयोजक चरनजीत सिंह लवली के संग दिल्ली के उन क्षेत्रों में जहां सिख बड़ी गिनती में रहते हैं जाकर सिखों को यह बताया गया कि सिखों को भाजपा को वोट क्यों करना चाहिए जिसमें उन्होंने 2014 में केन्द्र की मोदी सरकार आने के बाद से सिख समाज के लिए कार्यों की जानकारी भी दी और बाकी रहते कार्य भी जल्द पूरे करवाने का आश्वासन दिया जिसने सिख समुदाय का मन पूरी तरह से बदल कर रख दिया और जो लोग किसी शंका में भी थे उन्होंने भी भाजपा के हक में वोट करने का मन बना लिया। अब जीतकर आए सिख विधायकों की जिम्मेवारी बनती है कि वह सिखों की मांगों को गौर फरमाते हुए विधान सभा में उन्हें उठाएं।

इस बार भाजपा ने 3 सिखों को उम्मीदवार बनाया जिसमें से 2 कांग्रेस और एक अकाली दल से भाजपा में आया था मगर इस बार शायद वीरेन्द्र सचदेवा के अध्यक्ष रहते उन्हें सिख बाहुल क्षेत्रों से ही उम्मीदवार बनाया गया जिसका लाभ भाजपा को पूरी दिल्ली में मिला। अन्यथा सिख उम्मीदवारों को वह सीट दी जाती रही हैं जिसमें भाजपा का अपना कैडर भी चुनाव जीतने में समर्थ नहीं होता। दिल्ली के सिख अरविंद केजरीवाल से भी नाराज थे क्योंकि उन्होंने 10 साल में किसी भी सिख विधायक को मंत्री पद नहीं दिया।

पंजाबी भाषा के साथ सौतेला व्यवहार किया। पंजाबी अकादमी को पूरी तरह से ठप्प कर दिया गया। ऐसे अनेक मसले थे जिसके चलते पंजाबी खासकर सिख वोटर केजरीवाल को वोट नहीं करना चाहता था, कांग्रेस के साथ वह जा नहीं सकते ऐसे में भाजपा के सिवाए कोई दूसरा विकल्प उन्हें दिखाई नहीं दिया। इससे पहले भाजपा को गठबंधन के तहत अकाली दल की बैसाखियों के सहारे चलना पड़ता था और भाजपा का वर्कर, गैर सिख अकाली उम्मीदवारों को पसंद नहीं ंकरते थे जिसके चलते सिख उम्मीदवार हार जाया करते थे। इस बार दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी सदस्य भी ज्यादातर भाजपा समर्थक ही हैं जिसके चलते उन्होंने भी भाजपा उम्मीदवारों के लिए सिख वोटरों को एकजुट किया।

अरविन्दर सिंह लवली 3 बार शीला सरकार में मंत्री रहे हैं और इस बार उन्होंने भाजपा की टिकट पर गांधी नगर से अच्छे अन्तराल से विजय प्राप्त की है, तरविन्दर सिंह मारवाह भी अपने आप में एक नाम है और वह भी 3 बार विधायक के साथ-साथ शीला सरकार में संसदीय सचिव रहे हैं और उन्होंने दिल्ली के उप मुख्यमंत्री और आप सरकार में दूसरे स्थान के नेता मनीष सिसोदिया को पटखनी दी है, उनके काम करने का अंदाज भी निराला है जिसके चलते शायद वह दिल्ली कमेटी चुनाव भी बिना किसी पार्टी के ही जीत जाया करते हैं। वहीं मनजिन्दर सिंह सिरसा भी किसी से कम नहीं हैं, सिरसा को हराने में समूचा शिरोम​ि​ण अकाली दल, कई सिख जत्थेबंदियों के नुमाईंदे और यहां तक कि भाजपा के भी वह नेता जो टिकट ना मिलने के चलते अन्दर खाते चाहते थे कि सिरसा हार जाए बावजूद इसके सिरसा ने बड़े मार्जन के साथ चंदेला परिवार को मात दी है, दूसरा देश के गृहमंत्री की गुडबुक में भी सिरसा सबसे ऊपर हैं ऐसे में उन्हें सरकार में अहम जिम्मेवारी मिलने की पूरी उम्मीद की जा रही है। अब देखना होगा कि भाजपा हाईकमान पंजाबी और खासकर सिख विधायकों को कितना सम्मान देकर मंत्रिमण्डल में शामिल करता है।

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पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।