दिल्ली-कोलंबो अहम रिश्ते - Punjab Kesari
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दिल्ली-कोलंबो अहम रिश्ते

भारत और श्रीलंका के संबंध सदियों पुराने हैं। श्रीलंका का 3 हजार वर्षों का लिखित इतिहास मौजूद है।

भारत और श्रीलंका के संबंध सदियों पुराने हैं। श्रीलंका का 3 हजार वर्षों का लिखित इतिहास मौजूद है। हिन्दू प्राचीन कथाओं के अनुसार श्रीलंका को भगवान शिव ने बसाया था। श्रीलंका को भगवान शिव के पांच निवास स्थानों में से एक घर माना जाता है। शिव के पुत्र कार्तिकेय यानि मुरुगन यहां के सबसे लोकप्रिय हिन्दू देवताओं में से एक हैं। मुरुगन की पूजा यहां के न सिर्फ तमिल हिन्दू करते हैं बल्कि बोध, सिंहली और आदिवासी भी करते हैं। श्रीलंका के अलग-अलग स्थानों पर ऐसे कई मंदिर हैं जो हिन्दू और बोधों की साझा संस्कृति को दर्शाते हैं। रामायण दोनों देशों के बीच ऐसा संबंध स्थापित करती है जिसे कभी अलग नहीं किया जा सकता। श्रीलंका भारत का ही हिस्सा रहा है। अंग्रेजों के शासन ने फूट डालो और राज करो की नीति के तहत तमिल और सिंहलियों के बीच साम्प्रदायिक एकता को बिगाड़ा। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 4 फरवरी, 1948 को श्रीलंका को पूर्ण स्वतंत्रता मिली। जब श्रीलंका आजाद हुआ तो अंग्रेज सत्ता सिंहलियों के हाथ में देकर चले गए और तमिलाें को हाशिये पर धकेल दिया। तब से लेकर दोनों देशों के संबंध में बहुत उतार-चढ़ाव आते रहे लेकिन भारत ने हमेशा हर संकट की घड़ी में श्रीलंका की छोटे भाई की तरह मदद की। दोनों देशों में मतभेद होने के बावजूद दिल्ली-कोलंबो रिश्ते अहम बने रहे।
भारत ने पड़ोसी प्रथम की नीति अपनाते हुए हर समय संबंधों को मजबूत बनाने का ही काम किया लेकिन कुछ ताकतों ने दोनों देशों के संबंधों में कड़वाहट घोलने का काम किया। भारत और श्रीलंका के मध्य मतभेदों का एक मुख्य कारण श्रीलंकाई  तमिलों के अधिकारों का रहा। श्रीलंका में लिट्टे के बनने की कहानी काफी हद तक वैसी ही है जैसे दुनिया के कई और देशों और भारत के कुछ हिस्सों में जमीन, संसाधन और बराबरी की मांग पर कई सशस्त्र विद्रोह हुए और अभी भी चल रहे हैं। यहां की लड़ाई मुख्य तौर पर सिंहली और श्रीलंकाई तमिलों के बीच रही है। सिंहली यहां की मूल प्रजाति है जो बौद्ध धर्म मानती है। तमिल हिंदू हैं और इनमें भी दो तरह के लोग हैं। एक तो वे जो सदियों से यहां रह रहे हैं और दूसरे, जिन्हें ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान 19वीं और 20वीं सदी में चाय, कॉफी और रबर के बागानों आदि में काम करने के लिए दक्षिण भारत से ले जाया गया था।
लिट्टे ही भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या का दोषी था। लिट्टे अब नेस्तनाबूद हो चुका है। यद्यपि श्रीलंका को चीन ने अपने कर्जजाल में फंसा कर उसे तबाही के कगार पर ला दिया और उसके बंदरगाह को कब्जा लिया जिसके बाद श्रीलंका के राजनीतिज्ञों को होश आया। जब-जब श्रीलंका पर संकट आया भारत ने अपने पड़ोसी होने के कर्त्तव्य को ​िनभाया। कोरोना महामारी के दौरान भारत ने श्रीलंका को कोरोना वैक्सीन और अन्य जरूरी दवाइयां भेजीं। भारत ने हमेशा ही श्रीलंका में खून-खराबा रोकने में भी कूटनीतिक तौर पर मदद की लेकिन 2022 का आर्थिक संकट श्रीलंका के लिए सबक सरीखा था। जब श्रीलंका दाने-दाने को मोहताज हो गया और वहां की जनता श्रीलंका संसद के बाहर खड़ी होकर हिसक रुख अपनाने लगी तो श्रीलंका के शासक देश में फैली अराजकता के बीच भागते नजर आए। तब उन्हें एहसास हुआ कि कर्ज ले-लेकर घी पीने का परिणाम क्या होता है। भारत ने तब अलग-अलग तरीकों से करीब 4 अरब डालर की मदद दी थी। भारत की ओर से दी गई वित्तीय सहायता अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की कुल प्रत्याशित विस्तारित निधि सुविधा से कहीं ज्यादा थी। मोदी सरकार ने बेहद ही मानवीय और संवेदनशील कदम उठाया।
2022 की शुरुआत में श्रीलंका में लोगों को बिजली कटौती और ईंधन जैसी बुनियादी चीजों की कमी का सामना करना पड़ा। महंगाई का स्तर चरम पर पहुंच गया था। मुद्रास्फीति की दर प्रति वर्ष 50 प्रतिशत तक बढ़ गई थी। वहां बसों, ट्रेनों और चिकित्सा वाहनों जैसी जरूरी सेवाओं के लिए ईंधन की कमी हो गई थी। श्रीलंका के पास और आयात करने के लिए विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भंडार नहीं था। ईंधन की कमी के कारण पैट्रोल और डीजल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई थी। अप्रैल 2022 आते-आते लोगों का गुस्सा राजधानी कोलंबो में विरोध-प्रदर्शन के जरिए निकलना शुरू हो गया और देखते ही देखते ये विरोध प्रदर्शन पूरे देश में फैल गया था। अप्रैल-मई 2022 में श्रीलंका अपने इतिहास में पहली बार विदेशी ऋण पर ब्याज भुगतान करने में विफल रहा था।
भारत से मिली सहायता की वजह से श्रीलंका को 6 महीने तक जीवित रहने में मदद मिली। अगर भारत ने श्रीलंका को मदद नहीं दी होती तो उसे एक और रक्तपात का सामना करना पड़ता। आर्थिक संकट के दौरान चीन और किसी अन्य देश ने उसकी मदद नहीं की। इतना ही नहीं भारत श्रीलंका को दिए गए कर्ज के पुनर्गठन के लिए भी तैयार हो गया है। भारत श्रीलंका में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने पर भी सहमत गया है। अब श्रीलंका कुछ सम्भला है। उथल-पुथल के एक साल बाद श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रम सिंघे भारत आ रहे हैं। दोनों देशों के राजनयिक रिश्तों के  75 वर्ष भी पूरे हो रहे हैं। श्रीलंका ने हाल ही में भारत को अपना सच्चा साथी कहकर चीन को बता दिया है कि श्रीलंका के लिए भारत सबसे अहम है। श्रीलंका के राष्ट्रपति की यात्रा से दोनों देशों में कई मुद्दों पर द्विपक्षीय वार्ता होगी जिससे संबंधों को नई दिशा मिलेगी। वैसे भी श्रीलंका को चीन के मकड़जाल से मुक्त कराना भारत की बड़ी कूटनीतिक सफलता है।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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