राजमाता जीजाबाई का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद - Punjab Kesari
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राजमाता जीजाबाई का सांस्कृतिक राष्ट्रवाद

1999 की डाक टिकट में प्रकाशित चित्र अद्भुत है! जिजाऊसाहेब की गोद में बैठे बाल…

1999 की डाक टिकट में प्रकाशित चित्र अद्भुत है! जिजाऊसाहेब की गोद में बैठे बाल शिवाजीराजे हिंदवी स्वराज्य स्थापित करने के रणनीति समझ रहे हैं। जीजा माता उन्हें रामायण और महाभारत के माध्यम से धर्मसम्मत ज्ञान देते हुए मातृत्व के महत्वपूर्ण कर्त्तव्य निर्वहन कर रही हैं। दक्खिन की उपजाऊ ज़मीन में ‘स्वबोध’ के बीज बोने का जो कार्य जीजामाता ने किया, वह अद्वितीय है। इसकी फसल पूरे भारतवर्ष में लहलहाई। उन्होंने एक ऐसे साम्राज्य की स्थापना की नींव रखी जिसमें महिलाओं का सम्मान और समान योगदान रहा, जिसमें आक्रांताओं के अत्याचार के विरुद्ध कूटनीतिक विद्रोह और स्वधर्म के प्रति गौरव के भाव का पुनर्जागरण हुआ। वे मराठा साम्राज्य की ‘किंगमेकर’ रहीं। छत्रपति शिवाजी महाराज जी के जीवन को दिशा प्रदान करने वाली उनकी पथ प्रदर्शक जीजा माता ने शौर्यपूर्ण मातृत्व का परिचय दिया जो वर्तमान भारत की मातृशक्ति के लिए एक आदर्श है।

कुशल घुड़सवार, प्रबल प्रशासक और संवेदनशील शिक्षाविद् थीं जिजाऊसाहेब। सिंदखेड गांव में जन्मी जीजाबाई के पिता लखुजी जाधव सामंत थे। प्रजा की समस्याओं को हल करने का गुर उन्होंने बचपन से ही सीखा था। वर्तमान में शासन-प्रशासन में दायित्ववान महिलाएं उनकी इस कार्यकुशलता से बहुत कुछ सीख सकती हैं। उत्कृष्ट दक्षता से उन्होंने मराठा साम्राज्य का नीति-निर्माण किया। ऐसा साम्राज्य जो वास्तव में गणतंत्र-प्रजातंत्र का अनुकरणीय उदाहरण था। वैवाहिक जीवन में शाहजी भोंसले की अर्द्धांगिनी बन उन्होंने श्रेष्ठ गृहिणी की भूमिका निभाई। शाहजी जी को स्वराज्य की ओर मुड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मराठा साम्राज्य में स्वाभिमान की लहर जागृत करने से लेकर समस्त भारत में हिंदू नवचेतना क्रांति लाने तक का कार्य राजमाता जिजाऊ की दूरदर्शिता का परिणाम है। वास्तव में गृहस्थाश्रम में रहते हुए उन्होंने सहधर्मचारिणी की भूमिका निभाई।

बाल शिवाजी के पालन-पोषण में जीजामाता के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की झलकियां मिलती हैं। जिस प्रकार की कहानियां सुनकर वे बड़े हुए, उन कहानियों ने उनके व्यक्तित्व पर गहरी छाप छोड़ी। कथाएं जो महाभारत और रामायण से ली गईं थीं और जिनके माध्यम से धर्म और राष्ट्र के प्रति आदर बढ़ा। जीजामाता ने मराठा इतिहास के बार में विस्तृत रूप ज्ञान संचारित किया जिससे पूर्वजों के प्रति गौरव उत्पन्न हुआ। मातृत्व के द्वारा संस्कार स्थापित करने की परंपरा जो उन्होंने स्थापित की वह वंदनीय है। यदि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सोचें तो कुटुंब प्रबोधन का कार्य उन्होंने उसी समय निपुणता से किया। आज का भारत विदेशी उपनिवेशवाद से त्रस्त है । आवश्यकता है कि हम राजमाता जीजाबाई के जीवन का अनुसरण कर भारतीय पारिवारिक मूल्यों को संरक्षित करते हुए अपनी सांस्कृतिक जड़ों को मज़बूत करें।

एक शब्द में ‘मातोश्री’ थीं जीजामाता। पूरे मराठा साम्राज्य को उन्होंने अपनी संतान मानकर पोषित किया और एक सूत्र में पिरोया। सामाजिक समरसता को बढ़ावा देकर विभिन्न वर्गों को एकजुट करने का कार्य किया। राष्ट्रभक्ति और राजनीति में उन्होंने कभी भेद नहीं किया। 1668 में बाबाजी रामदेश कुलकर्णी को लिखे पत्र में जिस प्रकार उन्होंने न्यायशीलता का परिचय दिया वह प्रासंगिक है। एक रणनीतिक सलाह उन्होंने शिवाजी महाराज को दी कि कोंडाणा को शत्रुओं के हाथों में छोड़ना सुरक्षित नहीं है और उसे पुनः अधिकारक्षेत्र में लाना चाहिए। ऐसे उदाहरण उनके सामाजिक-राजनैतिक कौशल को उजागर करते हैं। साहस और त्याग से परिपूर्ण जीवन जिसमें अनेक कष्टों का सामना करते हुए भी धैर्य रखा। यह कोई सामान्य गुण नहीं। अपने संतान को राष्ट्र के लिए समर्पित करने वाली जीजामाता को नमन।

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