कोरोना वैक्सीन : एकाधिकार न हो - Punjab Kesari
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कोरोना वैक्सीन : एकाधिकार न हो

अगले वर्ष जुलाई तक देश के 25 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका मिलने संबंधी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री

अगले वर्ष जुलाई तक देश के 25 करोड़ लोगों को कोरोना का टीका मिलने संबंधी केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री डा. हर्षवर्धन  का वक्तव्य लोगों के लिए राहत भरा है। पहले तो उम्मीद व्यक्त की जा रही थी लेकिन अब सभी को भरोसा है कि कोरोना का टीका जल्द आने वाला है। मानवता की रक्षा के लिए कोरोना महामारी पर काबू पाना बहुत जरूरी है। यद्यपि भारत में संक्रमित लोगों का आंकड़ा 66 लाख से पार कर गया है और संक्रमण से एक लाख से ज्यादा मौतें हो चुकी हैं, लेकिन संक्रमण से होने वाली मौतों की दर में निरंतर कमी आ रही है और रिकवरी रेट भी बढ़ रहा है। यह सब राहत की खबर तो है लेकिन अब सर्दियों की शुरूआत होने वाली है, इस दौरान संक्रमण फैलेगा या वायरस फ्लैट होगा, इस बारे में अलग-अलग राय है। विशेषज्ञ तो सर्दियों में किसी भी वायरस के अधिक फैलने की बात कहते हैं। उधर लॉकडाउन अब पूरी तरह खत्म होने को है और लोगों की आवाजाही जोर पकड़ने लगी है। कोरोना की वैक्सीन तैयार करना बहुत जटिल और चुनौती भरी प्रक्रिया है, उससे ज्यादा कठिन उसे बाजार में लांच करना और उसे जरूरतमंदों तक पहुंचाना उससे भी अधिक चुनौतीपूर्ण है। केन्द्र सरकार ने इन सभी चुनौतियों से ​निपटने की तैयारी कर ली है। नीति आयोग की एक उच्चस्तरीय समिति टीके के उत्पादन, रखरखाव, भंडारण, सप्लाई और प्राथमिकता सम्बन्धित सारे प्रबंधों को देखेगी और इसकी रूपरेखा भी तैयार की जा रही है।
टीका आने पर पहली प्राथमिकता कोरोना योद्धाओं की होगी ​जिन्होंने अपनी जान की परवाह न करते हुए संक्रमित लोगों की जान को बचाया। कोरोना वायरस से युद्ध लड़ने वाले लगभग चार सौ डाक्टरों की जान जा चुकी है। नर्सें आैर अन्य मेडिकल स्टाफ भी प्रभावित हुआ। कई-कई घंटे काम करने वाले पुिलस अफसरों और कर्मियों ने भी अपनी जानें गंवाई। इसलिए सबसे पहला टीका उन लोगों को लगेगा जो कोरोना योद्धा के तौर पर मोर्चों पर डटे हुए हैं। जिस तरह जवान हर परिस्थिति   में मोर्चे पर तैनात होकर सीमाओं की रक्षा कर रहे हैं उसी तरह कोरोना वारियर्स ने काम किया है। वह भी सैनिकों की तरह देश के प्रहरी बने हैं।
यह भी अच्छी खबर है कि भारत में कोरोना वैक्सीन के ट्रायल सफल रहे हैं। दुनिया भर में 23 वैक्सीन के क्लीनिकल ट्रायल हो रहे हैं जो तीसरे चरण में पहुंच चुके हैं। रूस ने अपनी वैक्सीन स्पूतनिक-वी का इस्तेमाल करना भी शुरू कर दिया है। भारत वायोटेक इंटरनेशनल लिमिटेड और जायडस कै​डिला भारत में कोरोना की वैक्सीन बनाने की दिशा में आगे हैं। इसके अलावा आधा दर्जन भारतीय कम्पनियां कोविड -19 के वायरस के ​लिए वैक्सीन विकसित करने में जुटी हुई हैं। इन कम्पनियों में से एक सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया है। वैक्सीन के डोज के उत्पादन और दुनिया भर में बिक्री के लिहाज से यह दुनिया की सबसे बड़ी कम्पनी है।
आक्सफोर्ड लंदन में अपनी वैक्सीन का इंसानों पर ट्रायल कर रहा है। अमेरिका ने रेमडेसिविर दवा को मंजूरी दी है। चीन ने भी वैक्सीन ईजाद करने का दावा किया है। इन सभी परीक्षणों के ट्रायल की सफलता के दावों ने आशा की किरणें फैला दी हैं। कोरोना वैक्सीन का दूसरा पहलू भी है। जो कम्पनी सबसे पहले सुरक्षित दवा तैयार कर लेगी वह अकेले तो पूरी दुनिया में जल्द सप्लाई नहीं कर सकती है। बाजार में उस कम्पनी का एकाधिकार होगा। ऐसे में मानवता की रक्षा के लिए जल्द और सस्ती दवा उपलब्ध नहीं हो सकती। इस मामले में भारत और दक्षिण अफ्रीका ने बहुत ही जायज स्वर बुलंद किए हैं।
भारत और दक्षिण अफ्रीका ने विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) को पत्र लिखकर विकासशील देशों के लिए दवाओं के उत्पादन और उनके आयात को सरल बनाने के ​लिए बौद्धिक सम्पदा नियमों से मुक्त करने का आग्रह किया है। डब्ल्यूटीओ ​वैश्विक स्तर पर पेटेंट, ट्रेडमार्क और अन्य इंटेलैक्चुअल प्रापर्टी रूल्स को नियंत्रित करता है। विकासशील देश महामारी से प्रभावित हैं और पेटेंट सहित बौद्धिक सम्पदा अधिकार सस्ती दवा के प्रावधान में बाधा बन सकते हैं। सभी विकासशील देशों को भारत और दक्षिण अफ्रीका की मुहिम का समर्थन करना चाहिए और डब्ल्यूटीओ को भी इस मांग पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए। साधारणतय सभी ट्रायल होने के बाद किसी वैक्सीन को बाजार तक पहुंचने में कम से कम 6 वर्ष का समय लगता है लेकिन कोरोना वैक्सीन बनाने के लिए दुनिया के पास इतना समय नहीं है क्योंकि इस वायरस ने मानवता को तेजी से चपेट में लिया है। इससे अर्थव्यवस्थाएं भी धराशायी हो चुकी हैं, लोगों के रोजगार  छिन चुके हैं और दुनिया भर की जीडीपी में दस प्रतिशत से ज्यादा गिरावट आ चुकी है। भारत पहले स्पष्ट कर चुका है  कि  अगर भारत वैक्सीन तैयार कर लेता है तो वह इसे सभी देशों को देगा। इस समय मानवता की रक्षा के लिए नियमों को सरल बनाने की जरूरत है क्योंकि वैश्विक स्तर पर संक्रमित लोगों का शोषण नहीं होना चाहिए। इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। दुख की घड़ी में ड्रग्स कम्पनियों काे भी चाहिए कि व्यापार के साथ-साथ मानवता की रक्षा के लिए अहम भूमिका निभाएं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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