देश में कोरोना महामारी अब निढाल होने की तरफ बढ़ रही है क्योंकि कुछ राज्यों को छोड़ कर शेष भारत में स्थिति सामान्य होने की तरफ बढ़ रही है। परन्तु हमारा मानना है कि कोरोना का जड़ से खात्मा करना होगा। जब तक पहले वाली स्थिति अर्थात् जीरो लैवल नहीं बनता तब तक कुछ भी कहना सम्भव नहीं है। सरकार के प्रयास न सिर्फ गम्भीर बल्कि प्रशंसनीय हैं और पूरी दुनिया की नजर में कोरोना को परास्त करने में भारत एक उदाहरण बन चुका है।
इसका सन्देश सीधे देश के सर्वोच्च संस्थान संसद की तरफ से भी आया है। संसद के दोनों सदनों की कार्यवाही अब पहले की तरह अपनी पूर्व निर्धारित समय-सारिणी के अनुसार हुआ करेगी और राज्यसभा व लोकसभा अपने-अपने भवनों में यथा समय बैठक शुरू किया करेंगी। संसद के बजट सत्र का दूसरा चरण 8 मार्च से शुरू हो चुका है जिसमें बजट (वित्त विधेयक) अभी पारित किया जाना है। संसद का यह फैसला देशवासियों में यह विश्वास भी जगाता है कि यदि कोरोना संक्रमण से दूर रहने के लिए नियत लोकाचार का पालन किया जाये तो इसका डर दूर भाग सकता है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि कोरोना वैक्सीन लगवाने का दौर शुरू हो चुका है जिससे आम लोगों में कोरोना पर विजय प्राप्त करने का संकल्प दृढ़ हो रहा है। कोरोना वैक्सीन की इजाद में भारत ने जो अग्रणी भूमिका निभाई है उसका लोहा पूरा विश्व मान रहा है। यदि बेबाकी के साथ इस तथ्य का विश्लेषण किया जाये तो भारत आज महामारियों पर नियन्त्रण करने वाले देशों की शृंखला में शामिल हो चुका है। हमने देखा कि किस प्रकार दिल्ली में 3 महीने पहले रह-रहकर कोरोना की लहरें परेशान कर रही थीं। कमोबेश देश में भी विशेष रूप से महाराष्ट्र में हालात खराब थे, लेकिन अब जबकि दवाई आ चुकी है तो ढिलाई नहीं होनी चाहिए। पीएम मोदी के इस मंत्र को याद रखना होगा और सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी करना होगा। जब कोरोना देश से पूरी तरह खत्म होगा तभी सामान्य जीवन शुरू हो सकेगा। क्योंकि लोग महसूस कर रहे हैं कि सामान्य हालात होने में जोखिम नहीं उठाया जा सकता। यहां तक की महाराष्ट्र के नासिक में वीकैंड पर लॉकडाउन का ऐलान किया गया है।
निश्चित रूप से चिकित्सा क्षेत्र ऐसी ही कार्य स्थली है जिसमें लगे हुए लोगों का उद्देश्य मानव जीवन को सुरक्षित रखना होता है। अतः आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीय वैक्सीन पूरी दुनिया में सबसे सस्ती है और कारगर भी है। कोरोना के सन्दर्भ में स्वास्थ्य मन्त्री डा. हर्षवर्धन ने यह कह कर कि अब यह बीमारी संकुचित या खत्म होने की तरफ बढ़ रही है, साफ कर दिया है कि वैक्सीन लगवाने के प्रथम चरण में साठ साल से ऊपर के उन बुजुर्गों को सबसे पहले निर्भय किये जाने की जरूरत है जिनके शरीर में प्रतिरोधी क्षमता का क्षरण समय के साथ-साथ होता जाता है। सरकार की यह नीति पूरी तरह व्यावहारिक है जो भारत की परिस्थितियों को देख कर बनाई गई है परन्तु वैक्सीन को लेकर जो राजनीति पिछले दिनों हुई, उसे किसी भी तौर पर स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि कुछ राजनीतिक दलों ने इसके बहाने समाज के कुछ तबकों के भीतर भय भरने का कार्य किया। अब संसद का सत्र शुरू हो चुका है और सबसे पहले इसी के माध्यम से भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को सन्देश जाना चाहिए कि भारत कोरोना के शिकंजे से बाहर निकल चुका है और लोगों ने इसे हराने में अपने हौंसले के बूते पर पूरी दुनिया के सामने एक उदाहरण प्रस्तुत किया है।
बेशक महाराष्ट्र व केरल जैसे राज्यों से अभी भी कुछ कोरोना मामले आ रहे हैं परन्तु वहां की राज्य सरकारों का यह दायित्व बनता है कि वे स्थानीय स्तर पर ही इसके नियन्त्रण के लिए सख्त कदम उठा कर आम लोगों को उनका पालन करने के लिए मजबूर करें। ऐसा हो भी रहा है। महाराष्ट्र सरकार तो इस राज्य के विभिन्न शहरों में इस बीमारी के पुनः प्रकट होने पर वे ही नियम लागू कर रही है जो शुरू में लागू किये गये थे परन्तु गौर से देखा जाये तो अब भी कुछ ऐसे स्रोत हैं जो इस बीमारी का डर पैदा करने से पीछे नहीं हट रहे हैं। एक अंग्रेजी टीवी चैनल तो अनायास ही कोरोना से बचाव के नाम पर लोगों में डर पैदा करने का भाव भी भर रहा है। इससे बचे जाने की जरूरत है। कहने का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि कोरोना नियमों को तिलांजलि दी जाये बल्कि आशय यह है कि नियमों के पालन करने के लाभ गिनाये जायें और लोगों को प्रेरित किया जाये कि वे कोरोना को हरा सकते हैं।
इस सन्दर्भ में दिल्ली के स्वास्थ्य मन्त्री सत्येन्द्र जैन का यह कथन भी महत्वपूर्ण है कि विशषज्ञों की राय में कोरोना महामारी अब स्थानीय बीमारी के रूप में परिवर्तित हो चुकी है। इसका मतलब यही है कि कोरोना को स्थानीय स्तर पर घेर कर भगाया जा सकता है। मगर केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री का यह कर्त्तव्य भी बनता है कि देश में कोरोना की स्थिति के बारे में वह संसद में एक वक्तव्य दें जिससे समस्त भारतवासी वास्तविकता को पहचान सकें। इस बीमारी ने देश की अर्थव्यवस्था से लेकर सामजिक ताने-बाने को जिस तरह ध्वस्त किया है उसे देखते हुए आम लोगों में आत्मविश्वास जगाने की सख्त जरूरत है। अतः संसद से ही यह आवाज आनी जरूरी है कि ‘गो-कोरोना-गो’ जो भारत मलेरिया से लेकर पोलियो व चेचक को भगाने के लिए दृढ़ संकल्प्ति होकर दुनिया ( विशेषकर अफ्रीकी व एशियाई देशों को ) को राह दिखा सकता है वह कोरोना के सन्दर्भ में भी ऐसी ही प्रतिबद्धिता जाहिर कर सकता है। वैसे गो-कोरोना-गो का नारा केन्द्रीय मन्त्री व रिपब्लिकन पार्टी के नेता श्री रामदास अठावले ने जब दिया था तो उसे मजाक में लिया गया था मगर आज यह हककीत बन कर उभर रहा है।