कानूनों में सुधार लगातार चलने वाली प्रक्रिया है। समय के साथ-साथ कानूनों में बदलाव आवश्यक होते हैं। वक्फ बोर्ड संशोधन विधेयक पर देशभर में चर्चा चल रही है। वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों को लेकर विवाद कोई नया नहीं है। अंग्रेजों के शासनकाल के दौरान भी वक्फ की सम्पत्ति पर कब्जे को लेकर विवाद इतना बढ़ गया था कि मामला लंदन स्थित प्रिवी कौंसिल तक जा पहुंचा था। ब्रिटेन में चार जजों की पीठ ने वक्फ को अवैध करार दे दिया था। हालांकि इस फैसले को ब्रिटिश भारत की सरकार ने नहीं माना था। आजादी के बाद 1954 में पंडित जवाहर लाल नेहरू सरकार के समय वक्फ एक्ट पास किया गया था जिसका मकसद वक्फ से जुड़े कामकाज को सरल बनाना और जरूरी प्रावधान करना था। इस एक्ट में वक्फ की सम्पत्ति के दावे को लेकर, रखरखाव तक को लेकर प्रावधान किए गए। 1964 में केन्द्रीय वक्फ परिषद का गठन किया गया और वर्ष 1995 में वक्फ एक्ट में बदलाव किया गया और हर राज्य और केन्द्र शासित प्रदेेेश में वक्फ बोर्ड बनाने की अनुमति दी गई।
वक्फ संशोधन विधेयक जब लोकसभा के मानसून सत्र में पेश किया गया तो काफी हंगामा हुआ। तब इसे संयुक्त संसदीय समिति के पास विचार के लिए भेजा गया। संयुक्त संसदीय समिति की बैठकों में भी हंगामा होता रहा। अंततः संशोधन विधेयक को लेकर विपक्षी दलों की सारी सिफारिशों को समिति के अध्यक्ष जगदम्बिका पाल ने खारिज कर दिया। जबकि सत्ता पक्ष के सांसदों की 14 सिफारिशों को स्वीकार कर लिया गया। विपक्ष आरोप लगा रहा है कि समिति के अध्यक्ष ने अलोकतांत्रिक प्रक्रिया अपनाई और उन्हीं सुझावों को स्वीकार किया जो सरकार चाहती थी। हैरानी की बात तो यह भी है कि विपक्षी सांसदों द्वारा दिए गए 44 सुझावों में से क्या एक भी सुझाव विचार करने योग्य नहीं था। अब वक्फ संशोधन विधेयक को मंजूरी के लिए संसद में रखने का रास्ता साफ हो गया है। संशोधन बिल में चार महत्वपूर्ण बदलाव किए जा रहे हैं। पहला बड़ा बदलाव तो यह है कि कोई सम्पत्ति वक्फ की है या नहीं। अब यह राज्य सरकार की ओर से नामित जिला अधिकारी से बड़ा अधिकारी तय करेगा। पहले यह अधिकार जिला अधिकारी के पास होता था।
संशोधन बिल में दूसरा बदलाव ये है कि राज्य वक्फ बोर्ड और केन्द्रीय परिषद में दो गैर मुस्लिम सदस्यों का होना जरूरी होगा। पहले ये व्यवस्था नहीं थी। पदेन सदस्यों को इससे अलग रखा गया है। मतलब नामित सदस्यों में से दो सदस्यों का गैर मुस्लिम होना अनिवार्य होगा और इससे फर्क नहीं पड़ेगा कि पदेन सदस्य गैर मुस्लिम है या नहीं। संशोधन बिल में तीसरा बदलाव ये है कि वक्फ सम्पत्ति को पंजीकृत होना अनिवार्य होगा यानी पहले की भी जो वक्फ सम्पत्ति है उसका रजिस्टर्ड होना ज़रूरी होगा अन्यथा उन सभी सम्पत्तियों का फैसला बिल में तय मानकों के अनुसार होगा। पहले ऐसी व्यवस्था नहीं थी। संशोधन बिल में चौथा बदलाव ये है कि वक्फ किसी जमीन पर दावा करता है तो उस जमीन का दावेदार ट्रिब्यूनल के साथ ही रेवेन्यू कोर्ट, सिविल कोर्ट और हाईकोर्ट में अपील कर सकता है, जबकि पहले वो केवल ट्रिब्यूनल में ही अपील कर सकता था।
बोर्ड में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भी सुनिश्चित किया जाएगा। कई मुस्लिम संगठन वक्फ बोर्ड में बदलाव का विरोध कर रहे हैं। मुस्लिम समुदाय का बड़ा वर्ग यह महसूस करता है कि वक्फ बोर्ड की सम्पत्तियों को कुछ लोग अपनी निजी जागीर और परिवार की सम्पत्ति मान बैठे हैं। मौजूदा कानूनों को बदलने की मांग भी अनेक मुस्लिम बुद्धिजीवियों द्वारा की गई थी। अब सवाल यह उठ रहा है कि अगर विपक्ष का कोई भी सुुझाव स्वीकार नहीं किया गया तो फिर संयुक्त संसदीय समिति का कोई मतलब नहीं रह जाता। सबसे विवादित मुद्दा वक्फ सम्पत्तियों पर स्वामित्व का है। वक्फ बोर्ड कुछ ऐसी जमीनों पर हक जता रहा है जहां सदियों से हिन्दू बहुसंख्यक आबादी रह रही है। बदलाव का अर्थ यही होता है कि कानून न्यायपूर्ण हो। बेहतर यही होता कि विपक्ष को भी विश्वास में लिया जाता। वक्फ की सम्पत्तियों का लाभ समाज के गरीबों, विधवाओं और बेसहारा बच्चों के कल्याण के लिए होना चाहिए। इसलिए पसमांदा समाज के प्रतिनिधियों की भागीदारी भी जरूरी है।
– आदित्य नारायण चोपड़ा