लोकतन्त्र के जश्न में कांग्रेस ! - Punjab Kesari
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लोकतन्त्र के जश्न में कांग्रेस !

संसदीय लोकतन्त्र में चुनावी विजय का अंक गणित ही अन्तिम रूप से महत्व रखता है क्योंकि इसी के

संसदीय लोकतन्त्र में चुनावी विजय का अंक गणित ही अन्तिम रूप से महत्व रखता है क्योंकि इसी के आधार पर सरकार का गठन होता है। इन चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार चुनावी बिसात बिछाकर विपक्ष विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी को परास्त किया है उससे 134 वर्ष पुरानी इस पार्टी के अस्तित्व पर ही सवालिया निशान खड़ा हो गया है परन्तु 2019 के चुनाव इसलिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं कि आजादी के बाद पहली बार किसी गैर-कांग्रेस पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार को ही लोगों ने पुनः अगले पांच वर्षों के लिए चुना है और विपक्ष को कांग्रेस पार्टी के पुनः लोकसभा में दस प्रतिशत से भी कम सदस्य भेजे हैं जिससे इसे पुनः दूसरी बार आधिकारिक तौर पर ‘विपक्षी नेता’ का पद नहीं मिलेगा। कांग्रेस की कमान इस दौरान राहुल गांधी के हाथ में ही रही इसलिए मीडिया ने उनके नेतृत्व पर सवाल खड़ा करने में जरा भी देर नहीं की। 
कांग्रेस कार्यसमिति की आज चुनाव परिणामों पर विचार करने के लिए हुई बैठक में श्री गांधी ने अपने इस्तीफे की पेशकश की तो समिति ने एकमत से इसका विरोध किया और चुनावों में कांग्रेस का पक्ष जोरदार रखने के लिए उनकी प्रशंसा ही नहीं की बल्कि पार्टी संगठन की पुनर्संरचना करने के लिए उन्हें अधिकृत भी किया। कांग्रेस पर ‘वंशवाद’ का आरोप लगता रहा है। यह सत्य भी है क्योंकि पार्टी का शक्ति केन्द्र आजादी के बाद से लेकर अभी तक यही परिवार है परन्तु यह भी सत्य है कि इस परिवार के बिना कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व की कल्पना नहीं की जा सकती। पूर्व में जब भी एेसा हुआ कांग्रेस का वही खंड ‘कांग्रेस’ कहलाया जिसमे इस परिवार की मौजूदगी थी। इसके बारे में विस्तार से लिखने की आवश्यकता नहीं है। यह भी हकीकत है कि श्री राहुल गांधी के नेतृत्व में हिन्दी भाषी उत्तर भारत में कांग्रेस पार्टी का इन चुनावों में सफाया हो गया। 
केवल पंजाब ही ऐसा राज्य रहा जहां यह पार्टी अपना दबदबा कायम रखने में कामयाब रही। बिना शक राहुल गांधी अमेठी से बुरी तरह परास्त हुए, परन्तु दक्षिण भारत के केरल राज्य की वायनाड सीट से उन्होंने पूरे देश में सबसे अधिक मतों (आठ लाख से अधिक) से जीत भी दर्ज की। उत्तर भारत से लेकर पूर्वी और पश्चिमी भारत तक में कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा के सामने कोई ठोस विकल्प विमर्श पेश नहीं कर पाई और राहुल गांधी का व्यक्तित्व नरेन्द्र मोदी की शख्सियत के आगे बहुत छोटा पड़ गया परन्तु दक्षिण के राज्यों तमिलनाडु और केरल में स्थिति बिल्कुल उलट थी जो यहां से मिले चुनाव परिणामों से स्पष्ट होती है परन्तु भारत का प्रधानमन्त्री वही बनता है जिसे भारत के अधिसंख्य राज्यों के लोग अपना नेता मानते हैं और उत्तर-पूर्व के पहाड़ी सीमान्त राज्यों तक ने श्री नरेन्द्र मोदी को नेता स्वीकार किया है। अतः इन चुनावों में श्री राहुल गांधी पूरी तरह असफल रहे हैं परन्तु यह भी हकीकत है कि पूरे चुनावों में भाजपा को राष्ट्रीय स्तर पर श्री राहुल गांधी ने ही कड़ी टक्कर देने की कोशिश की और प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी को सीधे निशाने पर लिया, जिसमें वह बुरी तरह असफल रहे और अमेठी से अपनी सीट तक गंवा बैठे। 
जाहिर है वह मतदाताओं में अपने कार्यों और राजनैतिक विमर्श से वह ऊर्जा नहीं भर सके जिससे आवेशित होकर मतदान केन्द्रों में अनुकूल माहौल बनता। यह भी कहा जा सकता है कि चुनावों का परिमाम विपक्ष के ही विरुद्ध उपजे भाव से निकला है, यह सब सत्य है मगर इसके आधार पर कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन को जरूरी कैसे माना जा सकता है। राजनैतिक दलों के जीवन में ऐसे उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। इसका सबसे बड़ा उदाहरण भाजपा के सर्वोच्च नेता रहे स्व. अटल बिहारी वाजपेयी थे। वह दीन दयाल उपाध्याय की मृत्यु के बाद 1968 से 1973 तक जनसंघ के अध्यक्ष रहे और उसके बाद 1980 में इसके भाजपा में परिवर्तित होने के बाद 1986 तक अध्यक्ष रहे। उनकी अध्यक्षता में हुए हर चुनाव में जनसंघ या भाजपा की ताकत विभिन्न विधानसभाओं से लेकर लोकसभा तक में लगातार घटती रही थी। इसके बावजूद वह अपनी पार्टी में लोकप्रिय ही रहे मगर वह अपनी पार्टी के सिद्धान्तों पर बाकायदा अड़े रहे थे। असली नेता वही होता है जो सिद्धान्तों से पराजय के क्षणों में भी समझौता नहीं करता जिससे उसकी पार्टी का उस पर भरोसा नहीं टूटता। 
बिना शक कांग्रेस की हार के कारणों पर वृहद चर्चा होनी चाहिए क्योंकि छह महीने पहले ही तीन राज्यों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में कांग्रेस के चुनाव जीतने पर मीडिया के लोग ही राहुल गांधी की प्रशांसा में ढोल-नगाड़े बजा रहे थे। राजनीति में प्रत्येक हार पार्टी और उसके नेतृत्व को आत्मनिरीक्षण और विश्लेषण करने की प्रेरणा देती है क्योंकि हारे हुए सिपाही की वर्दी तक में हर आदमी कमियां निकालने लगता है और वक्त जब बुरा होता है तो मरीज भी दवाएं बताने लगते हैं। भारतीय जनता पार्टी यदि आज इस देश की सशक्त सत्ताधारी पार्टी बनी है तो पिछली हारों से घबरा कर नहीं बनी है बल्कि हर हार से सबक लेकर ही बनी है। 
लोकतन्त्र में सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है क्योंकि इसके बिना लोकतन्त्र बेसुरा ही कहा जाता है। बांसुरी से तभी कर्णप्रिय धुन निकलती है जब स्वर स्रोतों को खोला और बन्द किया जाता रहता है। अतः कांग्रेस के भविष्य की चिन्ता कांग्रेस पार्टी को ही करने देनी चाहिए और नई सरकार के गठन के लिए आम जनता द्वारा दिये गये जनादेश का जश्न मनाया जाना चाहिए जो अब शुरू हो चुका है। श्री नरेन्द्र मोदी को भाजपा के सभी सहयोगी दलों ने भी अपना नेता कबूल कर लिया है।

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