उलझते प्रश्न सुलगता कश्मीर - Punjab Kesari
Girl in a jacket

उलझते प्रश्न सुलगता कश्मीर

NULL

कश्मीर समस्या का जितना हल खोजने की कोशिश की जा रही है उतनी ही यह और ज्यादा उलझती जा रही है। राज्य में आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ाने में पड़ोसी पाकिस्तान लगातार लगा हुआ है और वह राज्य के लोगों में भी भारत विरोधी भावनाएं भड़काने में लगा हुआ है मगर किसी भी नजरिये से कश्मीर की समस्या का कोई धार्मिक पक्ष नहीं है। हिन्दू-मुसलमान के आधार पर कश्मीर समस्या को देखने का नजरिया जो लोग रखते हैं वे पाकिस्तानी नजरिये का ही समर्थन करते हैं क्योंकि पाकिस्तान की कोशिश 1947 से ही रही है कि वह इस सूबे की मुस्लिम बहुल रियाया के बूते पर इस पर अपना हक जमाने की नाकाम कोशिश करे। उसके इस नजरिये को खुद जम्मू-कश्मीर के लोगों ने ही शुरू से नकारा है और साफ किया है कि कश्मीरी संस्कृति भारत की मिली-जुली संस्कृति का ही एेसा विशिष्ट अंग है जिसमें दोनों धर्मों की रवायतें एक-दूसरे के साथ सौहार्दता रखते हुए सदियों से साथ-साथ चल रही हैं मगर पिछले कुछ सालों से सूबे में जिस तरह की घटनाएं हो रही हैं वे आतंकवादियों के उन मंसूबों का नतीजा है जो राज्य के लोगों के मूल चरित्र के विरुद्ध हैं और बताती हैं कि दहशतगर्दी को तिजारत बना कर कुछ ताकतें धरती के इस स्वर्ग को जहन्नुम में तब्दील करने पर आमादा हैं।

बिना शक भारत में भी एक पक्ष है जो सोचता है कि कश्मीर समस्या का हल सैनिक उपायों से हो सकता है। यह सोच ही आम कश्मीरियों की भारतीयता को कम करके आंकने की गलती कर जाती है और लोकतान्त्रिक प्रक्रिया के विचार-विमर्श के कारगर हथियार को बेकार मान लेती है। इससे उन लोगों को ही ताकत मिलती है जो आतंकवाद के जरिये कत्लोगारत का बाजार गर्म करके आम नागरिकों को शान्ति प्रक्रिया से बाहर रखना चाहते हैं। क्या इस बात पर कभी गौर किया गया है कि जो मुस्लिम कश्मीरी नागरिक 1947 में पाकिस्तान बनने के ही खिलाफ थे उनमें से कुछ को आज पाकिस्तानी एजेंट भारत की जगह पाकिस्तान का झंडा पकड़ा रहे हैं। वह भी इस हकीकत के बावजूद कि पिछले तीस साल से कश्मीर घाटी में फौज मौजूद है और आतंकवाद के खिलाफ मुहिम चला रही है! क्या इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि राज्य की सियासत में शामिल कुछ राजनैतिक दलों की एेसे तत्वों के साथ मिली-भगत बन चुकी है? अगर एेसा नहीं है तो 1971 में पाकिस्तान को बीच से चीर कर दो भागों में बांटने वाली भारत की महान और बहादुर सेना कश्मीर के भीतर से ही आतंकवादियों का सफाया करने में क्यों पसीने-पसीने हो रही है? दरअसल कश्मीर केवल कोई जमीन का टुकड़ा नहीं है बल्कि इसमें बसने वाले लाखों लोगों का घर है जिनके लिए भारत उतना ही महान है जितना कि पंजाब या उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए।

यदि एेसा नहीं होता तो क्यों इसके लोग भारतीय अर्थव्यवस्था से लेकर शासन व्यवस्था के हर अंग में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते और एेलान करते कि वे उस महाराजा हरिसिंह की रियासत की रियाया रहे हैं जिसने उसका विलय कुछ खास शर्तों के साथ भारतीय संघ में किया था। इन शर्तों से हमें परेशान होने की जरूरत बिल्कुल नहीं है क्योंकि इनमें सबसे पहले यही लिखा हुआ है कि पूरा सूबा भारत की भौगोलिक सीमा का हिस्सा है। यदि एेसा न होता तो जम्मू-कश्मीर विधानसभा में आज भी पाक अधिकृत कश्मीर के हिस्से की तीस से अधिक सीटें खाली न पड़ी रहतीं लेकिन इतना सब होने के बावजूद पाकिस्तान लगातार यहां दहशतगर्दी फैलाने और लोगों में भारत विरोधी भावनाएं भड़काने में लगा हुआ है। पाकिस्तान यह काम दुतरफा कर रहा है। एक तरफ सैनिक स्तर पर और दूसरी तरफ जहनी स्तर पर। जाहिर है इसका मुकाबला करने के लिए हमें दोनों स्तरों पर ही काम करना पड़ेगा और आम कश्मीरी का विश्वास जीतना पड़ेगा। यह विश्वास 1989 तक कायम था। बेशक इक्का-दुक्का घटनाएं होती रहती थीं मगर भारतीय सेना की इज्जत और सम्मान में कश्मीरी कोई कमी नहीं रखते थे।

वे उन्हें अपना रखवाला समझते थे। यही वजह थी कि जब भी पाकिस्तान की तरफ से कोई आक्रमणकारी गतिविधि होती थी तो सबसे पहले इस राज्य की घुमन्तु बकरवाल जाति (गुर्जर) के लोग ही इसकी सूचना सेना के शिविरों तक पहुंचाते थे मगर आज पाकिस्तान के एजेंटों ने हालत यह कर दी है कि रमजान के महीने में जब गृहमन्त्री राजनाथ सिंह ने घाटी के भीतर सैनिक कार्रवाइयों पर इकतरफा प्रतिबन्ध लगाने की घोषणा की तो उसे भी ध्वस्त करने के लिए आतंकवादियों ने एक मशहूर बेबाक पत्रकार शुजात बुखारी और एक सैनिक औरंगजेब की अलविदा जुम्मे के दिन हत्या कर दी। इसका सबब इसके सिवाय और क्या हो सकता है कि शान्ति प्रक्रिया में आम नागरिकों को शामिल न किया जाये। असल में आतंकवादी यही चाहते हैं कि कश्मीरी नागरिकों को अलग-थलग करके उनकी लोकतान्त्रिक प्रणाली को चौपट कर दिया जाये और राजनाथ सिंह सरीखे उदार दृष्टि के नेता के शान्ति स्थापना के हर प्रयास पर पानी फेर दिया जाये। यह सब बहुत उलझे हुए प्रश्न हैं जिनका उत्तर तुरत-फुरत कार्रवाईयों से नहीं मिल सकता है बल्कि एक दीर्घकालिक नीति बना कर ही मिल सकता है। यह नीति निश्चित रूप से पाकिस्तान मूलक ही होगी क्योंकि वही अकेला शैतान है जो कश्मीर को जहन्नुम बनाने के मंसूबे पाले हुए है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।