दिल्ली में आसमान में उड़ती रंग-बिरंगी पतंगे सबको बहुत अच्छी लगती हैं। वो काटा वो काटा का शोर हर किसी में रोमांच पैदा करता है। लेकिन पतंगों की डोर अगर जीवन की डोर ही काटने लगे तो सारा का सारा रोमांच शोक में बदल जाता है। दिल्ली में नहीं अन्य राज्यों से भी चाइनीज मांझों से मौतों की खबर दिल दहला रही है। हाल ही में पश्चिम विहार के इलाके में पिता के साथ जा रही 7 साल की बच्ची को चाइनीज मांझे की चपेट में आकर जान गंवानी पड़ी। चाइनीज मांझा एक झटके से लोगों की गर्दन काट देता है। पिछले वर्ष भी चीन के मांझे से चार लोगों की मौत हुई थी। नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने वर्ष 2017 में सिंथेटिक मांझे के निर्माण, वितरण, बिक्री और उपयोग पर और चाइनीज मांझे के आयात पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। अलग-अलग घटनाओं में मौतों के बाद दिल्ली हाईकोर्ट ने काफी सख्त रुख अपनाया था और फरवरी 2023 में दिल्ली पुलिस को जांच के निर्देश दिए थे। अगस्त 2021 और फिर जुलाई और अगस्त 2022 में हुई चार बाइक सवारों की मौत के मामले में पुलिस से व्यापक स्थिति रिपोर्ट मांगी थी। लेकिन चाइनीज मांझे का खूनी खेल थमने का नाम नहीं ले रहा। हैरानी की बात यह है कि प्रतिबंध के बावजूद चाइनीज मांझा आ कैसे रहा है। मौत की डोर बेचने या इस्तेमाल करने वाले लोगों को पांच साल की सजा और एक लाख जुर्माना लगाया जा सकता है। लेकिन यह फिर भी धड़ल्ले से बिक रहा है।
चाइनीज मांझा सामान्य मांझे की तुलना में काफी धारदार होता है। धारदार होने के साथ ही यह इलेक्ट्रिक कंडक्टर होता है, जिस वजह से इसे और भी ज्यादा खतरनाक माना जाता है। दरअसल, इलेक्ट्रिक कंडक्टर होने की वजह से चाइनीज मांझे में करंट आने का खतरा रहता है। इसके अलावा ये मांझा आसानी से नहीं टूटता है और कई ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें देखा गया है कि टू-व्हीलर चालकों के गले में यह फंस जाने से कई बार चालक की मौत भी हो जाती है। कई पक्षी भी इससे कट जाते हैं। चाइनीज मांझे को प्लास्टिक मांझा भी कहा जाता है। यह प्लास्टिक का मांझा या चाइनीज मांझा अन्य मांझों की तरह धागों से नहीं बनता है। यह नायलॉन और एक मैटेलिक पाउडर से मिलकर बनाया जाता है। नायलॉन के तार में कांच आदि लगाकर इसे और भी ज्यादा धारदार बनाया जाता है। यह स्ट्रेचेबल भी होता है, इस वजह से कटता भी नहीं है। वहीं, जब इसे उड़ाते हैं तो इसमें हल्का से कंपन होता है। सिम्पल मांझा धागे से बनता है और उस पर कांच की लेयर चढ़ाई जाती है। साधारण मांझे की धार भी तेज होती है, यह कम खतरनाक होता है, लेकिन लोग अपनी पतंग ना कटवाने की वजह से चाइनीज मांझा इस्तेमाल में लेते हैं, मगर काफी खतरनाक है। ऐसा नहीं है कि चाइनीज मांझा सिर्फ चीन में ही बनता है। ये मांझा भारत में भी बनता है।
पुलिस के लिए हर दुकान पर नजर रखना सम्भव नहीं है, क्योंकि चाइनीज मांझे की बिक्री केवल दिल्ली में ही नहीं होती, बल्कि एनसीआर के शहरों में भी होती है। पिछले वर्ष दिल्ली में चाइनीज मांझे का गोदाम पकड़ा गया था। जहां से 11760 रोल वाले 200 कार्टन बरामद किए गए थे। सारा काम कोड वर्ड के जरिये किया जाता था। आरोपी व्यापारी दिल्ली और एनसीआर इलाके के जान पहचान वाले खुदरा विक्रेताओं को ही मांझा बेचते थे। सारी सप्लाई रात के अंधेरे में ही की जाती थी। क्योंकि चाइनीज मांझा अलग-अलग नाम से बेचा जाता है। इसलिए इसकी सीधे पहचान नहीं होती। ऐसा लगता है कि दिल्ली और एनसीआर में अभी भी चोरी-छिपे इसका व्यापार होता है। जरूरत इस बात की है कि ऐसे मांझे की बिक्री रोकने के लिए पुलिस और अन्य एजैंसियां लगातार छापेमारी करें और चीन से आ रहे माल पर भी एजैंसियों को पैनी नजर रखनी होगी। दिल्ली पुलिस के सभी जिलों और क्राइम ब्रांच ने मिलकर दो दिन चाइनीज मांझा बेचने वाले दुकानदारों के खिलाफ 323 मार्केट में छापेमारी की और 45 केस दर्ज किए हैं। एक-दो मौतों के बाद प्रशासन जागता जरूर है। कुछ दिन सख्ती रहती है लेकिन फिर सब कुछ वैसे ही चलने लगता है। दिल्ली पुलिस ने सोशल मीडिया और रेडियो के जरिये कई बार जागरूकता अभियान चलाया और जनता से अपील भी की कि जहां कहीं भी चाइनीज मांझे का निर्माण या बिक्री हो रही हो उसकी सूचना पुलिस में दें। सूचना देने वाले की पहचान गुप्त रखी जाएगी। चाइनीज मांझे पर बैन तभी लगाया जा सकता है, जब लोग खुद जागरूक हों। दूसरों की पतंग काटने के चक्कर में सड़क पर चलते बाइक सवारों की जिन्दगी की डोर कट रही है। ऐसे खूनी खेल को समाज कब तक सहन करेगा। बेहतर यही होगा कि जनता और पुलिस सहयोग कर लोगों की जिन्दगियों काे बचाएं।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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