चीन के विदेशमन्त्री श्री वांग-यी ने जिस जल्दबाजी से भारत की यात्रा की उससे स्पष्ट है कि चीन ‘रूस व यूक्रेन’ के बीच चल रहे युद्ध की वजह से बदलती विश्व राजनीति में अपने लिए ऐसा सुरक्षित तन्त्र चाहता है जिससे वह एशियाई व यूरोपीय देशों के बीच आ रही दूरी में अपने प्रभुत्व का इस्तेमाल कर सके। परन्तु चीन भूल रहा है कि उसका यह सपना तब तक पूरा नहीं हो सकता जब तक कि एशिया की ही दूसरी महाशक्ति भारत के साथ उसके सम्बन्ध पूरी तरह सामान्य न हो जायें और भारत को उसकी माकूल जगह न मिले। चीन की विदेश नीति का प्रमुख हिस्सा रहा है कि वह ‘धौंस-पट्टी’ दिखा कर विश्व के विभिन्न देशों के साथ अपने सम्बन्ध सामान्य बनाना चाहता है। मगर विदेश मन्त्री श्री एस. जयशंकर ने जिस तरह वांग-यी के साथ हुई अपनी बातचीत में दो टूक तरीके से साफ किया कि सीमा पर दोनों देशों के बीच शान्ति व चैन कायम हुए बिना द्विपक्षीय सम्बन्ध सामान्य नहीं हो सकते अतः चीन को सबसे पहले सीमा पर अमन कायम करने के इन्तजाम करने चाहिएं और दोनों देशों के बीच इस बाबत 1993 व 1996 में हुए समझौतों का पालन करना चाहिए। श्री जयशंकर ने साफ कर दिया है कि पिछले दो वर्षों से चीन की सीनाजोरी की वजह से लद्दाख सीमा पर दोनों देशों के सैनिकों के बीच तनाव का वातावरण बना हुआ है जिसका कारण चीन ही है।
पूरी दुनिया जानती है कि अप्रैल 2020 के अन्त में चीन के सैनिकों ने लद्दाख सीमा पर भारतीय क्षेत्र में अतिक्रमण करके वहां तैनात भारतीय फौजियों के साथ खूनी संघर्ष किया जिसमें हमारे 20 रणबाकुरे शहीद हुए। हालांकि चीनी फौजियों को भी भारतीय सैनिकों ने इसका करारा और माकूल जवाब दिया परन्तु इसके बावजूद चीन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया और सीमा पर अपनी सैनिक गतिविधियों को बढ़ाता रहा और भारी सैनिक साजो-सामान भी पहुंचाता रहा। चीन की इस ‘सैनिक प्रवृत्ति’ का मुकाबला करने के लिए भारत को भी सीमा पर अपनी फौजों की संख्या बढ़ानी पड़ी जिससे चीन यदि किसी गफलत में जी रहा है तो उसका दिमाग साफ हो जाये। इन दो वर्षों के बीच सीमा पर तनाव समाप्त करने के लिए भारत व चीन के उच्च सैनिक कमांडरों के बीच अभी तक 15 दौर की बातचीत हो चुकी है मगर सीमा पर अभी भी कई ऐसे स्थान हैं जहां चीनी सैनिक ‘धौंस-पट्टी’ रणनीति पर ही चल रहे हैं। अतः श्री जयशंकर का यह कहना पूरी तरह उचित और सही है कि ‘इस मामले में कार्य चल रहा है मगर प्रगति बहुत धीरे है। ‘श्री जयशंकर ने चीन के विदेशमन्त्री को आपसी सम्बन्ध सामान्य बनाने का एक तीन सूत्री फार्मूला सुझाया है जो ‘आपसी सम्मान, आपसी हित व आपसी संवेदनशीलता’ का है। इसमें आपसी संवेदनशीलता का बहुत महत्व है क्योंकि भारत व चीन दोनों तरफ ही एेसी राष्ट्रवादी शक्तियां हैं जो सीमा के मुद्दे पर किसी भी प्रकार का कोई समझौता करने को तैयार नहीं है जबकि हकीकत यह है कि भारत व चीन के बीच कोई स्पष्ट सीमा रेखा नहीं है क्योंकि 1914 में ब्रिटिश हुकूमत ने भारत-चीन व तिब्बत के बीच जो मैकमोहन रेखा खींची थी उसे चीन ने स्वीकार नहीं किया था और उसके बाद 1949 में स्वतन्त्र होते ही चीन ने तिब्बत पर आक्रमण करके उसे पचास के दशक के भीतर ही अपना हिस्सा बना लिया था। परन्तु 2003 में वाजपेयी सरकार के दौरान भारत ने तिब्बत को चीन का अंग स्वीकार कर लिया जिसकी वजह से भारत व तिब्बत के बीच खिंची हुई मैकमोहन रेखा को चीन ‘असंगत’ कहने लगा और 1962 में भारत पर हमला भी उसने इसी वजह से किया। मगर 1962 अब इतिहास हो चुका है और आज का भारत 2022 का परमाणु शक्ति सम्पन्न भारत है। इसे चीन की चालबाजी ही कहा जायेगा और पाकिस्तान की मक्कारी कि इस्लामाबाद में गत दिनों सम्पन्न हुए इस्लामी सहयोगी संगठन देशों के सम्मेलन में कश्मीर मुद्दा उठाये जाने का चीन ने समर्थन कर दिया ।
सबसे पहले यह बात समझने की जरूरत है कि चीन का इस्लामी देशों से क्या लेना-देना है जबकि अपने सिक्यांग प्रान्त में वह ‘उगेर’ मुसलमानों पर बेइन्तेहाजुल्म ढहा रहा है मगर ‘बेगैरत’ पाकिस्तान ने चीन के विदेशमन्त्री को ही इस्लामी सहयोग संगठन देशों के सम्मेलन का ‘मुख्य अतिथि’ बना दिया। चीन और पाकिस्तान की इस कुटिल मिलीभगत को भी हमें समझना होगा। पाकिस्तान की जमीन पर खड़े होकर वांग-यी ने कश्मीर पर भारत विरोधी रुख अख्तियार करके यह कूटनीतिक सन्देश देने का प्रयास किया कि वह भारत को उसके ‘घर’ के मामलों में भी घेर सकता है अतः भारत ने इस पर बहुत सख्त रवैया अपनाते हुए चीन को चेतावनी दे दी कि वह पर्दे से वार करने की जुर्रत न करे जिसकी वजह से वांग-यी दौड़े-दौड़े सीधे इस्लामाबाद से नई दिल्ली आये मगर श्री जयशंकर ने उन्हें इस तरह ‘बैरंग’ वापस लौटा दिया कि उनकी प्रधानमन्त्री श्री नरेन्द्र मोदी से मुलाकात की तमन्ना भी धरी की धरी रह गई। ‘वांग-यी’ क्या यह सोच कर नई दिल्ली आये थे कि उनकी सरकार की ‘धौंस-पट्टी’ की नीति चल जायेगी और भारत उनके स्वागत में पलक-पांवड़े बिछा देगा! चीन को समझना चाहिए कि लगातार दो वर्षों से लद्दाख सीमा पर तनाव बनाये रख कर भी उसे विवादास्पद स्थानों से पीछे हटना पड़ रहा है और भारतीय फौजों से मुंह की खानी पड़ रही है और जो एेसे स्थान बचे हैं वहां से भी उसे पहले हटना पड़ेगा तभी दोनों देशों के बीच सम्बन्ध सामान्य होंगे। इस साल के अंत में बीजिंग में होने वाले ब्रिक्स ( ब्राजील, रूस, भारत, चीन , द. अफ्रीका ) देशों के सम्मेलन में प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की उपस्थिति से पहले उसे भारत के साथ सामान्य सम्बन्ध बनाने होंगे। वरना इन्हें ‘असामान्य’ ही माना जायेगा। संभवतः श्री जयशंकर ने चीन को यही सन्देश देने का प्रयास किया है।