चीन की ‘चौसर’ को ‘चौपट’ कर दो - Punjab Kesari
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चीन की ‘चौसर’ को ‘चौपट’ कर दो

भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि चीन 1967 के बाद पहली

भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर सबसे बड़ी चिन्ता की बात यह है कि चीन 1967 के बाद पहली बार ऐसी हरकत कर रहा है जिससे दोनों देशों की सरहदों के बीच खिंची नियन्त्रण रेखा की स्थिति में परिवर्तन आ सके। यह मेरा कहना नहीं बल्कि भारत के पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार श्री शिवशंकर मेनन का कहना है। श्री मेनन माने हुए कूटनीतिज्ञ हैं और 2000 से 2003 तक चीन में राजदूत भी रह चुके हैं।  इसके साथ ही वह 2006 से 2009 तक मनमोहन सरकार के विदेश सचिव भी रहे। श्री शिवशंकर स्वतन्त्र भारत के उन प्रथम विदेश सचिव स्व. के.पी.एस. मेनन के पौत्र हैं जिन्होंने स्वतन्त्र भारत की विदेश नीति की पं. जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में नींव रखी थी। किसी भी प्रकार के विवाद से दूर रहने वाला शिवशंकर मेनन जैसा कूटनीतिज्ञ जब अपने मुंह से कोई शब्द निकालता है तो उसका वजन ‘बेतोल’ माना जाता है। उनका मानना है कि लद्दाख की गलवान घाटी से लेकर पेंगोग-सो झील तक नियन्त्रण रेखा पर चीनी अतिक्रमण उसकी इस रेखा में बदलाव किये जाने की नीयत दिखाता है। अतः सरकार को बहुत सावधानी के साथ इस मामले को सुलझाना होगा और अपनी मंशा साफ कर देनी होगी कि भारत इसमें बदलाव किसी सूरत में स्वीकार नहीं करेगा।
 श्री शिवशंकर मेनन ने भारत का राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार होने के समय चीन के साथ सीमा नियत करने हेतु बने वार्तातन्त्र में कई बार अपने देश का नेतृत्व किया है। अतः वह बेहतर तरीके से चीन की नीयत और नीति के बारे में खुलासा कर सकते हैं। श्री मेनन का मानना है कि मौजूदा नियन्त्रण रेखा पर विवाद के चलते दोनों देशों के बीच संघर्ष होने की कोई संभावना नहीं है क्योंकि भारत की शौर्यवान वीर सेनाएं इस मोर्चे पर देश के सम्मान पर किसी प्रकार की आंच नहीं आने देंगी। सामरिक मोर्चे पर भारत पूरी तरह आश्वस्त है परन्तु चीन ने कोरोना वायरस के इस संक्रमण काल में अपनी आन्तरिक कमजोरियों को छिपाने के लिए उग्र राष्ट्रवाद (अल्ट्रा नेशनलिज्म) का सहारा लेकर अपनी कूटनीतिक रणनीति में परिवर्तन किया लगता है जिसकी वजह से वह दक्षिण चीनी सागर से लेकर हांगकांग व ताईवान की तरफ तक सख्त कूटनीतिक औजारों का प्रयोग कर रहा है। हो सकता है उसे लग रहा हो कि कोरोना वायरस संक्रमण के काल में वह विश्व की अग्रणी शक्ति बन सकता है मगर फिर भी कुछ यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता है क्योंकि चीन के साथ अन्य प्रमुख देशों में भी अधिनायकवादी ताकतें मजबूत हुई हैं। इसलिए चीन को लग सकता है कि यह उसके लिए अच्छा मौका है।
 श्री मेनन के विचार सुन कर उस घटना को याद किया जाना चाहिए जब 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में भारत की पराजय हुई थी और पं. नेहरू की सरकार के खिलाफ आवश्यक समर्थन न होने के बावजूद आचार्य कृपलानी अविश्वास प्रस्ताव लाये थे तब लोकसभा अध्यक्ष से स्वयं पं. नेहरू ने कहा था कि अविश्वास प्रस्ताव दाखिल कर लिया जाना चाहिए। इस पर लोकसभा में लम्बी बहस चली थी और नेहरू सरकार की विपक्षी सांसदों ने जम कर आलोचना की थी। बहस का जवाब देते हुए पं. नेहरू ने कहा था कि चीनी सैनिक मानसिकता वाले (मिलिट्री माइंडेड)  लोग हैं इसका बहुत गूढ़ अर्थ था।  पं. नेहरू ने इसे बहुत शाइस्तगी के साथ पेश किया था। उनका कहने का अर्थ था कि चीनी ‘ताकत’ की भाषा समझते हैं। संयोग एेसा बना कि स्व. इंदिरा गांधी के शासनकाल में 1967 में चीनी ऐसी ही हिमाकत कर गये जैसी आजकल लद्दाख में हो रही है तो भारत ने  इस तरह चीन को ठीक किया कि उसे दोनों देशों की सहमत नियन्त्रण रेखा स्वीकार करनी पड़ी। तभी से दोनों देशों के बीच वर्तमान नियन्त्रण रेखा अस्तित्व में है, बेशक दोनों देशों के बीच आपसी स्वीकार्य अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखा नहीं है परन्तु जो मान्य नियन्त्रण रेखा है उसमें बदलाव करने के चीनी प्रयास को हर स्तर पर भारत को असफल करना होगा।
 असली मुद्दा यही है जिस पर सरकार को खुल कर ऐलान करना चाहिए और हर भारतवासी को आश्वस्त करना चाहिए कि अब किसी भी हालत में चीन भारत की और एक इंच भूमि भी कब्जा नहीं सकेगा क्योंकि 1962 से ही उसके कब्जे में 38 हजार वर्ग किलोमीटर ‘अक्साई चिन’ की भारत की भूमि है। उससे अगर कूटनीतिक या सामरिक वार्तालाप होगा तो वह अपनी हथियाई हुई भूमि वापस लेने पर ही होगा। संसद में गृहमन्त्री श्री अमित शाह घोषणा कर चुके हैं कि केवल पाक अधिकृत कश्मीर ही नहीं बल्कि अक्साई चिन का इलाका भी भारतीय संघ का अभिन्न हिस्सा है। हर भारतवासी को भारतीय सेनाओं के पराक्रम पर हमेशा नाज रहा है और वह जनरल नरवणे के इस कथन को माथे से लगाती है कि सरहदें महफूज हैं परन्तु चीन के साथ हम रणनीतिक कूटनीति का युद्ध लड़ रहे हैं और इस क्रम में हमें सबसे पहले नियन्त्रण रेखा की वर्तमान स्थिति को बरकरार रखना होगा और दो टूक शब्दों में कहना होगा कि चीन की बिछाई ‘चौसर’ के मोहरे हम उलट-पुलट करके ही चैन की सांस लेंगे। बकौल श्री मेनन के यह बहुत जरूरी है कि सरकार यह मंशा सार्वजनिक रूप से जाहिर करे जिससे चीन के इरादे चकनाचूर हो सकें। 
‘‘बख्शी हैं हमको इश्क ने वो जुर्रते मजाज 
डरते नहीं  सियासत-ए-अहले जहां से हम।’’ ­

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