चीन है कि मानना नहीं जानता! - Punjab Kesari
Girl in a jacket

चीन है कि मानना नहीं जानता!

चीन ऐसा देश है जिसकी भारत के साथ छह तरफ से जल-थल सीमाएं मिलती हैं और जिसके कब्जें

लगभग दो दशक पूर्व स्व. अटल बिहारी वाजपेयी की एनडीए सरकार में रक्षामन्त्री रहते हुए स्व. जार्ज फर्नांडीज ने जब यह कहा था कि भारत को सबसे बड़ा खतरा पड़ौसी चीन से है तो कुछ विद्वानों को लगा था कि यह उनका ‘कम्युनिस्ट विरोध’ और परोक्ष रूप से पूंजीवादी ‘सह-संपोषक’ विचारधारा बोल रही है, मगर वास्तव में जार्ज फर्नांडीज भारत की  वस्तुस्थिति के ऐतिहासिक सन्दर्भों की रोशनी में बोल रहे थे। उन्होंने तब कहा था कि चीन ऐसा देश है जिसकी भारत के साथ छह तरफ से जल-थल सीमाएं मिलती हैं और जिसके कब्जें में भारत की 40 हजार वर्ग मील भूमि है। 
जार्ज साहब ने तो चीन को पाकिस्तान से भी बड़ा भारत का शत्रु कहने से संकोच नहीं किया था। जम्मू-कश्मीर मामले पर चीन का जो रुख है वह जार्ज फर्नांडीस के आकलन को पूरी तरह सही सिद्ध करता है। इस राज्य का विशेष दर्जा समाप्त किये जाने के बाद इसका विभाजन दो केन्द्र प्रशासित राज्यों जम्मू-कश्मीर व लद्दाख में किया जाना भारत का पूरी तरह आंतरिक मामला है जो इस देश के संविधान के विभिन्न प्रावधानों का पालन करते हुए किया गया है परन्तु चीन के विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता ‘गेंग शुआंग’ ने बीजिंग में एक वक्तव्य जारी करके इसे ‘गैर कानूनी व खालमपीली’ करार देकर भारत के घरेलू मामलों में दखलंदाजी करने का पुनः दुस्साहस किया। 
भारत के विदेश मन्त्रालय ने इसका माकूल जवाब नई दिल्ली से देना ही था। अतः उसने यह औपचारिकता पूरी करने में देरी नहीं लगाई। परन्तु गंभीर मामला यह है कि चीन ने पूरी अकड़ के साथ यह बयान जारी किया है कि ‘‘भारत ने जिस जम्मू-कश्मीर राज्य को दो कथित केन्द्र शासित क्षेत्रों में तब्दील किया है उनमें कुछ चीनी भूभाग भी है जो भारतीय शासन के नियन्त्रण में है। चीन भारत के इस कदम की भर्त्सना करता है और अपने घरेलू कानूनों में इकतरफा बदलाव और क्षेत्रीय प्रशासनगत परिवर्तन से चीन की संप्रभुता को चुनौती देने की कार्रवाई का सख्ती के साथ विरोध करता है’’ कूटनीतिक भाषा में ऐसे शब्दों का प्रयोग किसी ‘आक्रमणकारी मानसिकता’ से कम करके नहीं आंका जा सकता। 
अतः मोदी सरकार को पूरी सतर्कता के साथ बीजिंग और नई दिल्ली के सम्बन्धों को परिभाषित करना पड़ेगा। क्योंकि चीन ने यहां तक सीनाजोरी दिखाई है कि उसने जम्मू-कश्मीर के विभाजन न केवल अवैध और बेकार की कवायद बताया है बल्कि यह भी कहा है कि ‘इससे हकीकत नहीं बदलेगी और जो क्षेत्र चीन के वास्तविक नियन्त्रण में है वह वैसा ही रहेगा।’ इस बयान से वह सच्चाई भी प्रकट हो गई है जो भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री पं. जवाहर लाल नेहरू ने भारत की संसद में प्रकट की थी। 
चीन से युद्ध हार जाने के बाद अपनी सरकार के खिलाफ रखे गये अविश्वास प्रस्ताव का उत्तर देते हुए पं. नेहरू ने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही थी कि ‘चीनी सैनिक मानसिकता के लोग हैं और वे हर मामले को इसी नजरिये से देखते हैं’ अभी तो पूरा एक महीना भी मुश्किल से नहीं गुजरा है जब चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के पर्यटक स्थल महाबलिपुरम् के निकट के गांव में ऐतिहासिक धरोहर की छटा को निहार कर इस्लामाबाद होते हुए बीजिंग लौटे थे। मगर कमाल यह रहा कि भारत के प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई बातचीत में जम्मू-कश्मीर का विषय नहीं उठा जबकि विगत 5 अगस्त को ही  इस राज्य के विभाजन का विधिवत फैसला हो गया था।  
मजेदार हकीकत यह भी थी कि श्रीमान शी जिन पिंग जिस दिन भारत के चेन्नई हवाई अड्डे पर उतरे थे उसी दिन बीजिंग से वह पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री इमरान खान को इस्लामाबाद रवाना कर आये थे। शी जिन पिंग ने श्री मोदी से हुई अपनी बातचीत में इमरान खान की चीन यात्रा का जिक्र भी किया था। जाहिर है कि चीनी राष्ट्रपति की अनौपचारिक  भारत यात्रा का सबब भारत के साथ विभिन्न विवादास्पद मुद्दों पर दोस्ताना माहौल में खुली बातचीत करने का नहीं था वह केवल हमारी ‘थाह’ लेने आये थे। 
इतनी इस दो दिवसीय यात्रा में जम्मू-कश्मीर का जिक्र न करके उन्होंने हम पर कोई एहसान नहीं किया बल्कि वह सही वक्त और मौके की तलाश में थे जो उनकी सरकार को 31 अक्टूबर का लगा और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन होने के कुछ घंटे बाद ही चीनी विदेश मन्त्रालय के प्रवक्ता ने भारत पर कूटनीतिक हमला बोल दिया। सवाल यह है कि भारत की कूटनीति चीन के सम्बन्ध में कौन सी ‘मानसरोवर-झील’ में गोते लगा रही है?  हमारे विदेश मन्त्री एस जयशंकर जम्मू-कश्मीर पर किये गये फैसले की पृष्ठभूमि में चीन की राजधानी बीजिंग में बसेरा करके आये और पूरी मेहनत से चीनी सरकार के आला हुक्मरानों को समझा कर आये कि जम्मू-कश्मीर को दो राज्यों में बांटने से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर कोई असर नहीं पड़ेगा वहां स्थिति पहले जैसी ही बरकरार रहेगी। 
मगर चीन के विदेश मन्त्री ने राष्ट्रसंघ की सभा में भी वही रोना रो दिया जो पाकिस्तान चिल्लाता आ रहा है कि कश्मीर मसले का हल राष्ट्रसंघ सुरक्षा परिषद द्वारा पारित प्रस्ताव की शर्तों की रोशनी में शान्तिपूर्ण माहौल में होना चाहिए। जबकि हकीकत यह है कि चीन 1962 से तो हमारी 40 हजार वर्गमील भूमि दाबे ही बैठा है बल्कि 1963 में उसने पाकिस्तान से भी पाक अधिकृत कश्मीर का एक हिस्सा सौगात में कबूल फरमा कर उसके साथ नया सीमा समझौता कर लिया और अब वह इसी इलाके से अपनी सी पैक परियोजना गुजार रहा है। दीगर सवाल यह है कि हमारी कूटनीति में कहां और किस  मोड़ पर ‘सिलवटें’ हकीकत को दबा रही हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

5 × five =

Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।