बचपन की यादें... सभी जीत गए - Punjab Kesari
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बचपन की यादें… सभी जीत गए

कमाल हो गया, सभी जीत गए। जी हां, इस बार बचपन की यादों में हिस्सा लेने वाले सभी

कमाल हो गया, सभी जीत गए। जी हां, इस बार बचपन की यादों में हिस्सा लेने वाले सभी जीत गए, क्योंकि इस बार हमारे जज बहुत कंफ्यूज हुए। सबने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। उनके लिए जजमैंट बहुत मुश्किल हो गई। क्योंकि हिस्सा तो सबने लिया परन्तु किसी को कंसैप्ट समझ आ रहा था, किसी को नहीं, पर हिस्सा जरूर लिया। किसी ने बचपन की भूमिका कर किसी ने बचपन की कहानी सुनाई, किस्सा सुनाया, किसी ने बच्चों को कहानी सुना दी, किसी ने बचपन की पोयम सुना दी। कुल मिलाकर सबने कोशिश की। उस कोशिश की मैं कायल हो गई। सबने बहुत मेहनत की, इन सबकी मेहनत के पीछे सबकी ब्रांच हैड की बहुत मेहनत है। इसलिए हम सभी ब्रांच हैड के नाम लेकर लक्की ड्रा निकालेंगे और गोवा, अयोध्या की टिकट उनमें से किसी को मिलेगी। मिलनी भी चाहिए क्योंकि सभी ब्रांच हैड नि:स्वार्थ भाव से सेवा करते हैं।

हां तो हमने सभी भाग लेने वालों के लिए सबको इनाम दिया। जिसने भी हिस्सा लिया सबको ईनाम मिल रहा है। सभी ब्रांच हैड को उनके सदस्यों ने जिन्होंने हिस्सा लिया, उनको इनाम मिल जाएंगे। कमाल हो गया न इस बार सभी जीत गए। इसलिए मैं सभी को बहुत-बहुत मुबारकबाद देती हूं, जिन्होंने यानी जिनके बच्चों ने उनकी वीडियो बनाने में मदद की, उनको भी मैं बहुत-बहुत धन्यवाद और मुबारकबाद देती हूं।

इस प्रतियोगिता ने सबको व्यस्त रखा, सभी ने अपने बचपन को याद किया। मुझे लगता है जिन्होंने भी इस प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। उनको इस उम्र में अल्जाइमर या भूलने वाली बीमारी कभी नहीं होगी। क्योंकि उन्होंने बहुत पुरानी-पुरानी बातें याद रहीं। यही नहीं जिन्होंने बचपन वाले कपड़े पहने, उनका बचपन गया ही नहीं, वो कभी बूढ़े नहीं होंगे और जिन्होंने बचपन जैसे अपने हेयर स्टाइल बनाए उनके तो क्या कहने। सभी ने बता दिया कि हम तो अभी बच्चे ही हैं। सबने मिलकर बताया कि उनका बचपन कितना मासूम था, भोलाभाला था। बड़ा ही नैचुरल था। माता-पिता की आंख का इशारा समझते थे। कई बहन-भाई होते थे, कई रिश्तेदार होते थे। मां-बाप से डांट भी खाते थे, परन्तु मस्ती करते थे। खुले आंगन या छत पर सोते थे। रात को तारे गिनते थे और बरसात होती तो सारे बिस्तर उठाकर घर के अन्दर भागते थे। कभी चंदा मामा की कहानी सुनते, कभी लोरी सुनते, गिटे-स्टापू, खो-खो, फुटबाल खेलते थे। उनको आज भी अपने बचपन की कविताएं याद हैं।

आजकल बचपन बंद कमरों में नेट और गूगल, वीडियो गेम में खो गया है। आज कुछ याद नहीं आता, झट से गूगल करते हैं। बहुत ही आनंद आया जब ग्रीन पार्क ब्रांच की सदस्य कैलाश रानी 74 ने कविता गाई-कालियां इट्टा काले रोड रब्बा-रब्बा मींह बरसा। यह पहली भाग लेने वाली सदस्य थीं। पंजाबी बाग के ब्रांच के कई सदस्यों ने तो जो अमेरिका, कनाडा गए हुए थे वहां से भी हिस्सा लिया। शशि बाला ने बाबा ब्लैकशिप गाकर हम सबको बचपन याद करा दिया। पश्चिम विहार की सदस्य किरण सभरवाल ने अपनी पौत्री की कहानी सुना दी। मेरे ग्रैंड चिल्ड्रन मेरे पीछे लग गए कि मैं भी उन्हें कहानी सुनाऊ। सच पूछो तो जिन्दगी के असली पलों में उतर कर बहुत आनंद आया।

एक-एक का नाम लेकर लिखने को मन है, परन्तु मुश्किल है तो अंत में सबको ईनाम जीतने की बहुत-बहुत मुबारक। सभी हिस्सा लेने वाले फस्र्ट और साथ में उनके ब्रांच हैड भी फस्र्ट। देखते हैं अब लक्की ड्रॉ किसको मिलता है।

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