बचपन की यादें कम्पीटीशन बहुत ही अच्छा चल रहा है, वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब के फेसबुक पेज पर। वास्तव में मेरी हमेशा कोशिश होती है कि सर्दी-गर्मी की छुट्टियों में मैं वरिष्ठ नागरिकों को व्यस्त रखूं, मस्त रखूं। हर बार नए आइडिया के साथ आती हूं और मजेदार बात है कि वरिष्ठ नागरिक भी बड़े जोश और जुनून से इसमें हिस्सा लेते हैं।
इस बार तो बहुत ही रोचक है, कोई बच्चों वाली ड्रेस पहनकर भाग ले रहा है और कोई बच्चों जैसा हेयर स्टाइल करके भाग ले रहा है और कोई अपने पौत्रों के साथ भाग ले रहा है। चारों तरफ इस तरह का वातावरण है कि ऐसे लगता है कि मानो बचपन लौट आया है।
81 वर्षीय आशा चौधरी की बेटियां एक लंदन, एक अमेरिका रहती हैं। उन्होंने उनके लिए ड्रेस चुनी है। कविता भी स्लैक्ट की है। ऐसे ही अमेरिका से प्रेम सूद ने हाथों में 2 टेडी बीयर्स पकड़ कर कहानी सुनाई। कनाडा से शशि जी ने बाबा ब्लैकशिप कविता गाई। काले मुंह वाली भेड़ हाथ में उठाई (खिलौना)। ऐसे इंटरनेशनल कम्पीटीशन बन गया है।
यही नहीं ग्रीन पार्क के कमलजीत सिंह जी बच्चों की खिलौने वाली बंदूक लेकर मक्खियां मार रहे हैं, बिल्कुल बच्चे बन गए हैं। पंजाबी बाग के सतीश महाजन नन्हा-मुन्ना राही हूं, देश का सिपाही हूं गा रहे हैं, बिल्कुल बच्चों की तरह एक्शन कर रहे हैं। पंजाबी बाग की ही चन्द्रप्रभा कई तरह के खिलौने लेकर बच्चों वाली कविता गा रही हैं। पश्चिम विहार के डी.एल. सभरवाल 79 के बच्चों की तरह एक्शन करके भालू बनकर खाऊं-खाऊं कर रहे हैं। वाह! क्या बात है। सांस चढ़ रही पर बचपन कमाल का है। पंजाबी बाग की आशा महाजन ने बहुत ही मशहूर कविता गाई-नानी तेरी मोरनी को मोर ले गए। क्या बच्चों की तरह हेयर स्टाइल बनाया है। गुजरंावाला टाऊन की शशि जी 62 वर्षीय बिल्कुल नन्हीं बच्ची लग रही हैं।
यही नहीं ग्रीन पार्क की कैलाश रानी जो 74 वर्षीय हैं, ने बच्चों की तरह दो चोटियां करके ‘साडी कोठी दाने पा रब्बा-रब्बा मीह बरसाÓ। वाह भई वाह ग्रीन पार्क ब्रांच की बल्ले-बल्ले हो रही है। रोहिणी की साधना आर्य अपने पौत्र के साथ और पंजाबी बाग की चन्द्रकांता अपने पोते के साथ, गुडग़ांव की मधु शर्मा 66 वर्षीय अपने नन्हे से प्यारे से पौत्र के साथ, पश्चिम विहार की किरण सभरवाल अपनी पौत्री के साथ। वाह भई वाह बातों-बातों में सभी अपने पोते-पोतियों के साथ प्यार बरसा रहे हैं। जांटीकलां की कमलेश जी ने स्कूल के बच्चों पर ही प्यार लुटा दिया। पंजाबी बाग ब्रांच की सविता कालरा ने तो हिन्दी-इंग्लिश दोनों में पोयम गा दी। पंजाबी बाग की चम्पा कक्कड़ ने तो खुद ही बच्ची बनकर पोयम गा दी, कमाल कर दिया।
यही नहीं रोहिणी ब्रांच के श्याम सुन्दर ने तो बचपन को कौन खा गया बड़े महत्वपूर्ण विषय पर पिक्चर के साथ पोयम गाई। ऐसे बचपन की खो गई स्मृतियों को याद किया, जो हम बचपन में करते थे, वो कहां खो गया। सच में आजकल बचपन कहीं खो गया है। बचपन में बरसात में मस्ती, खिलौनों से खेलना, बरसात में कागज की नाव बनाना, गीटे-स्टापू खेलना, छुपन-छुपाई खेलना, बच्चों वाली मस्तियां अब कहां। आज इन खेलों ने फोन, लैपटॉप पर गेम का रूप धारणकर लिया। पहले हम पोयम याद करते थे, हंसते-खेलते थे। बचपन के दिन भी क्या दिन थे, हंसते-खेलते थे। दिन अब गुगल और नेट में हमारा बचपन खो गया है। दादा-दादी, नाना-नानी की कहानियों को चैट, जीटीपी ने ले लिया है। गूगल ने ले लिया है।
आओ फिर बचपन याद करें, कोई भी जो 60 साल से ऊपर हैं इन प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकता है। 2 मिनट की वीडियो बनाकर बचपन की पोयम गाकर, बच्चों वाली ड्रेस पहनकर ईनाम तो आपको मालूम ही है। नहीं तो आप हमारी हैल्पलाइन पर फोन करके पूछ सकते हैं। प्रतियोगिता में भाग लेना ही बड़ी बात है।
बचपन के दिन भी क्या दिन थे, उड़ते-फिरते तितली बनकर…।