उत्तराखंड, हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्यों से रोजाना प्राकृतिक आपदाओं के कारण लोगों की मौतों की खबरें आ रही हैं। कभी पहाड़ खिसकने से मौतें हो रही हैं तो कभी भारी बारिश लोगों को बहा ले जाती है। प्राकृतिक आपदाओं पर इंसान का कोई नियंत्रण नहीं हो सकता। इसलिए इन्हें एक्ट ऑफ गॉड यानि दैवीय आपदा मानकर इतिश्री कर ली जाती है। मृतकों के परिजनों और घायलों को मुआवजे का ऐलान कर सरकारें खामोश हो जाती हैं लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले में अलकनंदा नदी के किनारे नमामि गंगे परियोजना के तहत जल-मल शोधन संयंत्र में करंट फैलने से हुई 16 मौतों को एक्ट ऑफ गॉड नहीं माना जा सकता। यह हादसा एक्ट ऑफ मैन है। हृदय विदारक घटना महज एक हादसा नहीं है, बल्कि यह घोर लापरवाही का परिणाम है। आमतौर पर बारिश के दिनों में बिजली यंत्रों के सही रखरखाव न होने के कारण करंट फैलने की घटनाएं होती रही हैं। यह घटना भी बिजली संयंत्रों के उचित रखरखाव और परियोजना पर सुरक्षा की दृष्टि से उचित प्रबंध न होने के कारण घटित हुई परिलक्षित होती है। 16 लोगों की मौत से पहले मंगलवार की रात को ही वहां बिजली की चपेट में आकर एक व्यक्ति की मौत हो गई थी। बुधवार की सुबह जब मृतक का पंचनामा चल रहा था तब फिर से वहां रेलिंग में करंट दौड़ गया।
अब सवाल यह उठता है कि जब करंट से एक की मौत हो चुकी थी तो क्यों नहीं प्लांट की बिजली सप्लाई बंद की गई। प्राेजैक्ट को देख रहे प्रबंधकों ने क्यों नहीं करंट फैलनेे के कारणों और खामी को दूर करने का काम किया। यह सीधे-सीधे मानव जनित हादसा है, जिसके लिए परियाेजना का तंत्र दोषी है। इस ट्रीटमैंट प्लांट के संचालन की जिम्मेदारी एक कम्पनी के पास है जिसके साथ 15 सालों का अनुबंध किया गया है। सीवेज ट्रीटमैंट प्लांट पूरा टीन से बना है। ऐसे में करंट सभी जगह फैल गया। आमतौर पर बिजली सप्लाई बाधित होने की मामूली समस्या को दूर करने से पहले बिजली का सम्पर्क काटा जाता है। पहले मरम्मत की जाती है फिर िबजली की सप्लाई की जाती है। यद्यपि उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर धामी ने हादसे की जांच के आदेश देते हुए दोषियों को नहीं बख्शने की बात की है लेकिन जिन लोगों की िजन्दगी चली गई उसकी भरपाई न तो सरकार कर पाएगी और न ही समाज। सरकारी मुआवजा भी जीवन भर उनके आंसुओं की कीमत अदा नहीं कर सकता।
ओडिशा के बालासोर में हुए भयंकर ट्रेन हादसे में 293 लोगों की मौत के बाद जब जांच सीबीआई ने शुरू की तो एक के बाद एक खुलासा हुआ कि ट्रेन त्रासदी लापरवाही और मानवीय भूल के कारण हुई थी। अब एक-एक करके अधिकारी और कर्मचारी पकड़े जा रहे हैं और कुछ के खिलाफ कार्रवाई की जा रही है। हादसे तब होते हैं जब तकनीकी पहलुओं को नजरंदाज कर दिया जाता है। गुजरात का मोरबी पुल हादसा मानवीय लालच और लापरवाही का नतीजा था। जांच से ही पता चला था कि पुल के रेनोवेशन के लिए महज 12 लाख रुपए खर्च किए गए थे जबकि रेनोवेशन करने वाली कम्पनी को 2 करोड़ रुपए आवंटित किए गए थे। मोरबी पुल टूटने से 135 लोगों की मौत हो गई थी। आज निर्माणाधीन पुल बह जाते हैं। कुछ दिन शोर मचता है फिरर हम नए हादसे का इंतजार करते हैं। परियोजनाएं तभी कामयाब होती हैं जब टैक्नोलॉजी का सही तरीके से इस्तेमाल किया जाए। प्रबंधन जब लापरवाही करता है या देखरेख करने वाली कम्पनियां लालच के कारण नियमों की अनदेखी करती हैं तो ऐसे हादसे होते ही हैं। विडम्बना यह है कि हम हादसों से सबक नहीं लेते और हम यह ध्यान रखने की जरूरत भी नहीं समझते कि अगर खामियों को दूर करने के लिए ठोस उपाय नहीं किए गए तो इसके गम्भीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं।
अक्सर देखा गया है कि किसी कर्मचारी या अधिकारी को दोषी ठहराकर उसे बर्खास्त कर दिया जाता है लेकिन ऐसे हादसों के लिए समूचे तंत्र काे जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। चमोली का हादसा समूचे तंत्र की लापरवाही का ही परिणाम है। क्यों नहीं इस हादसे के लिए यूपीसीएल को जिम्मेदार ठहराया जाता। अब तो नमामि गंगे प्रोजैक्ट के तहत घटिया निर्माण और घटिया यंत्र लगाने में भ्रष्टाचार की जांच की मांग भी उठने लगी है। चमोली हादसे के लिए जिम्मेदारों पर सामूहिक हत्या का मुकद्दमा चलाया जाना चाहिए। उत्तराखंड सरकार को चाहिए कि निष्पक्ष जांच कराकर दोषियों को कठघरे में खड़ा करें और ऐसे हादसों को रोकने के लिए पुख्ता प्रबंध करें।
आदित्य नारायण चोपड़ा
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