अर्थव्यवस्था की चुनौतियां - Punjab Kesari
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अर्थव्यवस्था की चुनौतियां

जिस खबर का सांस रोक कर इंतजार किया जा रहा था अब वह आ चुकी है। वित्तीय वर्ष

जिस खबर का सांस रोक कर इंतजार किया जा रहा था अब वह आ चुकी है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में जीडीपी ग्रोथ-7.3 प्रतिशत रही है। 2019-20 में यह 4.2 प्रतिशत थी। यद्यपि जनवरी से मार्च के दौरान यानी चौथी तिमाही में जीडीपी की विकास दर 1.6 प्रतिशत रही। वित्त वर्ष 2020-21 में चार तिमाहियों में पहली दो तिमाही में जीडीपी में गिरावट रही, जबकि अंतिम दो तिमाही में बढ़त देखी गई। फरवरी में सरकार ने दूसरी बार अ​ग्रिम अनुमान जारी किया था। उसमें यह कहा गया था कि अर्थव्यवस्था में 8 प्रतिशत की सालाना गिरावट आ सकती है। हालांकि इस अनुमान की तुलना में कम गिरावट आई है। कोरोना की दूसरी लहर का असर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही यानी अप्रैल से जून के बीच दिखाई देगा क्योंकि दोबारा लॉकडाउन मार्च के आखिर और अप्रैल में राज्यों ने लगाया है। दूसरी ओर वित्त वर्ष के दौरान राजकोषीय घाटा भी सरकार के अनुमान से कम रहा है। आंकड़ों पर नजर रखने वाले आर्थिक विशेषज्ञ कुछ राहत की सांस ले रहे हैं लेकिन जीडीपी में गिरावट को देखा जाए तो ​पिछले 40 वर्ष में अर्थव्यवस्था का यह सबसे खराब दौर है। महंगाई आसमान को छू रही है। पिछले वर्ष मार्च में लगा लॉकडाउन जून में खत्म हो गया था और जुलाई में अनलॉक यानी दोबारा काम धंधे शुरू करने का काम चल रहा था। दिसम्बर आते-आते करीब-करीब सब कुछ खुल चुका था। तब कोरोना की दूूसरी लहर का नामोनिशान भी नहीं था और हालात सामान्य हो चुके थे। सभी ने मान लिया था कि सब कुछ ठीक-ठाक है लेकिन कोरोना की दूसरी लहर इतनी विकराल हो गई कि राज्यों को लॉकडाउन लगाना पड़ा।
अब जबकि कोरोना की दूसरी लहर खत्म होती दिखाई दे रही है और कोई भी राज्य लॉकडाउन अनिश्चितकाल के लिए नहीं लगा सकता। उन्हें लॉकडाउन में धीरे-धीरे ढील देनी ही होगी, इसलिए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों ने आज से लॉकडाउन की पाबंदियों में ढील देनी शुरू कर दी है। 
कोरोना की दूसरी लहर ने केन्द्र और राज्य सरकारों के लिए पहाड़ जैसी चुनौतियां पैदा कर दी हैं। सरकार के सामने लोगों की जान बचाना प्राथमिकता बन गया। अब सवाल यह है कि अर्थव्यवस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए और कोरोना की तीसरी लहर को भी आने से रोका जाए।
जीडीपी को घटाने या बढ़ाने के लिए चार महत्वपूर्ण इंजन होते हैं। पहला है हम लोग। हम ​जितना खर्च करेंगे, वह हमारी अर्थव्यवस्था में योगदान होता है। दूसरा है निजी क्षेत्र की बिजनेस ग्रोथ। निजी क्षेत्र का जीडीपी में 32 प्रतिशत योगदान होता है। तीसरा है सरकारी खर्च। इसका अर्थ यह है कि गुड्स एवं सर्विसेज प्रोड्यूस करने में सरकार कितना खर्च कर रही है। इसका जीडीपी में 11 प्रतिशत योगदान है और चौथा है डिमांड। कुल मिलाकर निष्कर्ष यही निकलता है कि सरकार को बड़े पैमाने पर खर्च करना होगा। लोगों की जेब में पैसा नहीं है, इसलिए वे बाजार में खर्च कर नहीं सकते। सरकार को फिर से ऐसे उपाय करने होंगे जिसमें लोगों की जेब में पैसा डालना होगा। रोजगार बचाने या नए राेजगार पैदा करने के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजैक्ट शुरू करने होंगे और उन उद्योगों को सहारा देना होगा जिन पर मंदी की मार पड़ी है और जहां लोगों की रोजी-रोटी पर खतरा बढ़ा है। जहां तक इसी साल देश की सूचीबद्ध कम्पनियों का मुनाफा 57 प्रतिशत बढ़ने की बात है, इसकी वजह बिक्री या कारोबार बढ़ना नहीं बल्कि खर्च में कटौती है। निजी क्षेत्र अभी नए प्रोजैक्ट लगाने या नया निवेश करने की हालत में नहीं है। बैंक आरबीआई से मांग कर रहे हैं कि जो लोग ऋण की किस्त नहीं भर पा रहे उन्हें राहत देने के लिए फिर कोई इंतजाम किया जाए। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का कहना है कि देश का बजट सारी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए डिजाइन किया गया है। आत्मनिर्भर भारत के तहत शुरू की गई बहुत सी योजनाओं का उपयोग किया जा रहा है। क्रेडिट  लाइन गारंटी स्कीम का फंड अभी पूरी तरह इस्तेमाल नहीं हो सका है। अब इसे अन्य सैक्टरों के लिए खोल दिया है। 
इस फंड की शुरूआत पूरे देश में 135 प्रोजैक्ट्स के साथ की गई है, जो लम्बे समय तक लोगों को फायदा पहुंचाएगा। पिछले वर्ष मनरेगा के लिए बजट भी बढ़ाया गया था। अगर जरूरत पड़ती है तो मनरेगा का बजट बढ़ाया जा सकता है। अब पाबंदियां खत्म की जा रही हैं तो उम्मीद है कि मजदूर फिर शहरों की ओर लौटेंगे। मजदूरों के लौटने पर उद्योगों की गति पर असर पड़ेगा। सरकारी सहायता और परियोजनाओं के माध्यम से लोगों की जेब में पैसा पहुंचेगा तभी वह उसे खर्च करेगा। सरकार को बेहद जरूरी चीजों पर जीएसटी दर घटा कर उन्हें सस्ता करना होगा। चीजें सस्ती होंगी तो मांग बढ़ेगी। इसके अलावा केन्द्र और राज्य सरकारों को निवेश वाली योजनाओं में लागत बढ़ानी चाहिए। इससे रोजगार का सृजन होगा और मांग में रफ्तार आएगी। हमारी अर्थव्यवस्था के कुछ सैक्टर काफी मजबूत हैं। समय जरूर लगेगा लेकिन अर्थव्यवस्था पटरी पर आते ही सरपट दौड़ने लगेगी।
अब सबसे बड़ी चुनौती कोरोना की तीसरी लहर को रोकना है। सभी चाहते हैं कि बाजार गुलजार हों। रेहड़ी-पटरी वाले, साप्ताहिक बाजारों में दुकानें लगाने वाले भी चाहते हैं कि उन्हें साप्ताहिक बाजार लगाने की अनुमति दी जाए लेकिन हमें सारे काम इतनी सतर्कता से करने होंगे। यह भी हो सकता है कि बाजार आड-ईवन की तरह खुलें। भीड़ इकट्ठी न हो, जमीनी दूरी का पूरा ख्याल रखा जाए। लोग मास्क पहनने में लापरवाही नहीं करें। तभी हम कोरोना से जंग जीत सकेंगे।

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