‘‘हिरोशिमा की मांओं की सिसक, अभी बाकी है
यह जंग की तलवार हमारे सिर से हटा दो
बारूद के ढेर पर क्यों खड़ी हो हमारी दुनिया
हम जंग नहीं चाहते जीना चाहते हैं
हम विनाश नहीं सृजन चाहते हैं
हम युद्ध नहीं बुद्ध चाहते हैं।’’
इजराइल हो या फिलिस्तीन, यूक्रेन हो या रूस जनता यही चाहती है कि अब युद्ध विराम होना ही चाहिए। इजराइल के लोग भी युद्ध के विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं और रूसी हमलों से पीड़ित यूक्रेन भी युद्ध रोकने का मार्ग तलाश रहा है। इस सबके बीच दुनिया के लिए राहत की खबर यह है कि इजराइल और लेबनान के आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह के बीच 13 महीनों से चल रही लड़ाई थम गई है। दोनों में 60 दिनों का युद्ध विराम लागू हो गया है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, भारत और फ्रांस ने युद्ध विराम को अच्छी खबर बताया है। युद्ध विराम लागू होते ही लेबनान के बेघर हुए हजारों लोग अपने घरों को लौटने लगे। उम्मीद की किरणें उन्हें फिर से दिखाई देने लगी हैं। विनाश के बाद सृजन का काम चुनौतीपूर्ण है। समझौते की शर्तों के मुताबिक हिज्बुल्लाह के लड़ाके इलाकों से हटेंगे और उनकी जगह लेबनान के सैनिक लेंगे। इन 60 दिनों में इजराइल धीरे-धीरे अपने सैनिकों को वापिस बुलाएगा। युद्ध विराम के 6 महीने अपने आप में काफी दुश्वार होंगे। देखना होगा कि हिज्बुल्लाह के लड़ाके कहीं फिर से इजराइल से न उलझ जाएं।
लेबनान के लोग धार्मिक समूहों में बंटे हुए हैं और इस बात की गहरी आशंका रहती है कि कहीं आपस में ना उलझ जाएं। लेबनान की सेना ने कहा है कि उसके पास कोई संसाधन नहीं है। न पैसे हैं, न लोग और न ही सैन्य उपकरण। ऐसे में इस समझौते की शर्तों को पूरा करना आसान नहीं है। हालांकि कहा जा रहा है कि लेबनान के वैश्विक सहयोगी आर्थिक मदद कर सकते हैं। पश्चिम देशों के कई अधिकारियों ने कहा कि हिज्बुल्लाह अब कमजोर हो गया है और लेबनान की सरकार के लिए यह मौका है कि अपने इलाकों को नियंत्रण में ले।
यद्यपि संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल लेबनान और इजराइल युद्ध विराम की निगरानी करेंगे। इजराइल का यह भी कहना है कि अगर हिज्बुल्लाह या किसी ने समझौते का उल्लंघ किया या इजराइल के लिए खतरा पैदा किया तो उसके पास अन्तर्राष्ट्रीय नियमों के मुताबिक आत्मरक्षा का अधिकार होगा। इजराइल ने गाजा में हमास से भीषण युद्ध के बीच लेबनान के आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह से सीधी लड़ाई का ऐलान किया था क्योंकि हिज्बुल्लाह हमास के समर्थन में खड़ा था और उसकी मदद कर रहा था। 17 और 18 सितम्बर को इजराइल ने पेजर और वॉकी-टॉकी हमले से हिज्बुल्लाह पर आक्रमण शुरू किया था। इसके बाद इजराइली सेना ने लगातार और सटीक हमलों से हिजबुल्लाह को बुरी तरह चोट पहुंचानी शुरू की। 27 सितंबर को उसके चीफ हसन नसरल्लाह को एक हवाई हमले में मार डाला। फिर उसके उत्तराधिकारी सफीइद्दीन को और इसके अलावा हिज्बुल्लाह के कई विंग कमांडरों को ढेर कर दिया। 23 सितंबर को शुरू की जंग में इजराइल ने हिज्बुल्लाह को बुरी तरह पछाड़ दिया है। युद्ध रणनीति के तहत इजराइली सेना ने हवाई हमलों के बाद कुछ दिन पहले ही लेबनान में जमीनी हमला शुरू किया है। बुलडोजर और टैंकरों के साथ आईडीएफ ने साउथ लेबनान में घुसपैठ की और हिज्बुल्लाह के ठिकानों पर ताबड़तोड़ हमले किए। हिज्बुल्लाह के सिर्फ कमांडर और लीडर ही नहीं हथियारों के जखीरे भी अधिकांश नष्ट किए जा चुके हैं।
इजराइल की मार से कराह रहे हिज्बुल्लाह ने बिलबिलाना शुरू कर दिया और युद्ध विराम प्रस्तावों का समर्थन किया। युद्ध विराम का श्रेय अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन को जाता है, जिन्हाेंने न केवल अरब देशों से बल्कि ईरान के साथ भी युद्ध विराम के लिए बातचीत की। जाते-जाते बाइडेन अगर गाजा में युद्ध रुकवाने और इजराइली बंधकों को मुक्त करवाने का प्रयास करें तो मानवता का विनाश रुक सकता है। गाजा पट्टी इस समय मरघट में तब्दील हो चुकी है। हजारों लोग मारे जा चुके हैं, लाखों लोग बेघर हैं। अब तक के सभी शांति प्रयास विफल साबित हुए हैं। शांति प्रयासों में अमेरिका की आलाेचना इसलिए होती है क्योंकि वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में इजराइल का बचाव करता है। युद्ध में इजराइल को हथियार सप्लाई करता है जिसके नाते अमेरिका इस युद्ध में परोक्ष रूप से शामिल है। अमेरिका को निष्पक्ष मध्यस्थ के रूप में देखना मुश्किल है। आज की दुनिया में कूटनीति के पुराने जरिये टूट चुके हैं। अब हम एक बहुध्रुुवीय दुनिया में रहते हैं, जहां सिर्फ पश्चिमी देशों का ही दबदबा नहीं बल्कि नई ताकतें मैदान में हैं। बेहतर यही होगा कि युद्ध समाप्त किया जाए और उजड़ चुके लोगों को फिर से बसाया जाए।