देश में विकास के अर्थ बदल रहे हैं। भारत बुलेट ट्रेन की सवारी के लिए तैयार होने लगा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और जापान के प्रधानमंत्री शिंजो आबे ने अहमदाबाद में हाईस्पीड ट्रेन परियोजना का शिलान्यास कर दिया है। 5 वर्ष बाद यानी 2022 में हम अहमदाबाद से मुम्बई तक का 509 किलोमीटर तक का सफर महज दो घण्टे में कर सकेंगे। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद देश ने काफी विकास किया। प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के शासनकाल में स्टील उद्योग स्थापित किए गए, भाखड़ा बांध का निर्माण किया गया, बिजली का उत्पादन शुरू हुआ। विकास की अनेक परियोजनाएं शुरू की गईं। स्वर्गीय श्रीमती इन्दिरा गांधी के काल में इसरो, डीआरडीओ को गति मिली। भारत अंतरिक्ष तक पहुंचा। मिसाइल परियोजनाओं को गति मिली। देश में नए पुल बने। पहाड़ों में सुरंगें खोदी गईं और रेल नेटवर्क का विस्तार किया गया। श्रीमती इन्दिरा गांधी के शासनकाल में एशियाड 1982 खेलों की मेजबान बनी दिल्ली।
श्रीमती इन्दिरा गांधी के शासनकाल में ही भारत परमाणु शक्ति सम्पन्न बना। राजीव गांधी के शासनकाल में भारत में कम्प्यूटर क्रांति की शुरूआत हुई। अटल जी के शासनकाल में ‘चतुर्भज सड़क परियोजना’ की शुरूआत की गई। भारत ने परमाणु परीक्षण कर दुनिया को अपनी ताकत का अहसास कराया। केन्द्र में सरकारें आती-जाती रहीं, साथ ही विकास कार्य होते रहे। एक कहावत है कि ”आम का पेड़ दादा लगाए और फल पोता खाये।” आज विभिन्न सरकारों द्वारा पूरी की गई बड़ी परियोजनाओं का लाभ हम सब उठा रहे हैं। बड़ी और महंगी परियोजनाओं को लेकर बार-बार सवाल उठता रहा है कि भारत जैसे गरीब देश के लिए ऐसी परियोजनाओं का क्या औचित्य है? विरोध भी होता रहा है लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत को बदलना जरूरी नहीं है, कब तक पुरानी प्रौद्योगिकी के सहारे या जुगाड़ के सहारे काम चलाते रहेंगे? जब श्रीमती इन्दिरा गांधी के शासनकाल में एशियाड 82 खेलों का आयोजन दिल्ली में हुआ तो काफी होहल्ला मचाया गया था लेकिन दिल्ली में स्टेडियम बने, फ्लाईओवर बने, बुनियादी ढांचे का विकास हुआ। आज सब उस विकास का लाभ उठा रहे हैं।
जापान में वर्ष 1964 में दुनिया की पहली बुलेट ट्रेन आई। चीन में भी पिछले 10 वर्षों से बुलेट ट्रेन चल रही है। फ्रांस, इटली, जर्मनी, दक्षिण कोरिया में भी बुलेट ट्रेनें चलती हैं, फिर भारत ही क्यों पीछे रहे। अमेरिका जैसे देश का आर्थिक विकास ट्रेनें चलने के बाद शुरू हुआ। जापान तो तकनीक का शहंशाह है। वह हमारी इस परियोजना में मदद कर रहा है। दिल्ली में जापान की मदद से ही मैट्रो ट्रेन शुरू हुई और देखते ही देखते मैट्रो परियोजना को विस्तार मिलता गया। आज मैट्रो दिल्ली वालों के लिए जीवनरेखा बन चुकी है। इस परियोजना पर एक लाख करोड़ रुपए का खर्च आएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ठीक ही कहा है कि ”बंधे हुए सपने के साथ आगे बढऩा मुश्किल है, प्रयास के तरीकों में बदलाव जरूरी है।” बुलेट ट्रेन से रफ्तार और रोजगार दोनों ही आएंगे। कई शहरों की दूरियां घटेंगी जिससे उनमें व्यापार बढ़ेगा। बुलेट ट्रेन शुरू होने से देश के रेल नेटवर्क में क्रांतिकारी बदलाव आने की उम्मीद है। दूसरी तरफ विडम्बना यह भी है कि हमारी ट्रेनें और पटरियां बूढ़ी हो चुकी हैं। रेल दुर्घटनाएं लगातार हो रही हैं। ट्रेनें पटरियों से उतर रही हैं।
गुरुवार को भी नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर जम्मू राजधानी एक्सप्रैस का डिब्बा पटरी से उतर गया। रेल यात्रियों की जानें जा रही हैं, हर साल सरकार को करोड़ों का मुआवजा देना पड़ता है। भारतीय रेल में सुरक्षा व्यवस्था को उन्नत बनाने के लिए 40 हजार करोड़ का खर्च आएगा। हर साल साढ़े चार हजार किलोमीटर लम्बी पटरियों को बदला जाना चाहिए लेकिन वित्तीय तंगी के चलते इस लक्ष्य में लगातार कटौती होती रही है। देश में बुलेट ट्रेन आए, रफ्तार बढ़े लेकिन रेलवे का समग्र विकास जरूरी है। देश की अर्थव्यवस्था रफ्तार तब पकड़ती है जब बड़ी परियोजनाएं शुरू होती हैं, उनमें हजारों लोगों को रोजगार मिलता है। साथ ही साथ सरकार को यह भी देखना होगा कि आम आदमी का बुलेट ट्रेन में सफर करने का सपना सच हो। बुलेट ट्रेन का किराया 2800 रुपए प्रस्तावित है। स्पष्ट है कि इसका इस्तेमाल विमान यात्रा को प्राथमिकता देने वाले लोग ही करेंगे। यह जरूरी है कि आम आदमी को सस्ते किराये में अच्छी ट्रेनें उपलब्ध हों, इसके लिए रेलवे का कायाकल्प किया जाना बहुत जरूरी है।
मुम्बई-अहमदाबाद के बाद दिल्ली-मुम्बई, दिल्ली-कोलकाता, मुम्बई-चेन्नई, दिल्ली-चण्डीगढ़, मुम्बई-नागपुर और दिल्ली-नागपुर के बीच भी हाईस्पीड रेल नेटवर्क बनाने की योजना है। दिल्ली-कोलकाता के बीच बुलेट ट्रेन चली तो यह दूरी 6 घण्टे में पूरी हो जाएगी। भारत की सबसे तेज दौडऩे वाली ट्रेन की अधिकतम गति 160 किलोमीटर प्रति घण्टा है। एक मार्च 1969 को दिल्ली से हावड़ा तक पहली राजधानी एक्सप्रैस ट्रेन को हरी झण्डी दिखाई गई थी। 24 घण्टे के सफर को 17 घण्टे में पूरा किया जाने लगा। अब तो देश में शताब्दी, दूरंतो और गतिमान एक्सप्रैस जैसी ट्रेनें हैं। लन्दन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स के एक अध्ययन के मुताबिक हाईस्पीड रेल से जुड़े शहरों के सकल घरेलू उत्पाद में 2.7 फीसदी ज्यादा बढ़ौतरी दर्ज की गई। बाजार तक पहुंचने में कम समय लगने का असर बढ़ी हुई विकास दर के रूप में सामने आता है। इस परियोजना से सीमेंट, स्टील और परिवहन सेवाओं को विस्तार मिलेगा। विकास की परियोजनाओं को सकारात्मक दृष्टि से देखा जाना चाहिए। नकारात्मक दृष्टि विकास में गतिरोध पैदा करती है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारत के सपने को पूरा करने के लिए बड़ी परियोजना की शुरूआत की है। इसका पूरा श्रेय मोदी सरकार को जाता है। जब देशभर में बुलेट ट्रेन दौडऩे लगेगी तो आने वाली पीढिय़ां इसका लाभ उठाएंगी।