कानून के शिकंजे मे बृजभूषण - Punjab Kesari
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कानून के शिकंजे मे बृजभूषण

भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के मामले में दिल्ली पुलिस ने सिद्ध कर दिया है

भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष बृजभूषण शरण सिंह के मामले में दिल्ली पुलिस ने सिद्ध कर दिया है कि वह केवल संविधान और कानून के संरक्षण के प्रति ही जवाबदेह है और किसी भी व्यक्ति के प्रभावशाली या ऊंचे पद पर आसीन होने का उस पर कानून की अनुपालना के सम्बन्ध में कोई असर नहीं पड़ता है। समाचार पत्रों में भाजपा के सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ पुलिस द्वारा दायर चार्जशीट का जो ब्यौरा छपा है वह समूचे राजनैतिक जगत की आंखें खोलने वाला है और साबित करता है कि पुलिस का मूल कार्य कानून-व्यवस्था का राज कायम करने का ही होता है। भारत की प्रशासकीय व्यवस्था में पुलिस की जिम्मेदारी बहुत अहम इस तरह नियत की गई  कि वह बिना किसी भेदभाव के नागरिकों को कानून का पालन करने के लिए प्रेरित करे और जो इसे तोड़ने का काम करते हैं उन्हें कानून के समक्ष पेश करके अदालतों से सजा दिलवाये। बृजभूषण शरण सिंह के मामले में दिल्ली पुलिस अपनी इस भूमिका को निभाने में खरी उतर रही है। विगत 13 जून को बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ जो चार्जशीट दायर की गई है उसमें कुश्ती संघ के अध्यक्ष को महिला पहलवानों के साथ यौन उत्पीड़न से लेकर शील भंग करने के प्रयास, गलत निगाहों से ताकने व काम संकेत देने के अपराधों के लिए भारतीय दंड संहिता में उल्लिखित कानूनों के तहत समुचित कार्रवाई करने की अनुशंसा की गई है। इसके लिए ब्रजभूषण शरण सिंह को पांच वर्ष तक की कैद हो सकती है। अतः श्री सिंह को अपने दिमाग से यह गलतफहमी दूर कर लेनी चाहिए कि उनकी महाबली सांसद की छवि और उत्तर प्रदेश के गौंडा व अवध क्षेत्र में फैला कथित जनप्रभाव कानून के मार्ग में कोई बाधा खड़ी कर सकता है? 
सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा का सदस्य होना और इसका सांसद होना भी कानून की नजर में कोई मायने नहीं रखता है। पुलिस की चार्जशीट को यदि गौर से पढ़ा जाये तो वह अन्तर्राष्ट्रीय  व राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता उन छह महिला पहलवानों द्वारा लगाये गये आरोपों की ही तस्दीक करती है जो उन्होंने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ खेल मन्त्रालय द्वारा आरोपों की जांच करने के लिए गठित निगरानी जांच समिति के समक्ष लगाये थे। मगर इस समिति ने कोई कार्रवाई नहीं की थी। इसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने पुलिस को निर्देश दिया था कि वह महिला खिला​डि​यों की शिकायत पर एफआईआर दर्ज करे। पुलिस ने इसका पालन करते हुए आरोपों की जांच शुरू की और पाया कि महिला पहलवानों द्वारा लगाये गये आरोपों की गवाही में पर्याप्त सबूत हैं, जिनके आधार पर उसने अदालत में चार्जशीट दायर कर दी।
 सवाल पुलिस की प्रशंसा या बृजभूषण शरण सिंह की निन्दा का नहीं है बल्कि असली सवाल कानून के राज और उसकी अनुपालना का है। भारत में पुलिस का हर अफसर अपना पद संभालने से पहले संविधान की ही शपथ लेता है और कानून का राज कायम करने के लिए स्वयं को समर्पित करता है। उसे इससे कोई मतलब नहीं होता कि किस राजनैतिक दल की किसी भी राज्य में सरकार है। वह केवल कानून की जुबान ही समझता है। इस मामले में उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमन्त्री स्व. चौधरी चरण सिंह और पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. राजीव गांधी के दो उदाहरण ही काफी हैं। चौधरी साहब के सामने जब उनकी पार्टी भारतीय क्रान्ति दल के कुछ कारकुन अपने जिले के जिलाधीश (कलेक्टर) की शिकायत लेकर गये थे तो उन्होंने उन्हें डपट कर कहा था कि ‘क्या तुम यह समझते हो कि अगर मैं मुख्यमन्त्री हूं तो कलेक्टर मेरा नौकर है। कान खोल कर सुन लो ये मेरा नौकर नहीं है बल्कि कानून का नौकर है। जो कानून कहेगा कलेक्टर वही करेगा।’ इसी प्रकार जब राजीव गांधी खुद एक बार प्रधानमन्त्री निवास से हवाई अड्डे तक खुद कार चला कर जा रहे थे तो मार्ग में खड़े ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने उन्हें कस कर डांटा था और चालान कर दिया था। हालांकि उसे पता नहीं चल पाया था कि कार में बैठा हुआ व्यक्ति कोई और नहीं बल्कि स्वयं प्रधानमन्त्री ही है और उसकी ड्यूटी प्रधानमन्त्री निवास से हवाई अड्डे तक प्रधानमन्त्री के काफिले के लिए बने ‘रूट’  पर ही लगी थी। ट्रैफिक पुलिस के सिपाही ने काले शीशों वाली कार के अन्दर बैठे हुए व्यक्ति द्वारा नियमों का उल्लंघन करने पर चालान काट दिया और जमकर डांटा भी। कार का शीशा खोलने पर जब उसने स्वयं राजीव गांधी को देखा तो वह जरा भी नहीं डगमगाया और उसने पूरी हिम्मत के साथ कहा कि सर आपने नियम तोड़ा है। बाद में स्व. राजीव गांधी ने उस ट्रैफिक पुलिस के सिपाही को अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए ईनाम दिया।
बृजभूषण शरण सिंह को भी यह बात समझ लेनी चाहिए कि उनके छह बार सांसद का चुनाव जीतने का कानून पर कोई असर नहीं पड़ता है और न ही इस बात का प्रभाव पड़ता है कि गौंडा व आसपास के इलाकों में वह 50 से अधिक शिक्षण संस्थान चलाते हैं। पुलिस की निगाह में अगर उन्होंने कानून को तोड़ा है तो पुलिस उन्हें अदालत से सजा दिलाने के लिए अपने कर्त्तव्य का पालन जरूर करेगी। अब यह भाजपा को देखना है कि वह बृजभूषण शरण सिंह का क्या करती है ? 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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