आम आदमी को झटका - Punjab Kesari
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आम आदमी को झटका

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पैट्रोल-डीजल, रसोई गैस के बढ़ते दामों और बढ़ती महंगाई की मार झेल रही आम जनता को रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से बहुत उम्मीद थी। आम आदमी सोच रहा था कि आरबीआई कर्ज को सस्ता करेगा, उसको ईएमआई से कुछ राहत मिलेगी लेकिन आरबीआई ने रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बढ़ौतरी कर दी है। रेपो रेट में 0.25 बेसिक प्लाइंट की बढ़ौतरी की गई है और इसे बढ़ाकर 6.25 फीसदी कर दिया गया है। रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बढ़ौतरी करने से बैंक भी कर्ज की दरों में बढ़ौतरी करेंगे ही। अब घर, कार खरीदना महंगा हो जाएगा। रेपो रेट वह दर है जिस पर रिजर्व बैंक बैैंकों को कर्ज देता है जबकि रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर बैंक रिजर्व बैंक को कर्ज देते हैं जबकि बैंकों को अपनी पूंजी का कुछ हिस्सा आरबीआई के पास रिजर्व रखना होता है और इसे कैश रिजर्व रेशो (सीआरआर) कहते हैं।

वैश्विक स्तर पर जो माहौल बन रहा है उसे देखते हुए लगता ही था कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया कुछ कड़े कदम उठा सकता है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में नरमी के कोई संकेत नहीं हैं। महंगाई के लिए भी तेल की बढ़ी कीमतों को ही जिम्मेदार माना जा रहा है। आरबीआई के कड़े कदम का असर देशभर में केवल आम आदमी पर ही नहीं होगा बल्कि इसका असर विभिन्न सैक्टरों में देखने को मिलेगा। रियल्टी सैक्टर तो पहले से ही पटरी से उतर चुका है, बड़ी मुश्किल से थोड़ी हलचल जरूर शुरू हुई थी लेकिन इससे फिर रियल्टी सैक्टर में निराशा फैल गई है। इससे रियल एस्टेट सैक्टर की रफ्तार कम होगी। वर्ष 2022 तक सबको मकान उपलब्ध कराने का सरकार का लक्ष्य हासिल करने के लिए रियल एस्टेट सैक्टर के लिए दरें निचले स्तर पर रखने की जरूरत है। अगर हाउसिंग लोन की ब्याज दरें बढ़ती हैं ताे चालू वित्त वर्ष में बैंकों के निवेश की उगाही पर भी असर पड़ सकता है।

बैंकों से ऋण लेकर निजी निवेश करने वाले सुस्त पड़ सकते हैं। नया घर लेने वाले आखिरी फैसला लेने से पहले बैंकों के ऑफर्स पर सौ बार सोचेंगे। यह सही है कि 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद पहली बार रेपो रेट बढ़ाया गया है लेकिन इसका असर जेब पर तो होगा ही। इसमें कोई संदेह नहीं कि कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों ने अर्थव्यवस्था पर दबाव काफी बढ़ा दिया है। ऐसे में रिजर्व बैंक के पास कोई विकल्प ही नहीं बचा था। रिजर्व बैंक ने समीक्षा में चालू वित्त वर्ष के लिए जीडीपी वृद्धि दर का अनुमान 7.4 फीसदी पर पूर्ववत बनाए रखा है। कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ौतरी से मुद्रास्फीति परिदृश्य को लेकर निश्चितता पैदा हुई है। यह अनिश्चितता इसमें वृद्धि और गिरावट दोनों को लेकर है। इससे पहले अप्रैल में जारी मौद्रिक समीक्षा में रिजर्व बैंक ने खुदरा मुद्रास्फीति के लिए पहली ​छमाही के दौरान 4.7 से 5.1 फीसदी और दूसरी छमाही में इसके 4.4 फीसदी रहने का अनुमान लगाया था।

अमेरिका की साख रेटिंग एजैंसी मूडीज ने पिछले सप्ताह देश की आर्थिक वृद्धि दर के अनुमान को कम कर 7.3 प्रतिशत कर दिया था। पूर्व में इसके 7.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था। उम्मीदें अब भी बरकरार हैं क्योंकि अच्छे मानसून से पैदावार अच्छी होने की उम्मीद है। आरबीआई का कहना है कि विशेष रूप से निवेश गतिविधियों में पुनरुद्धार हो रहा है अाैर मनी लांड्रिंग और दिवाला संहिता के तहत अर्थव्यवस्था के दबाव वाले क्षेत्रों के सुगमता से निपटान से इसमें और तेजी आने की उम्मीद है।

भू-राजनीतिक जोखिम, वैश्विक वित्तीय बाजार में उतार-चढ़ाव तथा व्यापार संरक्षणवाद को खतरा घरेलू पुनरुद्धार के रास्ते में चुनौती अवश्य है। क्षमता उपयोग और ऋण उठाने के सुधार से निवेश गतिविधियां मजबूत बनी रहने की उम्मीद है। निवेश, निर्यात को प्रोत्साहन बहुत जरूरी है। अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने के लिए सार्वजनिक वित्त से निजी क्षेत्र की निवेश गतिविधियां प्रभावित नहीं हों इसलिए केन्द्र तथा राज्यों के बजटीय लक्ष्यों पर कायम रहने से मुद्रास्फीति परिदृश्य के ऊपर जाने का जोखिम कम होगा। रिजर्व बैंक के सख्त कदम के बाद सरकार को अपनी तरफ से कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने की जिम्मेदारी सरकार पर ही है।

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