27 अगस्त, 2018 का दिन भारतीय विमानन उद्योग और वैज्ञानिकों के लिए बेहद खास रहा। देहरादून के जाैलीग्रांट हवाई अड्डे से स्पाइसजेट के विशेष विमान ने जैव विमान ईंधन के साथ उड़ान भरकर देश के विमानन क्षेत्र में इतिहास रच दिया। यह पहला मौका है जब देश में किसी उड़ान के लिए विमान ईंधन के रूप में जैव ईंधन का इस्तेमाल किया गया है। वास्तव में जैव ईंधन मानव की नई उड़ान है। जब देश मेें पैट्रोल की कीमतें आसमान छू रही हों और आम आदमी के पेट को रोल रही हों, ऐसे में यह सफल उड़ान एक राहत भरी खबर है। दुनिया में तेल कुओं पर कब्जा करने के लिए अमेरिका, रूस जैसी वैश्विक ताकताें ने कई बड़े खेल खेले हैं। अरब जगत के देश तेल सम्पदा के चलते ही अपनी अर्थव्यवस्थाएं चला रहे हैं।
समूचे विश्व में तेल के खेल काफी विध्वंसक रहे हैं, ऐसे में आयातित ईंधन पर देश की निर्भरता कम करने के लिए बड़े कदमों की जरूरत है। भारत का तेल आयात बिल लगातार बढ़ने से अर्थव्यवस्था प्रभावित होती है और इस समय सबसे बड़ी चुनौती तेल आयात बिल घटाने की है। डीजल इंजन के आविष्कारक सर रुदाल्फ डीजल ने 10 अगस्त, 1893 को पहली बार मूंगफली के तेल से यांत्रिक इंजन को सफलतापूर्वक चलाया था। उन्होंने शोध के प्रयोग के बाद भविष्यवाणी की थी कि अगली सदी में विभिन्न यांत्रिक इंजनाें में वनस्पति तेल की जगह जीवाश्म ईंधन का प्रयोग किया जा सकेगा। इस असाधारण उपलब्धि को प्रदर्शित करने के लिए हर वर्ष 10 अगस्त को विश्व जैव ईंधन दिवस मनाया जाता है।
जैव विमान ईंधन तैयार करने में भारतीय पैट्रोलियम संस्थान (आईआईपी) को 10 वर्ष लगे। 2009 में जैव विमान ईंधन को तैयार करने का अनुसंधान शुरू हुआ। वर्ष 2010 तक लगा कि कुछ तैयार हो गया है। 2013 तक आईआईपी प्रयोगशाला में जैव विमान ईंधन तैयार हो गया था कि उसे प्रैट एंड विटनी इंजनों पर प्रयोग के लिए कनाडा भेजा गया। यह प्रयोग सफल रहा था। 2014 में नरेन्द्र मोदी सरकार ने कई ऐसी पहल कीं जिनसे अन्य ईंधनों में जैव ईंधन को मिलाने की मात्रा को बढ़ाया जा सके। मुख्य पहल में शामिल है एथेनॉल के लिए नियंत्रित प्रणाली, तेल विपणन कम्पनियों के लिए प्रक्रिया को सरल बनाना और 1951 के उद्योग (विकास एवं नियमन) अधिनियम में संशोधन तथा एथेनॉल की खरीद के लिए लिग्नो सेलुलेसिक तरीके को अपनाना। सरकार ने ईंधन में मिलाए जाने वाले एथेनॉल पर जीएसटी 18 प्रितशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जैव ईंधन दिवस पर कहा था कि वर्ष 2022 तक पैट्रोल में 10 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाएगा जिसे 2030 में बढ़ाकर 20 फीसदी किया जाएगा। सरकार इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए पूरी कोशिश कर रही है।
एथेनॉल उत्पादन के लिए सभी कृषि अपशिष्ट इस्तेमाल किए जा सकते हैं। जैव ईंधन के इस्तेमाल से न केवल कच्चे तेल के आयात पर हो रहा खर्च घटेगा बल्कि प्रदूषण भी घटेगा। इसके साथ ही यह साफ पर्यावरण आैर किसानों के लिए अतिरिक्त कमाई और ग्रामीण इलाकों में रोजगार की सम्भावनाएं पैदा करेगा। जैव ईंधन से विमान उड़ाने में सफलता हासिल कर भारत उन चन्द देशों में शुमार हो गया है जो इस तरह के परीक्षण कर रहे हैं। अमेरिका, कनाडा और आस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में पहले ही वैकल्पिक ईंधन से विमान उड़ान भर रहे हैं। वैसे जैव ईंधन से संचालित दुनिया की पहली उड़ान इसी जनवरी में लॉस एंजेलिस (अमेरिका) से मेलबोर्न (आस्ट्रेलिया) पहुंची थी। इस प्रयोग के दो मकसद हैं। पहला, हवाई यात्रियों को ऊंचे किराये से राहत देना। दूसरा, विमानन कम्पनियों को भी तेल की लगातार बढ़ती कीमतों में राहत देना। उड़ानों की संचालन लागत कम होगी तो ही हवाई यात्रियों को राहत मिलेगी।
पृथ्वी पर व्याप्त जैव विविधता ही हमारे जीवन का आधार है। प्रकृति ने एक भी जीव या वनस्पति ऐसी नहीं बनाई जिसका जीवन बनाए रखने में कोई योगदान नहीं हो। प्रत्येक की अपनी उपयोगिता है परन्तु हम आज एकरसता के फेर में पड़कर जैव विविधता के प्रति उदासीन हो गए। हमने जैव विविधता को नुक्सान पहुंचाया िजससे पर्यावरण का संतुलन ही बिगड़ गया। पेड़-पौधों आैर जंतुओं का अपना महत्व है। कुछ महत्वपूर्ण औषधियां हैं तो कुछ विचित्र वनस्पतियां एवं कुछ सुन्दरतम जीव हैं। यह विविधता, यह विचित्रता कहीं आर्थिक पक्ष से जुड़ी हैं तो कहीं इसका सौन्दर्य बोध अमूल्य है। फसल, पेड़ों, पौधों, गोबर, मानव मल आदि जैविक वस्तुओं में निहित ऊर्जा को जैव ऊर्जा कहते हैं। इनका प्रयोग करके ऊष्मा, विद्युत या गतिज ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है।
जैव ईंधन का प्रयोग सरल है। यह प्राकृतिक तौर पर नष्ट होने वाला तथा सल्फर तथा गंध से पूरी तरह मुक्त हैं। पौधे प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा सौर ऊर्जा को जैव ऊर्जा में बदलते हैं। प्रकृति ने हमें सौर ऊर्जा, नाभिकीय ऊर्जा, विद्युत ऊर्जा के भंडार दे रखे हैं। हमें इन सबका उचित ढंग से इस्तेमाल करने को आदत बनाना होगा। पैट्रोलियम, कोयला जैसे प्राकृतिक जीवाश्म ईंधन का निर्माण जीवों, विशेषकर वनस्पतियों द्वारा ही प्राकृतिक रूप से हुआ है तो क्या हम इन्हीं जीवों आैर वनस्पतियों का इस्तेमाल कर कृत्रिम पैट्रोल नहीं बना सकते? मानव समाज शुरू से ही जुझारू प्रवृत्ति का रहा है, वह अनुसंधान करता ही रहता है। मानवता को बचाना है तो हमें जैव विविधता को बचाना होगा और इसका इस्तेमाल मानव कल्याण के लिए करना होगा।