मैक्रों के साथ हुआ बड़ा खेल - Punjab Kesari
Girl in a jacket

मैक्रों के साथ हुआ बड़ा खेल

फ्रांस के संसदीय चुनावों से देश में सियासी भूचाल आ गया है।

फ्रांस के संसदीय चुनावों से देश में सियासी भूचाल आ गया है। धुर वाम और धुर दक्षिणपंथी पार्टियों को मिली भारी जीत से देश में दशकों से बना राजनीतिक संतुलन भंग होने की स्थिति पैदा हो गई है। फ्रांस में इमैनुएल मैक्रों को राष्ट्रपति बने दो माह से कम समय भी नहीं हुआ है कि उनके साथ बहुत बड़ा खेल हो गया है। चुनावाें में वह संसद में बहुमत खो चुके हैं। बीते ढाई दशक में पहले कभी ऐसा नहीं हुआ जब राष्ट्रपति की पार्टी का संसद में बहुमत न हो। सबसे चौंकाने वाला प्रदर्शन मरीन ली पेन की धुर दक्षिणपंथी नेशनल रैली पार्टी का रहा। 
उधर धुुर वामपंथी नेता ज्यां लुक मेलेन्शा के नेतृत्व में बने वामपंथी गठबंधन न्यू पापुुुुलर यूनियन ने मिलकर डेढ़ सौ से ज्यादा सीटें जीत ली हैं। परम्परागत कंजरवेटिव पार्टी लेस रिपब्लिकन को भी अपेक्षा से अधिक सीटें मिली हैं। आखिकार दो महीने में ऐसा क्या हुआ कि चुनावों का परिदृश्य ही बदल गया। अप्रैल महीने में माहौल कुछ और था जब मैक्रों ने मरीन ली पेन को हरा दूसरी बार राष्ट्रपति का पद सम्भाला था तब उनके पास 300 से अधिक सीटें थीं। बहुमत बनाए रखने के लिए उन्हें 289 सीटों की जरूरत थी लेकिन अब उनके पास 245 सीटें ही हैं। दरअसल मैक्रों ने लोगों से लगातार बढ़ती महंगाई को कम करने का वादा किया था लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए और दूसरी आर्थिक मुसीबतों ने उनकी लोकप्रियता को कम कर ​दिया। इमैनुएल मैक्रों लगातार सुधारों पर काम कर रहे थे।
मैक्रों की ओर से लाए गए बड़े प्रस्तावों में लाभ योजना में सुधार, टैक्स में कटौती और रिटायरमैंट की उम्र 62 से बढ़ाकर 65 साल करना शामिल है। उनकी पैंशन की उम्र से जुड़े सुधार का प्रस्ताव भी उन्होंने पेश किया था। मैक्रों ने कार्बन न्यूटैलिटी और पूर्ण रोजगार के प्रस्ताव भी रखे थे। हाल ही में उन्होंने शासन के लिए एक नया तरीका भी सुझाया था जिसमें उन्होंने नैशनल कौंसिल फार रिफाउंडेेशन के गठन की मांग की थी। फ्रांस को अधिक लोकतांत्रिक बनाने के मकसद से उन्होंने स्थानीय लोगों को इसमें शामिल होने का प्रस्ताव भी दिया था। फ्रांस में हुए संसदीय चुनावों के परिणामों ने फ्रांस की राजनीति को कई हिस्सों में बांट दिया है। खंडित जनादेश के चलते फ्रांस को राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तरों पर बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा। अब शासन बहुत सोच-विचार कर करना होगा।
सबसे बड़ा सवाल यह है कि मैक्रों के लिए अगले पांच साल तक राज करना कितना चुनौतीपूर्ण और मुश्किल भरा हो गया है। न्यू पॉपुलर यूनियन को हालांकि अपेक्षा के मुताबिक सीटें नहीं मिल पाई हैं। इसके बावजूद उसके पास इतना संख्या बल है कि वह ​विधायी प्रक्रिया के हर मुकाम पर रुकावट डाल सकती है। इस वामपंथी गठबंधन के नेता जयां लुक मेलेन्शा ने पहले ही ऐसे इरादे जता ​िदए हैं। मैक्रों के ​लिए चुनाव परिणाम एक चुभने वाली ​विफलता है। दक्षिणपंथी रिपब्लिकन पार्टी का कहना है कि मैक्रों फ्रांस के अतिवादियों को शक्तिशाली बनाने का नतीजा भुगत रहे हैं। मैक्रों की सारी उम्मीदें परम्परागत कंजरवेटिव पार्टी लेस रिप​ब्लिकन्स पर टिकी हुई हैं जो 61 सीटें जीतने में सफल रही है। इस पार्टी को मैक्रों के विचारों के करीब समझा जाता है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि मैक्रों काे समर्थन देने के बदले पार्टी बड़ी सौदेबाजी करेगी। इसका समर्थन हासिल करने के लिए राष्ट्रपति को हर मौके पर उसे मनाने के लिए कड़ी मेहनत करनी होगी। चुनाव नतीजों से अगर कोई संकेत मिलता है कि फ्रांस में जनता के बीच मैक्रों विरोधी मोर्चा स्था​िपत हो चुका है और मैक्रों की पार्टी को हराने के लिए धुर वामपंथी और धुर दक्षिणपंथी मतदाताओं में भी आपसी सहयोग बन चुका है। यह साफ है कि मैक्रों के लिए अगले पांच साल मान-मनोव्वल और संसदीय स्तर पर समझौतों में ही बीत जाएंगे।
 फ्रांस की राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ था जब सत्ता में बैठा कोई राष्ट्रपति दुबारा चुना गया हो और यह उपलब्धि मैक्रों के नाम गई थी। उनकी जीत को      
 ऐतिहासिक जरूर माना गया। मैक्रों को फ्रांस के लोगों ने ऐसे नेता के रूप में जाना जो कोविड जैसी महामारी से निपटने में सक्षम हैं, वैश्विक मंचों पर खुद को पेश करना जानते हैं और लोग इस बात से भी खुश थे कि उनका नेता रूसी राष्ट्रपति पुतिन से सीधी बातचीत कर सकता है। मैक्रों की कार्यप्रणाली का दूसरा पहलू परेशान कर देने वाला रहा। फ्रांस पहले से कहीं अधिक बंटा नजर आया। मैक्रों ने भी सत्ता में होते हुए कई इस्लाम विरोधी बयान दिए। जबकि उनके विरोधी ली पेन उनसे कई कदम आगे रहे। आतंकवाद का सबसे ज्यादा शिकार अगर काेई हुआ तो वह है फ्रांस। उन्होंने मुस्लिम चरमपंथी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए देश में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा का वादा ​िकया था। अब देखना यह है कि मुसलमानों के प्रति उनका रवैया क्या रहता है। मैक्रों को कोई भी नया कानून पास कराने में मुश्किलें आएंगी और उनके सुधारों पर भी खतरा पैदा हो चुका है। देखना यह होगा कि वह स्थितियों से कैसे निपटते हैं। 
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *


Girl in a jacket
पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।