वृन्दावन में बांकेबिहारी काॅरीडोर - Punjab Kesari
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वृन्दावन में बांकेबिहारी काॅरीडोर

भारत के कोने- कोने में जिस तरह हिन्दू देवी-देवताओं के पूजा स्थल इस देश की जनता की आस्था

भारत के कोने- कोने में जिस तरह हिन्दू देवी-देवताओं के पूजा स्थल इस देश की जनता की आस्था के केन्द्र में विद्यमान हैं उनमें भगवान कृष्ण के जन्म व क्रीड़ा स्थल ब्रज क्षेत्र का महत्व साकार ब्रह्म की उपासना करने वालों के लिए दिव्य माना जाता है। इस ब्रज क्षेत्र में भी वृन्दावन स्थल का महात्म्य  धर्म की उन ऐतिहासिक घटनाओं से जुड़ा हुआ है जिनकी किंवदन्तियां हर श्रद्धालु को भक्ति रस में डुबोती रहती हैं। ईश्वर को पाने के जिस ‘भक्ति मार्ग’ को एक माध्यम माना गया है उसी के प्रतीक रूप में यहां स्थित श्री बांकेबिहारी जी का मन्दिर अपनी कीर्ति सैंकड़ों साल पहले से पूरे भारत में बिखेरता आ रहा है। ऐसा माना जाता है कि बांकेबिहारी की कृपा से ही वृन्दावन जगमगाता है और इसका यश सर्वत्र फैलता है। इस मन्दिर में प्रतिष्ठित श्री कृष्ण की मनमोहक व बांकी छटा की मूर्ति के सम्मोहन की कथाओं से समूचा हिन्दू समाज अभिप्रेरित रहता है और इनके दर्शन पाने के लोभ में भारत के हर भूभाग के साकार उपासक यहां का भ्रमण करते हैं। भारत की बढ़ती आबादी को देखते हुए श्री बांकेबिहारी मन्दिर में आने वाले दर्शनार्थ भक्तों की भीड़ भी उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है जिसका प्रबन्धन करना लगातार चुनौती बनता जा रहा है। श्री बांकेबिहारी संगीत सम्राट सन्त शिरोमणि ‘स्वामी हरिदास’ के इष्ट स्वरूप भी माने जाते हैं क्योंकि कई शताब्दी पहले स्वामी जी जब ‘अखंड पंजाब’ के ‘मुल्तान राज्य’ से देशाटन करते हुए यहां पधारे थे उन्हें ही बांकेबिहारी का यह विग्रह स्वरूप मिला था जिसकी स्थापना उन्होंने मन्दिर बना कर की थी।  स्वामी हरिदास ‘बैजू बावरा’ जैसे संगीत व सुर सम्राट के गुरु भी कहे जाते हैं। तब से लेकर आज तक बांकेबिहारी मन्दिर के पुजारी व महन्तों के रूप में उनके ही पारिवारिक उत्तराधिकारी इस मन्दिर के प्रबन्धन की व्यवस्था देखते आ रहे हैं। वृन्दावन में बांकेबिहारी मन्दिर के चारों ओर छोटी-छोटी गलियों व रास्तों में और भी पचासियों मन्दिर हैं जिनमें कई बहुत महत्वपूर्ण मन्दिर माने जाते हैं जिनमें राधा वल्लभ मन्दिर प्रमुख है। इस मन्दिर के आसपास भीड़भाड़ भरे बाजार से लेकर संकरी गलियों में ब्रज की संस्कृति को दर्शाते बहुत से व्यापारिक केन्द्र भी देखने को मिल जाएंगे। अतः मन्दिर में आने वाले श्रद्धलुओं की बढ़ती भीड़ से ये सभी रास्ते और गलियां व बाजार निरन्तर अपर्याप्त होते जा रहे हैं। जब इन रास्तों व गलियों की ही यह हालत होती जा रही है तो मन्दिर प्रांगण में आने वाली श्रद्धालुओं की भीड़ के प्रबन्धन की चुनौती को आसानी से समझा जा सकता है। इसे देखते हुए विगत में उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रस्ताव रखा था कि वृन्दावन में भी कांशी विश्वनाथ मन्दिर के कारीडोर के समान श्री बांकेबिहारी कारीडोर का निर्माण कराया जाये जिससे आने वाले श्रद्धालुओं को मन्दिर दर्शन व भ्रमण करने में सुविधा हो सके परन्तु तब उसका स्थानीय निवासियों ने इसका जम कर विरोध किया था और वृन्दावन बन्द तक का आयोजन किया गया था। तब राज्य सरकार ने कारीडोर मार्ग का केवल सर्वेक्षण कार्य ही कराया था। इसकी वजह यह थी कि मन्दिर के आसपास बसे दुकानदारों से लेकर निवास स्थल के लोगों को डर था कि उन्हें उजाड़ कर कारीडोर का निर्माण होगा जिससे उनके काम धंधे चौपट हो जाएंगे और वे बेघर हो जाएंगे। परन्तु जिस तरह आये दिन श्री बांकेबिहारी मन्दिर में आने वाले श्रद्धालुओं के बीच भगदड़ मच जाने व दर्शन पाने की होड़ में अत्यन्त भीड़ हो जाने से दम तक घुट जाने से मृत्यु होने की खबरें आती रहती हैं उससे कोई भी प्रशासन परेशान हो सकता है। यह संयोग हो सकता है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ स्वयं भी एक धार्मिक नेता हैं और गोरखपुर नाथ सम्प्रदाय की पीठ के पीठाधीश्वर भी हैं मगर उनका पहला कर्त्तव्य नागरिकों की सुरक्षा देखना ही है अतः गत दिवस जब योगी जी मथुरा-वृन्दावन में थे तो उनसे वहां के सन्तों ने मांग की कि बांकेबिहारी कारीडोर का भी निर्माण कराया जाये। योगी जी ने इस बारे में उन्हें आश्वासन तो दिया है मगर प्रशासन का कर्त्तव्य बांकेबिहारी परिक्षेत्र में बसे नागरिकों के हितों का ध्यान रखना भी है। अतः स्पष्ट रूप से राज्य प्रशासन को बीच का कोई ऐसा रास्ता निकालना होगा जिससे देशभर के कृष्ण प्रेमियों के लिए कारीडोर भी बन जाये और बांकेबिहारी मन्दिर व इसके परिक्षेत्र की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक महत्ता भी कायम रहे। हालांकि पिछले कुछ वर्षों के दौरान पूरे वृन्दावन नगर का कायाकल्प काफी हद तक किया जा चुका है और इसके विभिन्न क्षेत्रों को विकसित भी किया जा चुका है मगर प्राचीन श्री बांकेबिहारी मन्दिर के प्रबन्धन और इसके परिक्षत्र की व्यवस्था का मसला बरकरार है। यह कार्य बहुत उलझा हुआ और पेचीदा भी है, खास कर स्थानीय निवासियों के पुनर्स्थापन को लेकर । अतः इसका हल सर्वजन सुखाय फार्मूले पर ही निकाला जाना चाहिए। श्री बांकेबिहारी के अप्रतिम स्वरूप व अद्भुत छटा की छाया में ही यह कार्य होना चाहिए।

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