दो दिन की बैंक हड़ताल के बाद शुक्रवार को बैंकों में कामकाज सामान्य ढंग से होने लगा है लेकिन हड़ताल के चलते हर किसी को परेशानी हुई। 20 हजार करोड़ का लेन-देन प्रभावित हुआ। बैंक खुलते ही लोगों की लम्बी कतारें बैंकों में लग गईं। पहली तारीख का नौकरीपेशा लोगों की जिन्दगी में काफी महत्व होता है क्योंकि उन्हें वेतन भी इसी दिन मिलता है। एक तरफ एक के बाद एक बैंक घोटाले सामने आ रहे हैं और सार्वजनिक बैंक डूबे कर्ज की मार झेल रहे हैं। उनका घाटा मार्च 2018 की तिमाही में बढ़कर 50 हजार करोड़ के रिकार्ड स्तर पर पहुंचने को है जो कि इसमें पिछली तिमाही में हुए घाटे 19 हजार करोड़ के दोगुने से भी कहीं अधिक है। एनपीए की समस्या का कोई समाधान नजर नहीं आता। लगातार बैंक घोटाले सामने आने पर बैंक अधिकारियों आैर कर्मचारियों की छवि प्रभावित हुई है। विभिन्न एजेंसियों द्वारा जांच-पड़ताल के चलते हर बैंक कर्मचारी को बेईमान आैर भ्रष्ट माना जाने लगा है। भ्रष्टाचार आैर घोटाले तो चन्द लोग करते हैं लेकिन इसके लिए सभी बैंक कर्मचारियों को संदेह की दृष्टि से देखा जाना उचित नहीं है। ऐसी स्थिति में ईमानदार बैंक कर्मचारी महसूस कर रहे हैं कि जैसे उनका दम घुट रहा है। यह सही है कि नोटबंदी के बाद बैंक अधिकारियों आैर कर्मचारियों ने जो कारनामे दिखाए उससे ही ऐसी स्थिति पैदा हुई है। घोटालों के लिए बैंकों के शीर्ष अधिकारी भी लिप्त रहे हैं।
अब तो आईसीआईसीआई बैंक की चेयरमैन चन्दा कोचर के खिलाफ जांच शुरू कर दी गई। प्रतिष्ठित चन्दा कोचर को भारत में महिला सशक्तिकरण का प्रतीक माना जाता है। अगर वह भी घोटाले की जांच के दायरे में है तो फिर लोग सवाल तो करेंगे ही। बैंक हड़ताल के आैचित्य पर भी लोग सवाल उठा रहे हैं लेकिन लोकतंत्र में अपनी मांगों के लिए आवाज उठाने के लिए हड़ताल एक माध्यम है। बैंक कर्मचारियों को आखिर हड़ताल का सहारा क्यों लेना पड़ा? इसका सीधा-सीधा उत्तर है कि इंडियन बैंक एसोसिएशन ने उनके साथ न्याय नहीं किया। इंडियन बैंक एसोिसएशन ने बैंक कर्मियों के वेतन में दो फीसदी की वृद्धि की सिफारिश की थी जिसे बैंक कर्मचारी संगठनों ने खारिज कर दिया। पिछली बार बैंक कर्मियों के वेतन में 15 फीसदी बढ़ौतरी की गई थी। इस बार भी बैंक कर्मचारी अपने वेतन में 15 से 17.5 फीसदी की वृद्धि चाहते हैं। वेतन में केवल दो फीसदी की वृद्धि बैंक कर्मचारियों से एक मजाक है। यह ऐसा ही मजाक है जैसे 16 दिन लगातार पैट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ौतरी के बाद कीमत एक पैसा और फिर 7 पैसे कम कर दिए जाए। हड़ताल के लिए इंडियन बैंक्स एसोसिएशन का रवैया भी जिम्मेदार है। यूनियनों ने तो हड़ताल का नोटिस 20 दिन पहले ही दे दिया था जिस पर उसने कोई गम्भीरता नहीं दिखाई। उसने यूनियनों के नोटिस का कोई जवाब ही नहीं दिया। यहां तक कि मुख्य श्रम आयुक्त (दिल्ली) द्वारा आहूत समझौता बैठक में भी आईबीए ने एक कनिष्ठ अधिकारी को भेजा, जिसके पास फैसले लेने का अधिकार ही नहीं था। वार्ता हुई भी तो वह असफल रही। इसका अर्थ यही है कि आईबीए ने लोगों को परेशानी में खुद डाला।
पंजाब के फाजिल्का में बैंक कर्मचारियों के रोष प्रदर्शन के दौरान एक बैंक कर्मचारी की हार्ट अटैक से मौत भी हो गई। आईबीए वेतन बढ़ौतरी पर कोई बेहतर प्रस्ताव पेश करता तो हड़ताल नहीं होती। इसमें कोई संदेह नहीं कि बैंक कर्मचारियों ने सरकार की जन-धन, बीमा योजनाओं, मुद्रा लोन के कार्यों तथा आधार लिंक करने जैसे कार्यों को पूरी ईमानदारी से किया, वहीं सरकार आैर आईबीए ने उनके साथ ढुलमुल और भेदभाव वाला रवैया अपनाया। अगर बैंक का घाटा बढ़ रहा है तो उसके लिए चन्द भ्रष्ट अधिकारी और योजनाएं जिम्मेदार हैं। प्लानिंग ही घटिया होगी तो घोटालेबाज उसका फायदा उठाएंगे ही। बैंक कर्मचारियों की जायज मांगें तो स्वीकार की ही जानी चाहिए। बैंकों के बढ़ते घाटे के लिए हर बैंक कर्मचारी तो जिम्मेदार नहीं है। बैंक कर्मचारी देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं और उन्हें हक के लिए भीख मांगनी पड़े, यह भी उचित नहीं है। इस महंगाई के दौर में दो फीसदी की बढ़ौतरी किसे स्वीकार होगी। आईबीए को सोचना तो पड़ेगा ही।