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बैंक और बैंड लोन

बैंकिंग व्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था का ऐसा इंजन है जिसके सुचारू रूप से चलने से ही अर्थव्यवस्था पटरी पर

बैंकिंग व्यवस्था भारतीय अर्थव्यवस्था का ऐसा इंजन है जिसके सुचारू रूप से चलने से ही अर्थव्यवस्था पटरी पर सरपट दौड़ती है और साथ ही देश के निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र का विकास होता हैं। बैंक जनता से ब्याज की पेशकश कर के जमा के रूप में पैसा लेते हैं और इसी धन को जनता यानि दुकानदारों उद्यमियों, कंपनियों ओर औद्योगिक घरानों को ऋण देते हैं। ऐसे ऋण जनता को दिए जाने वाले ब्याज से अधिक दर पर होते हैं। ब्याज या शुद्ध ब्याज आय में अंतर का उपयोग बैंक के कामकाज के लिए किया जाता है। जब उधार दिया गया पैसा वसूल नहीं हो पाता तो बैंकों पर वित्तीय बोझ बढ़ जाता है जिससे उनका कामकाज प्रभावित होता है, इसलिए एनपीए सीधे बैंक के प्रदर्शन को प्रभावित करता है। तरलता की कमी बैंकों को अर्थव्यवस्था में अन्य उत्पादक गतिविधियों के लिए ऋण देने से रोकती है। निवेश पर अंकुश से अर्थव्यवस्था धीमी हो सकती है जिससे बेरोजगारी, मुद्रास्फीति, मंदी बाजार आदि हो सकते हैं। एनपीए की समस्या कोई नई नहीं है। जबसे उदारवादी आर्थिक नीतियों को अपनाया गया है तब से यह समस्या उभर कर सामने आई है।
2000 के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था ने तेजी के दौर का आनंद लिया। व्यवसायों और कंपनियों ने अपनी परियोजनाओं के वित्तपोषण के लिए भारतीय बैंकों से बड़े पैमाने पर उधार लिया। बैंकों ने बुनियादी ढांचे और बिजली क्षेत्रों में बहुत सारी परियोजनाओं को वित्त पोषित किया जो बाद में बढ़ती लागत, 2008 की मंदी के प्रभाव आदि जैसे कई कारणों से अव्यवहार्य हो गईं। इन सबके कारण 2013 तक एनपीए बढ़ने के साथ बैंकों की बैलेंस शीट खराब हो गई। जब आरबीआई ने बैंकों का लेखा-जोखा साफ करना शुरू किया तो जानबूझकर हजारों करोड़ रुपये न चुकाने के मामले सामने आए। यह तब था जब साख का आकलन करने में बैंकों की लापरवाही और कुछ मामलों में भ्रष्टाचार सामने आया था। एनपीए संकट को हल करने के लिए केन्द्र सरकार और आरबीआई ने कई उपाय किए जिनमें ऋण वसूली, न्यायधिकरणों की स्थापना, कार्पोरेट ऋण पुनर्गठन और दिवाला संहिता, परिसम्पत्ति पुनर्निर्माण, कम्पनियों का विस्तार और बैंकों में परिसम्पत्ति गुणवत्ता की समीक्षा आदि शामिल था। यद्यपि बैंकों के बहीखातों में अब काफी सुधार आया है, लेकिन बैड लोन को बट्टे खाते में डालने का सिलसिला अभी भी जारी है। भारतीय रिजर्व बैंक ने सूचना के अ​धिकार के तहत मांगी गई सूचना के जवाब में जानकारी दी है कि मार्च 2023 को समाप्त वित्त वर्ष के दौरान बैंकों ने 2.09 लाख करोड़ से अधिक के बैड लोन माफ कर दिए। इसके साथ ही पिछले 5 वर्षों में बैंकिंग क्षेत्र द्वारा कुल ऋण राइट-आफ का आंकड़ा 10.57 लाख करोड़ हो गया। बड़े पैमाने पर बैड लोन माफी की वजह से बैंकों का सकल एनपीए पिछले 10 साल के सबसे निचले स्तर 3.9 फीसदी पर आ गया। बैंकों का सकल एनपीए वित्त वर्ष 2018 में 10.21 लाख करोड़ रुपए था जो मार्च 2023 तक गिरकर 5.55 लाख करोड़ रुपए हो गया है। इसकी मुख्य वजह बैंकों द्वारा राइट-आफ किया जाना है। बैंकों द्वारा बट्टे खाते में डाले गए ऋण बैंकों की लेजर बुक में अप्राप्त ऋण के रूप में दर्ज रहेंगे।
पिछले 3 साल की अवधि के दौरान बट्टे खाते में डाले गए ऋण का केवल 18.7 प्रतिशत ही बैंक वसूल कर सके हैं। बैंक अपनी लेजर बुक में एनपीए को कम करने के लिए डिफाल्ट ऋण भी माफ कर रहे हैं। उदारवादी आर्थिक नीतियां हो या सरकार की संरक्षणवादी नीतियां एनपीए की समस्या ज्यों की त्यों है। आरबीआई द्वारा उठाए जाने वाले कदमों से एक दो बैंकों को छोड़कर लगभग सभी सरकारी बैंकों ने पिछले वित्त वर्ष में शानदार कमाई की है और एसबीआई का साल भर का मुनाफा अकेले सभी सरकारी बैंकों के बराबर रहा। बैंकिंग व्यवस्था के सुदृढ़ होने से ही अर्थव्यवस्था तमाम झटके सहने के बावजूद गतिशील है। बैंकों में जमा धन जनता का ही होता है। इसलिए ​बैंकिंग व्यवस्था पर लगातार निगरानी रखने की जरूरत है। सावधानी हटी तो समझो दुर्घटना घटी। अच्छा यही होगा कि बैड लोन से मुक्ति पाने के लिए कोई ठोस उपाय किए जाएं। आरबीआई ने पिछले 8 जून को एक सर्कुलर जारी किया था जिसमें बैंकों को निर्देश दिया गया था कि जो लोग या कम्पनियां डिफाल्टर हो चुके हैं, या तो बैंक उनके साथ मिलकर कॉम्प्रोमाइज सैटलमेंट कर सकते हैं या फिर उन्हें फिर से लोन देकर उन्हें खड़ा कर सकते हैं। इस सर्कुलर को लेकर भी काफी मामला गर्माया था। लेकिन आरबीआई ने इसके लिए कुछ नियम कायदे भी बनाए थे। सैटलमेंट का अमाउंट गिरवी रखे सामान की कुल कीमत से कम नहीं हो सकता। आरबीआई ने बैंकों के बोर्ड को पहले से अधिक शक्तिशाली बनाया है। बेहतर यही होगा कि बैंकों की कोई ठोस नीति बनाई जाए ताकि इस समस्या से छुटकारा पाया जा सके।
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com

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