बंगलादेश में शासन बदलने के साथ जिस प्रकार इस देश का इतिहास बदलने की कोशिश की जा रही है उसे किसी भी दृष्टि से स्वीकार नहीं किया जा सकता है। इस देश को पाकिस्तान के खूनी जबड़ों से मुक्त कराने का श्रेय केवल इस राष्ट्र के जनक शेख मुजीबुर्रहमान को ही दिया जा सकता है जिनके तप व साधना से पूर्वी पाकिस्तान 1971 में बंगलादेश बना था। शेख मुजीबुर्रहमान को यह देश अपना राष्ट्रपिता इसी कारण से मानता है कि उन्होंने अपनी पार्टी अवामी लीग के साये के नीचे पाकिस्तान के खिलाफ बड़ा जनान्दोलन खड़ा किया था। शेख साहब एेसी शख्सियत थे जिन्होंने बंगलादेश की बुनियाद लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता व राष्ट्रवाद पर रखी थी और जीवन पर्यन्त वह इन सिद्धान्तों को लेकर ही आगे चलते रहे। 15 अगस्त 1975 को उनकी परिवार सहित जिन परिस्थियों में हत्या कर सैनिक शासन की मार्फत तख्ता पलट किया गया था उसी से साफ हो गया था कि इस नवोदित राष्ट्र को कुछ शक्तियां इस्लामी तास्सुब से लबरेज करना चाहती हैं उसके पीछे उनका उद्देश्य बंगलादेश को धार्मिक राष्ट्र बनाना है। शेख साहब ने इस देश की आबादी में 80 प्रतिशत से अधिक मुसलमान होने के बावजूद इसे धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया था।
विगत 5 अगस्त 2024 को इस देश की निर्वाचित प्रधानमन्त्री शेख हसीना वाजेद की सत्ता का तख्ता पलट जिस छात्र आन्दोलन की आड़ में किया गया उसका मन्तव्य बंगलादेश में इस्लामी ताकतों द्वारा सत्ता पर कब्जा करना ही था। हालांकि इस देश में फिलहाल सामाजिक कार्यकर्ता मोहम्मद यूनुस की अस्थायी सरकार है मगर इस सरकार ने देश में प्रतिबन्धित जमाते इस्लामी पार्टी के लोगों को खुली छूट प्रदान कर रखी है जिसकी वजह से मुस्लिम कट्टरपंथी ताकतें पूरी तरह सक्रिय हो गई हैं। मगर इस क्रम में इसी सरकार की शह पर इस देश का इतिहास बदलने की कोशिश भी शुरू हो गई है जिसके तहत शेख मुजीबुर्रहमान की राष्ट्रपिता की उपाधि भी छीनने का प्रयास किया जा रहा है और बंगबन्धु के नाम से लोकप्रिय शेख मुजीबुर्रहमान की कुर्बानियों को मिटाने की मुहीम इस देश में छेड़ी जा रही है। लोकतान्त्रिक बंगलादेश का इतिहास बदलने के पीछे इस देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी का भी सीधा हाथ माना जा रहा है क्योंकि इस पार्टी के संस्थापक जनरल जियाउर्रहमान को वर्ष 2025 की पाठ्य पुस्तकों में स्वतन्त्र बंगलादेश की सर्वप्रथम घोषणा करने वाला लिखा जा रहा है। सर्वविदित इतिहास है कि 26 मार्च 1971 स्वतन्त्र राष्ट्र बंगलादेश के उदय की घोषणा सर्वप्रथम शेख मुजीबुर्रहमान ने एक ‘तार’ भेज कर ही की थी जिसे बंगलादेश मुक्ति वाहिनी के रेडियो प्रसारण में पढ़ा गया था और पूर्वी पाकिस्तान को स्वतन्त्र बंगलादेश के रूप में स्थापित किया गया था। उस समय मेजर जियाउर्रहमान मुक्ति वाहनी के संचालक माने जा रहे थे। तब इस स्वतन्त्र बंगलादेश की अस्थायी सरकार भी घोषित कर दी गई थी। जबकि 27 मार्च 1971 को बंगबन्धु शेख मुजीबुर्रहमान की ओर से ही मेजर जियाउर्रहमान ने मुक्ति वाहिनी के रेडियो प्रसारण में इसकी घोषणा की थी। उसी समय पाकिस्तानी फौजों ने शेख मुजीबुर्रहमान को गिरफ्तार कर लिया था। इसके बाद मुक्ति वाहिनी पाकिस्तानी फौजों से हर मोर्चे पर लोहा ले रही थी और 1971 दिसम्बर में भारतीय फौजों ने मुक्ति वाहिनी के साथ लड़कर बंगलादेश में 16 दिसम्बर को पाकिस्तानी फौजों से आत्मसमर्पण करा लिया था।
इस प्रकार बंगलादेश पूरी तरह स्वतन्त्र देश बना था। अब इस इतिहास को यदि बदलने की कोशिश की जाती है तो वह पूरी तरह से अस्वीकार्य होगा। इस देश की पाठ्य पुस्तकों में जनरल जियाउर्रहमान को विशेष रूतबा देने के प्रयास हो रहे हैं। शेख साहब की हत्या के बाद जियाउर्रहमान शासक बने थे और उन्होंने 1978 में बंगलादेश के संविधान को बदल दिया था। इसके बाद धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र न होकर इस्लामी गणराज्य घोषित कर दिया था। स्वर्गवासी जियाउर्रहमान की पत्नी बेगम खालिदा जिया के हाथ में अब बंगलादेश नेशनलिस्ट पार्टी की कमान है। वह इस देश की प्रधानमन्त्री भी रह चुकी हैं। उनके पांच वर्ष के शासनकाल में इस्लामी ताकतों ने जमकर अपनी सक्रियता भी दिखलाई थी। यह भी सच है कि बेगम खालिदा की सत्ता के दौरान बंगलादेश में भारत के विरुद्ध पाकिस्तान परस्त आतंकवादी ताकतें सक्रिय हो गई थीं। जब शेख हसीना की सरकार सत्ता में आई तो उन्होंने इन ताकतों की नाक में नकेल डाली और जमाते इस्लामी को प्रतिबन्धित किया तथा अन्य कट्टरपंथी संगठनों को उनकी जगह दिखाई।
शेख मुजीबुर्रहमान की बेटी शेख हसीना ने अपने कार्यकाल के दौरान बंगलादेश को नई आर्थिक ऊंचाइयों तक पहुंचाया और 1971 के मुक्ति संग्राम का सच्चा इतिहास अपने देश के लोगों को दिया। अब इसी इतिहास को बदलने का अनुचित प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान में मोहम्मद यूनुस का शासन कट्टरपंथी ताकतों को रियायतें दी जा रही हैं जिसकी वजह से इतिहास बदलने की मुहीम छिड़ी हुई है। हकीकत यही रहेगी कि बंगलादेश के स्वतन्त्र होने की घोषणा बंगबन्धू शेख मुजीबुर्रहमान ने ही की थी जिसके बाद उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें जेल से दिसम्बर 1971 में ही पाकिस्तानी फौजों द्वारा ढाका में आत्मसमर्पण करने के बाद छोड़ा गया था। अतः बंगलादेश के स्वतन्त्र होने के मामले में किसी प्रकार की शंका का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। जाहिर है कि इसकी घोषणा 27 मार्च 1971 को मुक्ति वाहिनी के रेडियो से ही की गई थी। मगर जिस तरह शेख हसीना का तख्ता पलट करने के बाद बंगलादेश मुक्ति संग्राम के इतिहास को पेश करने का प्रयास किया जा रहा है उससे सच्चा इतिहास नहीं दब सकता। यह बंगबन्धू ही थे जिनकी एक आवाज पर पूरा पूर्वी पाकिस्तान उठ खड़ा हुआ था। मार्च 1971 से लेकर दिसम्बर 1971 तक पाकिस्तानी फौजों ने इस देश के लोगों पर भारी जुल्म ढहाये थे जबकि देश की इस्लामी कट्टरपंथी ताकतें पाकिस्तान का समर्थन कर रही थीं। भारत बेशक किसी भी दूसरे देश के अन्दरूनी मामलों में दखल नहीं देता है मगर बंगलादेश एेसा राष्ट्र है जिसकी स्वतन्त्रता के लिए मानवीय आधार पर इसने विश्वव्यापी अभियान भी चलाया था। अतः इस देश के सच्चे इतिहास से भारत का गहरा सम्बन्ध है।