असम फिर लहूलुहान - Punjab Kesari
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असम फिर लहूलुहान

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1947 में देश विभाजन की मानवीय त्रासदी के बाद धीरे-धीरे दिलों पर लगे जख्मों के दाग तो मिट गए लेकिन उसने जिन समस्याओं को जन्म दिया वो आजादी के 70 वर्षों बाद भी खत्म नहीं हो रही। इनमें से एक समस्या है भारत में अवैध घुसपैठियों की। अवैध प्रवासन की समस्या असम आैर पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के लिए बहुत बड़ी है। असम मेें नागरिकता रजिस्टर को लेकर तो बवाल चल ही रहा था उसके साथ-साथ नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर भी आक्रोश लगातार बढ़ रहा है। असम में संदिग्ध उल्फा इंडिपेंडेेंट के आतंकियों ने 5 युवकों की गोली मारकर हत्या कर दी। घटना खेरबाड़ी गांव की है। मारे गए पांचों युवक बंगाली मूल के थे। आतंकी संगठन के लोग एक दुकान पर बैठे हुए युवकों को ब्रह्मपुत्र नदी के किनारे ले गए और युवकों को एक लाइन में खड़ा किया और एक-एक करके सबको गोली मार दी। इन हत्याओं को एनआरसी और नागरिकता संशोधन विधेयक से जोड़कर देखा जा रहा है। इन हत्याओं को लेकर सियासत भी शुरू हो चुकी है। अब सवाल यह है कि क्या असम में 5 युवकों के बहे खून ने क्या असम में फिर हिंसा की आग लगाने की साजिश तो नहीं। नागरिक संशोधन विधेयक 2016 को वापस लेने की मांग को लेकर असम में विरोध के स्वर काफी तीव्र होते जा रहे हैं। एक के बाद एक संगठन इसके विरोध में उतरते जा रहे हैं।

असम में हाल ही में असम छात्र संघ समेत 40 संगठनों ने बन्द का आयोजन किया था। जगह-जगह रैलियां निकाली गईं। असम आंदोलन की तर्ज पर असम छात्रसंघ द्वारा भड़काऊ नारे दिए गए जिसमें धमकी भरे स्वर काफी मुखर थे। राज्यों के विधायकों को चेतावनी दी गई कि यदि बिल को केन्द्र सरकार वापस नहीं लेती तो लोग उनके घरों तक पहुंचेंगे। यदि इस आंदोलन का विश्लेषण किया जाए तो साफ है कि 2019 में होने जा रहे चुनावों से पहले नागरिक संशोधन विधेयक को भाजपा विरोधी दल एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने लगे हैं। विधेयक के विरोध की आड़ में राजनीतिक महत्व को लाए रखने वाले लोग लोगों की भावनाएं भड़काने में लगे हुए हैं। ऐसा माहौल सृजित किया जा रहा है कि नागरिक संशोधन विधेयक पास हुआ तो असमिया लोग अल्पसंख्यक हो जाएंगे और सब कुछ बाहरी लोगों के हाथों में चला जाएगा। एक बार फिर भाषा और धर्म के नाम पर नफरत फैलाने का सिलसिला शुरू हो चुका है।

केन्द्र सरकार ने नागरिक संशोधन विधेयक इसलिए तैयार किया ताकि हिन्दुओं को भारत में नागरिकता दी जा सके। बंगलादेश आैर पाकिस्तान में हिन्दुुओं पर काफी अत्याचार हुए। कई बार पाकिस्तान से प्रताड़ित हिन्दू प​िरवार सीमापार कर भारत आ चुके हैं। इसी तरह बंगलादेश से हिन्दू प​िरवार भी आए। यदि इन्हें भारत में शरण नहीं मिली तो फिर आखिर वे जाएंगे कहां? हिन्दू चाहे बंगलादेश के हों या पाकिस्तान के, वे सभी आजादी से पूर्व तक भारतीय ही थे। केन्द्र सरकार ने शरणार्थी के रूप में रह रहे हिन्दुओं, बौद्धों, जैनियों, पादरियों और ईसाइयों को बिना किसी वैध दस्तावेजों के नागरिकता देने का फैसला किया। सबसे महत्वपूर्ण बात तो यह है कि भारत एक ऐसा देश है जिसने भारतीय दृष्टिकोण अपनाकर सबकी सहायता की है। एक नागरिकता कानून यहां लागू है। ऐसी स्थिति में असम के लिए पृथक कानून पर विशेष प्रावधान के नाम पर जम्मू-कश्मीर में धारा 370 और असम में असम समझौते का प्रावधान लागू करने की वजह से ही इन दोनों राज्यों में रहने वाले लोगों को गम्भीर संकटों का सामना करना पड़ रहा है।

भाजपा को असम में सरकार बनाने में सहयोग देने वाली असम गण परिषद ने यह धमकी दी है कि यदि नागरिक संशोधन विधेयक 2016 पारित किया तो पार्टी सरकार से समर्थन वापस ले लेगी। असम गण परिषद का कहना है कि बिल पास होने से बंगलादेश और पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को आसानी से नागरिकता मिल जाएगी आैर यहां के मूल निवासी अल्पसंख्यक हो जाएंगे। असम में 2016 के चुनाव में भाजपा को 126 सीटों में से 60 पर जीत हासिल की थी लेकिन सरकार बनाने के लिए 64 सीटों के लिए भाजपा को असम गण प​िरषद का सहारा लेना पड़ा था। हाल ही में संयुक्त संसदीय समिति इस बिल पर तमाम पक्षों की राय जानने के लिए उत्तर पूर्व के दौरे पर गई थी जिसके बाद मामले ने फिर तूल पकड़ लिया है। इस मुद्दे पर भाजपा के अपने ही विधायक भी पार्टी से इस्तीफा देने को तैयार हैं क्योंकि उन्हें तो जनता के बीच रहना है। इस विधेयक की खामी यह भी है कि धर्म आधारित नाग​िरकता का प्रावधान अपने आपमें भेदभावपूर्ण है, संविधान की धारा 14 का उल्लंघन है। असम के लोग अपने अस्तित्व, पहचान, संस्कृति और भाषा के लिए जूझते रहे हैं।

उन्हें डर है कि अगर बंगलादेश के हिन्दू वैध नागरिक बन गए तो पूरे क्षेत्र की डैमोग्राफिक बनावट ही बदल जाएगी। असम लगातार चार दशकों से बंगलादेश की अनिय​ंत्रित घुसपैठ को रोकने के लिए संघर्ष कर रहा है। 1974 में अवैध प्रवासियों के खिलाफ खूनी संघर्ष हो चुका है। 1985 में असम समझौते के बाद यह कहा गया था कि 1971 के बाद दूसरे देशों से गैर कानूनी तरीके से असम आने वाले लोगों को अवैध प्रवासी माना जाएगा। यदि क्षेत्रीयता, भाषा, धर्म, जाति आदि के नाम पर हिंसा का खेल होता रहा तो देश का तानाबाना ही बिखर जाएगा। सरकार को चाहिए कि वह भाषा, जाति और धर्म के नाम पर उठने वाली हर आवाज का डटकर सामना करे ताकि देश की एकता, अखंडता और साम्प्रदायिक सौहार्द बना रहे। जिन आतंकियों ने बंगाली मूल के लोगों की हत्या की है, उनसे सख्ती से निपटा जाए और उन्हें दण्डित किया जाए।

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