जकार्ता में चल रहे एशियाई खेलों में जब एक स्कूली बच्चा अपनी परिपक्वता का परिचय देकर स्वर्ण पदक हासिल करता है, एक अनुभवी खिलाड़ी रजत पदक अपने नाम करता है आैर शौकिया तौर पर खेलने वाला एक वकील कांस्य पदक जीतने में सफल होता है तो देश को उन पर गर्व होना चाहिए। एशियाई खेलों में ऐसी कहानियां आैर भी सामने आएंगी। किसान के बेटे सौरभ चौधरी एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीतने वाले सबसे युवा निशानेबाज बन गए। वकील से निशानेबाज बने अभिषेक वर्मा ने निशानेबाजी में कांस्य जीता। विषम स्थिति से निकल कर संजीव राजपूत ने रजत जीता। सौरभ चौधरी की बात करें तो उत्तर प्रदेश का रोहटा ब्लाक कुख्यात अपराधियों के लिए मशहूर है। सौरभ के गांव कलीना में भी कई अपराधी हैं जो लूट, रंगदारी और सुपारी लेकर हत्या करते हैं। ऐसे वातावरण में जहां बच्चों का अपराधी हो जाना आम बात है, ऐसे माहौल में रहकर सौरभ ने खुद को तराशा आैर अपने गांव और ब्लाक की पहचान को बदल डाला।
सौरभ चौधरी की उपलब्धि में उनके परिवार का काफी योगदान रहा। परिवार ने सौरभ को बुराइयों से हमेशा बचाकर रखा। सौरभ के स्वर्ण पदक से रोहटा ब्लाक के उन युवाओं की सोच बदल जानी चाहिए, जो अपराध के चक्रव्यूह में फंसकर गलत दिशा में जा रहे हैं। सौरभ के स्वर्ण पदक ने यह साबित किया कि प्रतिभाएं केवल शहरों आैर महानगरों से नहीं आतीं बल्कि देश के ग्रामीण क्षेत्रों में भी प्रतिभाएं मौजूद हैं। जरूरत है उन्हें परखने, प्रशिक्षण देने आैर फिर अवसर देने की। निशानेबाजी का जिक्र हो तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश ने पिछले एक दशक में कई अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी पैदा किए हैं। पहले बागपत के जौहड़ी गांव का नाम याद आता है लेकिन अब बिनौली का नाम अंतर्राष्ट्रीय फलक पर चमकने लगा है। बिनौली में 7 वर्ष पहले शुरू हुए वीर शाहमल राइफल क्लब में तैयार निशानेबाजों ने दुनियाभर की प्रतियोगिताओं में कई पदक हासिल किए हैं। रेंज पर सुविधाएं कम हैं लेकिन इसके बावजूद कड़ी मेहनत के बलबूते पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा रहे हैं। सौरभ चौधरी के कोच अमित श्योराण को उम्मीद है कि सौरभ जैसे कई खिलाड़ी हैं जो आने वाले वर्षों में कई पदक जीतेंगे।
सौरभ के लिए यहां तक का सफर तय करना बिल्कुल आसान नहीं था। पढ़ाई के साथ-साथ शूटिंग में भी वह दिन-रात प्रैक्टिस करता रहा। परिवार ने भी बेटे को आगे बढ़ाने के लिए अपने खर्चे कम करके बेटे को 1 लाख 10 हजार की नई राइफल भी दिलाई। सौरभ अपने गांव में 17 किलोमीटर सफर तय कर बागपत के बिनौली गांव में ट्रेनिंग के लिए जाता रहा। किसी दिन बस मिलती तो किसी दिन बस नहीं मिलती तो वह डग्गामार वाहन में लटक कर सफर तय करता था। सौरभ के भीतर शूटिंग सीखने की ललक, उसके भीतर के उत्साह आैर जुनून ने उसे स्टार बना दिया। महज 16 वर्ष की उम्र में बड़ा टारगेट हासिल कर पाना चुनौती भरा था लेकिन सौरभ की हिम्मत काम आई। पिछले एक वर्ष में अगर किसी ऐसे भारतीय खिलाड़ी के बारे में सोचें जिसने उम्मीदों से ऊपर उठकर प्रदर्शन किया तो जहन में एक नाम आता है आैर वह है मनु भाकर का। हरियाणा के झज्जर की रहने वाली 16 वर्षीय मनु भाकर भले ही 25 मीटर पिस्टल निशानेबाजी के फाइनल में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई लेकिन उसने एशियाई खेलों का क्वालीफिकेशन रिकार्ड कायम करते हुए 593 के स्कोर के साथ शीर्ष पर रहकर फाइनल के लिए क्वालीफाई किया। मनु ने प्रिसीशन राउंड में 99, 98 आैर 100 का स्कोर कर कुल 297 अंक लिए जबकि रेपिड में उसका स्कोर 296 रहा। यह आंकड़ा अपने आप में रिकार्ड है। इस स्पर्धा में स्वर्ण पदक भारत की ही राही सरनोबल ने जीता। मनु भाकर शायद दबाव नहीं झेल पाई और फाइनल में उसके निशाने चूकते गए।
इसमें कोई संदेह नहीं कि कई वर्षों तक एशियाड और ओलिम्पिक स्पर्धाओं की तैयारियों में लापरवाही बरती जाती रही है। खेल संघों में भाई-भतीजावाद छाया रहा। कई राजनीतिज्ञ और प्रभावशाली व्यक्तियों का खेल संघों पर दबदबा कई वर्षों तक रहा। खेल संघों में वित्तीय अनियमितताओं का बोलबाला रहा। खिलाड़ियों के चयन में भी अिनयमितताएं बरती जाती रहीं। तमाम चुनौतियों के बावजूद प्रतिभाएं सामने आईं आैर उन्होंने अपना सिक्का जमाया क्योंकि इन प्रतिभाओं के पीछे उनके परिवारों की भूमिका रही। पहलवानी में फोगाट बहनों ने दुनियाभर में नाम कमाया आैर उनके पिरवार की ही सदस्य विनेश फोगाट ने इस बार कुश्ती में स्वर्ण पदक जीता। भारत का खेलों में स्तर सुधारने के लिए अच्छे खिलाड़ियों का चयन उनके बाल्यकाल से ही कर लिया जाना चाहिए। उनकी प्रतिभा और वििभन्न खेलों में रुचि की दृष्टि से उन्हें भिन्न-भिन्न वर्गों में विभाजित करना चाहिए। उन्हें उचित प्रशिक्षण की सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी चाहिएं। हमारे देश में प्रतिभाओं की कमी नहीं लेकिन खेलों को लेकर स्वस्थ वातावरण तैयार करना होगा। हमें पदक तालिका में आगे बढ़ना है तो खेलों के प्रति जुनून पैदा करना होगा। फिलहाल देश के बच्चे एशियाई खेलों में कमाल कर रहे हैं और सफलता की कहानियां लिखते रहेंगे। उम्मीद है कि पदक विजेता खिलाड़ी भारत के युवाओं के लिए आदर्श बनेंगे।