केसर की क्यारी हुई दुर्गन्धों के नाम,
बारूदी वातावरण करता है बदनाम।
घाटी में बारूद के इतने उड़े गुब्बार,
मानवता का सांस लेना है दुश्वार।
कश्मीरी धरती डरी-सहमी है खामोश,
गुम-सुम है डल झील भी व्यक्त कर रही रोष।
यह कैसा आतंक, भय वातावरण उदास,
है कोई जो कर सके पीड़ा का अहसास।
उद्वेलित आक्रोश से हर कोई देशभक्त,
कब तक और बहाओगे, निर्दोर्षों का रक्त।
राष्ट्र आंसू बहा रहा है लेकिन उसके भीतर आक्रोश है। पुलवामा के अवंतिपोरा में सीआरपीएफ जवानों के काफिले पर फिदायीन हमले से 44 जवानों के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े हो गए। इस काफिले में बल की 78 गाड़ियां थीं और 2547 जवान सवार थे फिर भी इतना बड़ा हमला सुरक्षा में बहुत बड़ी चूक है। सुरक्षा बलों का जब कोई बड़ा काफिला गुजरता है तो हाइवे पर सुबह से शाम तक सुरक्षा बल तैनात रहते हैं, इस तरह की मूवमेंट के दौरान चार से पांच गाडि़यां काफिले की सुरक्षा के लिए आगे चलती हैं। इसके अलावा कुछ जवान पैदल चलते हुए भी इसकी निगरानी रखते हैं कि कहीं कोई आतंकी काफिले में घुसने की कोशिश तो नहीं कर रहा।
फिर भी आतंकवादी अपनी कार को काफिले की बस से टकरा कर धमाका कर देता है। इस हमले को पुलवामा जिले के काकापोरा के रहने वाले आतंकी आदिल अहमद डार ने अंजाम दिया। इंटैलीजैंसी भी विफल हुई क्योंकि आतंकी की गाड़ी में भारी मात्रा में विस्फोटक सामग्री थी। यह हमला काफी खतरनाक है और इससे कश्मीर में चरमपंथ को बढ़ावा मिलेगा। कश्मीर में हालात सामान्य नहीं हैं। घाटी फिर 90 के दौर में पहुंच चुकी है। स्थानीय लड़के बहावी और आईएस की विचारधारा से जुड़ चुके हैं।
इतिहास गवाह है कि समय-समय पर पाकिस्तान ऐसी कायराना हरकतों के द्वारा हमारी पीठ में छुरा घोपता रहता है। हैरत तो तब होती है जब घटना के वक्त हम तिलमिलाते हैं और सख्त कदम उठाते और सब्र का पैगाम छलकने जैसे कुछ वीर रस से ओतप्रोत बयान जारी करके अपने कर्त्तव्य की इतिश्री कर लेते हैं। जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाएगा, जवानों के खून का बदला लेंगे, पाकिस्तान को मुंह तोड़ जवाब देंगे, ऐसे बयान अब भी आ रहे हैं। सरकार शहीद जवानों के परिजनों के लिए मुआवजे की घोषणा कर देती है। तिरंगे में लिपटे जवानों के शव पैतृक आवास पर पहुंचेंगे तो हुजूम उमड़ पड़ेगा।
भारत माता की जय के उद्घोष के बीच परिवार और लोग शहीद काे अश्रुपूर्ण विदाई देंगे लेकिन जो पीड़ा शहीद जवान के मां-बाप, बहनें, विधवा और नन्हें बच्चों को मिली है, उस पीड़ा का अहसास किसी को नहीं होगा। परिवार विवशताओं से जीने को विवश होगा। मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम समुद्र द्वारा महज रास्ता नहीं देने पर ही अपना धैर्य खो बैठे थे। ऐसे में ‘विनय न मानत जलधि जड़’ की तर्ज पर पाकिस्तान को जवाब देने का एकमात्र रास्ता शेष दिखता है। तो क्या राष्ट्र के सामने पाकिस्तान से एक और युद्ध लड़ने का रास्ता ही बचा है। सवाल यह भी है कि आखिर हम पाकिस्तान को सही रास्ते पर कैसे लाएं जिससे वह पुनः हमारी पीठ में छुरा घोपने की हिमाकत नहीं करे।
पाकिस्तान ने हमारे लोकतंत्र के सबसे बड़े मंदिर संसद पर हमला करवाया, श्रीनगर विधानसभा पर हमला कराया। जम्मू से लेकर गुजरात तक मंदिरों को अपवित्र किया। मुम्बई हमले से पूरे देश को दहलाया। उड़ी और अन्य सुरक्षा बलों के शिविर पर हमले कर जवानों का खून बहाना, हमारे जवानों के सिर काटे उनसे अमानवीय शर्मनाक व्यवहार किया लेकिन भारत इसकी कब्र खोदने की बजाय खुद की सब्र खोदता रहा। जब मुकाबला गिद्धों और भेड़ियों से हो तो भारत को भी व्यवहार बदलना होगा। गिद्ध और भेड़िये कभी शाकाहारी नहीं हो सकते। जिस पाकिस्तान को पंत मिर्जा समझौता याद नहीं, जिसे ताशकंद समझौता याद नहीं, जिसे शिमला समझौता याद नहीं, जिसे लाहौर घोषणा पत्र याद नहीं, उसे यह भी याद नहीं कि बंगलादेश के युद्ध में भारत ने उसके 70 हजार सैनिकों को रस्से से बांध कर घुमाया था।
कभी-कभी शांति के पौधों को सींचने के लिए भी रक्त की जरूरत पड़ती है लेकिन अफसोस आज की युवा पीढ़ी के दिल में राष्ट्रबोध जैसा कोई बोध नहीं है। यह युवा पीढ़ी संत वैलेंटाइन की याद में गली-कूचों, होटलों, पार्कों में अश्लील हरकतें करती स्वयं को 21वीं सदी की नई उम्र की नई फसल के तौर पर प्रस्तुत करती रही, देश के साथ हो रहे षड्यंत्रों की उसे कोई जानकारी नहीं। युवाओं का छोटा वर्ग जरूर संवेदनशील है। आज पाकिस्तान ने सारी ऊर्जा भारत के विखंडन के लिए झोंक रखी है लेकिन हम आज तक युद्धों में उसे हराने के बावजूद उसको मुंहतोड़ जवाब नहीं दे पाए।
सर्जिकल स्ट्राइक के बाद राष्ट्र का जोश काफी हाई था लेकिन पाकिस्तान को एक सर्जिकल स्ट्राइक नहीं बल्कि लगातार हमलों की जरूरत है। काश आरपार की लड़ाई पहले ही हो जाती तो परिणाम कुछ और होते। काश भारत की जनता ने विराट रूप दिखाया होता। भारत को इस्राइल से सबक लेना चाहिए। पाकिस्तान को इस धरती के नक्शे पर रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं, यह शाश्वत सत्य है।
राष्ट्र नायकों को याद रखना होगा
मूंद-मूंद के पृष्ठ, शील का गुण जो सिखलाते हैं
वज्रायुद्ध को पाप, लौह को दुर्गुण बतलाते हैं
मन की व्यथा समेट, न तो अपनेपन से होगा
मर जाएगा स्वयं, सर्प को अगर नहीं मारेगा