एक और श्रद्धा कांड - Punjab Kesari
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एक और श्रद्धा कांड

देश में जिस तरह से महिलाओं के जघन्य हत्याकांड सामने आ रहे हैं उससे भारतीय समाज के हिंसक

देश में जिस तरह से महिलाओं के जघन्य हत्याकांड सामने आ रहे हैं उससे भारतीय समाज के हिंसक होने के संकेत ​साफ मिल रहे हैं। समाज में बढ़ती हिंसक वृति से केवल महिलाएं ही नहीं हर शख्स खौफ में है। मानवीय संबंधों में जिस तरह से महिलाओं की निर्मम हत्याएं हो रही हैं उसे लेकर बहुत सारे सवाल उठ खड़े हुए हैं। राजधानी दिल्ली में एक बार फिर श्रद्धा हत्याकांड जैसी एक और दिल दहला देने वाली वारदात सामने आई है। नजफगढ़ के एक बाहरी गांव के इलाके में स्थित एक ढाबे के फ्रिज में निक्की यादव नामक लड़की की लाश मिलने के बाद पूरे घटनाक्रम का खुलासा हुआ। मृतका अपने ब्वायफ्रैंड के साथ लिव-इन रिलेशन में थी लेकिन ब्वायफ्रैंड किसी दूसरी लड़की से शादी करने की तैयारी में था। इस पर दोनों में विवाद हुआ जिसके बाद आरोपी ने लड़की की हत्या कर दी। खास बात यह है कि आरोपी हत्यारे ने सुबह मर्डर किया और शाम को दूसरी लड़की के साथ शादी भी कर ली। यद्यपि समाज लिव- इन रिलेशनशिप पर सवाल उठाता रहा है लेकिन जो कुछ समाज में हो रहा है वह पाश्विकता की हद है। विवाहिक हो या सहमति संबंध, हिंसात्मक व्यवहार और अंत को बीमार दृष्टिकोण से नहीं समझा जा सकता। श्रद्धा हत्याकांड जैसे कई कांड सामने आ चुके हैं। एक के बाद एक टुकड़ों-टुकड़ों में शव मिल रहे हैं। समाज बार-बार सिहर उठता है। इस सिहरन को कुछ दिन ही बीते हैं कि नया हत्याकांड सामने आ जाता है।
करीब दस साल पहले दिल्ली में चलती बस में निर्भया से बलात्कार और उसकी हत्या की बर्बर घटना सामने आई थी, तब देशभर में उसे लेकर एक आंदोलन खड़ा हो गया था। लगभग सब लोगों के भीतर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर चिंता थी। उसके बाद सरकार ने कार्रवाई की, पीड़ित महिलाओं के लिए निर्भया कोष बनाने से लेकर पहले से ज्यादा सख्त कानूनी प्रावधान किए गए। तब न सिर्फ महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर देश में एक आक्रोश की लहर देखी गई थी, बल्कि सामाजिक संवेदनशीलता का भी माहौल बनता दिखा था। उससे यह उम्मीद जगी थी कि निर्भया के खिलाफ बर्बरता की इंतहा से दुखी समाज में कम से कम भविष्य में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक संवेदना और जिम्मेदारी का विकास हो सकेगा लेकिन उसके बाद के वर्षों में महिलाओं का जीवन जिस तरह लगातार जोखिम और अपराध से दो-चार होता रहा, उससे यही लगता है कि सामाजिक जागरूकता के समांतर ही चौकसी के साथ कानूनी कार्रवाई में सख्ती की बेहद जरूरत है ताकि किसी भी लड़की या महिला के खिलाफ अपराध करने से पहले अपराधियों के हौंसले को तोड़ा जा सके।
कभी महिलाओं की हत्याओं को साम्प्रदायिक रंग दे दिया जाता है। कभी बलात्कारियों और हत्यारों के समर्थन में समाज का एक वर्ग उठ खड़ा होता है। कभी आरोपियों का महिमा मंडन किया जाता है। अपराधियों को लोग सम्मानित करते हैं। इससे हमारे सामाजिक मूल्यों को गहरा आघात लगा है। जब अपराधिक मानसिकता वाले लोग कानून से बेखौप होकर घूमने लगे तो अपराध पर लगाम कैसे लगाई जा सकती है। हत्यारा पुरुष हो या महिला उसके दिमाग में ऐसा क्या चल रहा था कि उसने हत्या करने के बाद क्रूरतम कदम उठाया। ऐसा अपराध करने की मानसिकता कोई एक दिन में विकसित नहीं होती। यह देखना भी जरूरी है कि अपराध करने वाला व्यक्ति किस परिवेश में पला-बढ़ा है। उसकी बचपन से लेकर बड़े होने तक सोच कैसी रही है और उसके आचरण पर उसका कैसा प्रभाव पड़ा है। यह साफ है कि परिवार बच्चों में नैतिक और पारिवारिक संस्कार देने में विफल हो रहे हैं।
महिलाओं पर बढ़ते अपराध की मुख्य वजह समाज में विकृत मानसिकता के मनुष्य हैं, जो मनुष्य कहलाने के योग्य भी नहीं हैं। मानवता और मानवीय रिश्तों को शर्मसार करने वाले ये लोग महिलाओं को मात्र उपभोग की वस्तु समझते हैं। ऐसे पथभ्रष्ट और  कुसंस्कारी पुरुष अपने बच्चों को क्या शिक्षा देंगे? मात्र कानून बनाने से ही समस्या का समाधान नहीं होगा, सामाजिक जिम्मेदारी में भी सुधार की आवश्यकता है। महिलाओं को भी खुलकर शिकायत करनी होगी।  
समाज में आए खुलेपन के चलते वर्जनाएं टूट रही हैं। युवक-युवतियों में खुलापन बढ़ रहा है। लिव-इन रिलेशनशिप को कानून भी न तो अपराध मानता है और न ही अनैतिक। आज के दौर में पारिवारिक मूल्य खत्म हो चुके हैं। भावनात्मक जुड़ाव कम केवल अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए एक-दूसरे का सहारा लिया जा रहा है। समस्या यह है कि हम अपराध को अलग-अलग चश्मे से देखते हैं। जबकि अपराध को अपराध की दृष्टि से ही देखा जाना चाहिए। प्रदूषित सामाजिक हवाओं को कैसे रोका जाए, यह सवाल सबके सामने हैं। समाज को उसकी संवेदनशीलता का अहसास कैसे कराया जाए। समाज में उच्च मूल्य कैसे स्थापित किए जाएं, यह चिता का विषय है। समाज को एक सशस्त्र सामाजिक आंदोलन की जरूरत है। समाज को हिंसक होने की त्रासदी से बचाने के लिए  धर्मगुरुओं, समाज सुधारकों, शिक्षाविदों को आगे आना होगा। शिक्षा संस्थानों में नैतिक शिक्षा पर जोर देना होगा। समाज की मानसिकता बदलेगी तभी सकारात्मक परिणाम सामने आएंगे।

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