भारत-बांग्लादेश की शान्त और सद्भावना से भरी सीमा पर दो दिन पहले जिस तरह जल क्षेत्र में भारतीय सीमा सुरक्षा बल के एक जवान की मृत्यु ‘बांग्लादेश बार्डर गार्ड्स’ के सैनिकों द्वारा चलाई गई गोली से हुई है, वह निश्चित रूप से बहुत चिन्ताजनक और गंभीर घटना है। प. बंगाल के मुर्शीदाबाद जिले के पार बहती पद्मा नदी के जल में भारतीय मछुआरों द्वारा भारतीय सीमा का अतिक्रमण किये जाने पर उन्हें वापस भारत में लेने के लिए भारतीय सीमा सुरक्षा बल ने दोनों देशों के बीच स्थापित तन्त्र का अनुपालन करते हुए जिस प्रकार बांग्लादेशी सुरक्षा बल के साथ शान्ति बैठक (फ्लैग मीटिंग) की और पकड़े गये भारतीय मछुआरों को वापस देने की प्रक्रिया का पारंपरिक निर्वाह करने की प्रणाली का अनुसरण किया।
उसी दौरान बांग्लादेशी सुरक्षा सैनिकों का उन पर गोली चलाना किसी साधारण अनहोनी का द्योतक नहीं माना जा सकता बल्कि इसके पीछे कोई ऐसी साजिश काम कर रही है जो दोनों देशों के लगातार प्रगाढ़ होते मधुर सम्बन्धों में कांटे बिछाना चाहती है। हाल ही में बांग्लादेश की प्रधानमन्त्री शेख हसीना भारत की यात्रा करके गई हैं और उन्होंने भारतीय प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी के साथ हुई अपनी बातचीत में आपसी सम्बन्धों को किसी भी सन्देह से ऊपर बताते हुए स्पष्ट किया था कि दोनों देश एक-दूसरे के विकास के लिए अपनी-अपनी भू-सीमाओं के प्रयोग को भी सामान्य तरीके से ले रहे हैं।
यहां तक कि भारत में अवैध बांग्लादेशियों की चीख- चिल्लाहट और असम में ‘राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर’ जैसे संवेदनशील मामले को भी उन्होंने दोनों देशों के बीच के सम्बन्धों में किसी प्रकार की कड़वाहट घोलने के दायरे में नहीं देखा था और उम्मीद व्यक्त की थी कि सब कुछ ठीक-ठाक होगा। भारत की तरफ से भी बांग्लादेश के सर्वांगीण विकास के लिए जिस प्रकार के विभिन्न समझौतों के तहत विभिन्न क्षेत्रों में संयुक्त परियोजनाएं चल रही हैं और सैनिक क्षेत्र तक में जिस तरह का ‘आत्मीय सहयोग’ है, उसे देखते हुए मुर्शीदाबाद जैसी घटना से ‘चौंकने’ की जरूरत है।
सबसे ज्यादा चिन्ता बांग्लादेश के भीतर की राजनीतिक गिरोहबन्दी से होनी चाहिए क्योंकि इस देश की कट्टरपंथी और पाकिस्तान परस्त ‘जमाते इस्लामी’ के भेदिये भारत व बांग्लादेश के आपसी मधुर सम्बन्धों को फूटी आंख भी नहीं देख सकते। हकीकत तो यह है कि बांग्लादेश में लम्बे अर्से तक सैनिक शासन और जमात परस्त राजनीतिक दलों की सरकारों के चलते वहां के शासन में जमात के समर्थकों की घुसपैठ करीने से कराई गई थी जिसके चलते बांग्लादेश में यदा-कदा कट्टरपंथी यहां के शासनतन्त्र में उदारवादी फैसलों का विरोध करते रहते हैं और आम जनता को भी उकसाते हैं।
हालांकि बांग्लादेश के सर्वोच्च न्यायालय ने जमाते इस्लामी को एक राजनीतिक दल के रूप में चुनावों में भाग लेने के अयोग्य करार दे दिया था और उसके बाद यहां के चुनाव आयोग ने उसका पंजीकरण भी रदद् कर दिया था परन्तु इसकी कट्टरपंथी सोच के साथ बांग्लादेश की विपक्षी पार्टी ‘बांग्लादेश नेशनल पार्टी’ का भीतरखाने समझौता रहा है और इस पार्टी की नेता पूर्व प्रधानमन्त्री बेगम खालिदा जिया के शेख हसीना से पहले के पांच साल के कार्यकाल में इसके हिमायतियों की सत्ता में खासी घुसपैठ भी रही है।
ये तत्व मौजूदा सत्तारूढ़ अवामी पार्टी के शासनकाल में गाहे-बगाहे ऐसी हरकतें करते रहते हैं जिससे भारत के साथ बांग्लादेश के सम्बन्ध खराब हों किन्तु इस तरफ देखना भारत का काम नहीं है बल्कि वहां की प्रधानमन्त्री शेख हसीना का काम है। यह उन्हें ही देखना पड़ेगा कि क्यों 15 वर्ष बाद दोनों देशों के बीच ऐसी घटना हुई है जिसमें भारतीय सुरक्षा सैनिकों को भारी सब्र से काम लेते हुए अपने एक साथी की लाश ढोनी पड़ी है। ऐसा वाकया 2005 में हुआ था जिसमें सीमा सुरक्षा बल के सैनिक की जान गई थी और वह भी बिना किसी कारण के।
दोनों देशों की सीमाओं को देखते हुए एक-दूसरे के जल क्षेत्र में मछुआरों का प्रवेश करना बहुत सामान्य सी घटना माना जाता है। अक्सर ऐसे मामलों को दोनों देश के सीमा सुरक्षा बल के जवान बिना किसी हील-हुज्जत के निपटा लेते हैं, परन्तु मुर्शीदाबाद में पद्मा नदी के जल में बांग्लादेशी सैनिकों के कब्जे में एक मछुआरे को वापस लेने पर इतनी ज्यादा पेचीदगी पैदा कर दी गई कि बांग्ला सुरक्षा गार्डों ने भारतीय सुरक्षा बल के सैनिकों से कहा कि वे ‘ऊपर’ के आदेशों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जबकि दो मछुआरे पहले ही उनकी सीमा से भारतीय सीमा में आ गये थे और उन्होंने ही अपने एक साथी के बांग्ला सुरक्षा गार्ड के कब्जे में होने की खबर दी थी।
इस पर अपनी नौका में ‘नारंगी रंग’ का ध्वज लगा कर सुरक्षा बल सैनिकों ने बांग्लादेश की जल सीमा में प्रवेश करके ‘फ्लैग मीटिंग’ का संकेत दिया। इसका मतलब होता है कि विवाद को हल करने के लिए दोनों देशों के सैनिक बैठक करेंगे। बांग्लादेश बार्डर्स द्वारा इस बैठक को बहुत लम्बा खींचने पर जब भारतीय दल अपनी नौका से वापस आने लगा तो उस पर गोली चलाई गई जिसमें एक कर्मी मारा गया और एक जख्मी हो गया। हैरत में पड़ने की जरूरत नहीं है कि 2005 में भी इसी तरह फ्लैग मीटिंग के दौरान ही भारतीय सीमा सुरक्षा बल के एक सहायक कमांडेंट को बांग्लादेशी गार्ड्स ने अगवा करके गोली मार दी थी। उस समय इस देश में अर्ध फौजी शासन था जिसमें इस्लामी कट्टरपंथियों का दबदबा माना जाता था।
भारत की पूर्वी सीमा पर 1971 में बांग्लादेश बनने के बाद भाईचारे और प्रेम के बोल गूंजने लगे थे, दोनों देशों के लोग भूपेन हजारिका के संगीत से लेकर काजी नजरुल इस्लाम व गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर की स्वर लहरियों में गोते लगाने लगे थे। इस माहौल को कुछ वर्षों के लिए कट्टरपंथियों ने सेना की मदद से जरूर खराब किया और सीमा पर तनाव बनाने की कोशिश की परन्तु दोनों देशों को अदृश्य तार से जोड़ने वाली बांग्ला संस्कृति ने कट्टरपंथियों की मजहबी साजिशों को कभी सफल नहीं होने दिया। अतः मुर्शीदाबाद की घटना को बहुत गंभीरता से लेते हुए इसकी तह में जाने की जरूरत है जिससे भारत की पूर्वी सीमा पूरी तरह निर्भय और तनाव मुक्त रह सके।