अमृत महोत्सव के दौरान देश की अब तक की यात्रा का विश्लेषण किया जाए तो महाग्रंथ की रचना की जा सकती है। आजादी के 75 वर्षों में भारतीयों ने अनेक सुखद और दुखद पलों का एहसास किया है, लेकिन अंततः हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि राष्ट्र सर्वोपरि है। हम सबसे पहले भारतीय हैं और हमारे धर्म सब गौण हैं। मैं आज जिस यज्ञ की बात कर रहा हूं उसका नाम है राष्ट्र चेतना यज्ञ। पंजाब केसरी समाचारपत्र ने हमेशा पत्रकारिता के उन मानदंडों काे स्थापित करने का प्रयास किया है, जिनका प्रारम्भ तो मेरे परदादा अमर शहीद लाला जगत नारायण जी ने किया और कालांतर में उनकी भावनाओं को श्रद्धासुमन अर्पित करने का काम मेरे पूज्य दादा अमर शहीद रमेश चन्द्र जी ने किया। उसके बाद मेरे पूज्य पिता स्वर्गीय अश्विनी कुमार ने पत्रकारिता के उच्च मानदंडों को जीवन भर बनाए रखा। शायद राष्ट्र चेतना यज्ञ की यह यज्ञ अग्नि जो महानायकों के रक्त की समिधा चाहती थी, जिसे मेरे पूर्वजों ने सहर्ष देना स्वीकार किया। राष्ट्र की एकता एवं अखंडता के लिए अनेक लोगों ने बलिदान दिया। खून के छींटे इतिहास के पन्नो तक छिटके पड़े हैं। जिन्हें राष्ट्र के िलए मरना नहीं आता वह जीने की कला से सदा वंचित रहते हैं। आज मुझे लगता है कि अभी भी पूरी ऊर्जा से दिनकर की यह पंक्तियां हमें पुकार रही हैं।
बार-बार यह पंक्तियां हमें आह्वान कर रही हैं-
‘‘जो अड़े, शेर उस नर से डर जाता है,
है विदित, व्याघ्र को व्याघ्र नहीं खाता है।
सच पूछे तो यह अब भी यही वचन है,
सभ्यता क्षीण, बलवान हिस्त्र कानन है।
एक ही पंथ अब भी जग में जीने का,
अभ्यास करो, छागियों रक्त पीने का।
जो पुण्य अहिंसा बक रहे, उन्हें बकने दो,
जैसे सदियां थक चुकीं, उन्हें थखने दो।
पर देख चुके हम तो सब पुण्य कमा कर,
सौभाग्य दान, गौरव, अभिमान गंवा कर।
वे पीयें शीत तुम आत्मधाम पीयो रे,
वे जपें राम, तुम बनके राम जीयो रहे।
‘‘यह नहीं शांति की गुफा युद्ध है, रण है,
तप नहीं, आज केवल तलवार शरण है।
ललकार रहा भारत को स्वयं मरण है,
हम जीतेंगे ये समर, हमारा प्रण है।’’
मैं कुछ नहीं मांगता आप से।
मेरी कोई सांसारिक अपेक्षा नहीं।
मुझे सिर्फ एक ‘संकल्प’ चाहिए।
मात्र एक संकल्प।
आप किसी भी पेशे में हों, यह संकल्प आप ले सकते हैं, और शपथपूर्वक ले सकते हैं।
संकल्प है-
‘‘मैं शपथपूर्वक पूरे मन, वचन और कर्म से यह संकल्प करता हूं कि यथासम्भव और यथाशक्ति, मैं इस महान भारत राष्ट्र के प्रति समर्पित रहूंगा, और कभी भी किसी ऐसे कार्य में प्रवृत नहीं होऊंगा, जिससे इस राष्ट्र के मूल्यों को आंच आए।
भगवान मेरी सहायता करें।’’
लोग मुझसे बार-बार पूछते हैं, हजारों पत्र मार्गदर्शन को आते हैं, पर मैं आपका मार्गदर्शन करने वाला कौन।
मैं स्वयं एक साधारण इंसान, असाधारण प्रवृत्तियों में क्यों लिप्त होऊं।
क्या आप संकल्प लेंगे?
जिसने भी यह संकल्प ले लिया, वह इस संकल्प को हस्ताक्षर करके अपने पूजा स्थान में जगह दे दे। जब भी आराधना में बैठें, इसे भी नमन करें।
स्मरण रखें-
आध्यात्मिक क्रांति से बड़ी कोई क्रांति नहीं। मैं यहां इस बात को भी स्पष्ट कर देना चाहूंगा िक आध्यात्म मनुष्य का स्वभाव है। ऐसा भाव जो मनुष्य को इंसान बनाता है। आज इस राष्ट्र को इंसानों की जरूरत है, परन्तु हमारे सामने समस्या एक ही है-
इस दौर में इंसान का चेहरा नहीं मिलता
इंसान हैवान हो चुका है
चारों तरफ लूट, डकैती, हत्या और भ्रष्टाचार है।
युवतियों और महिलाओं से बलात्कार की घटनाओं से समाचारपत्र भरे रहते हैं तो दूसरी तरफ देश के सामने सीमापार प्रायोिजत आतंकवाद और देश के भीतर बैठे रक्त पिपासु, भारत को इस्लामी राज्य बनाने के षड्यंत्र और देश के भीतर बैठी काली भेड़ों की चुनौतियां हमारे सामने हैं।
देश में काफी हद तक नक्सलवाद समाप्त हो चुका है, लेकिन कभी-कभी अपने ही देश के लोग बारूदी सुरंगों से हमारे जवानों का खून बहाने से नहीं िहचकते। आज हमें ऐसे राष्ट्र की जरूरत है जिसमें इंसान इंसान के खून का प्यासा न हो। मानवता ही हर इंसान का धर्म हो। हर इंसान भारत के प्रति पूरी तरह से समर्पित हो। यह तभी सम्भव होगा जब हर भारतीय राष्ट्र चेतना यज्ञ से जुड़ेगा और अपने हर कार्य को राष्ट्रवाद से जोड़ेगा। देशप्रेम का ढिंढोरा पीटने से कुछ नहीं होगा। देश के प्रति समर्पण भाव पैदा करना होगा। हम सबका यह दायित्व है कि भावी पीढ़ी को केवल कम्प्यूटर की ही शिक्षा न दें बल्कि उन्हें राष्ट्र के इतिहास से परिचित करा कर देश के प्रति समर्पित होने का ज्ञान भी दें। यही राष्ट्र चेतना यज्ञ है और पंजाब केसरी इस यज्ञ को जारी रखेगा।
(समाप्त)
आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com