अमरनाथ यात्रा और धार्मिक आस्था - Punjab Kesari
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अमरनाथ यात्रा और धार्मिक आस्था

कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष भी वार्षिक अमरनाथ तीर्थयात्रा नहीं होगी। हालांकि भक्तों के लिए ‘आरती’ की

कोरोना महामारी के चलते इस वर्ष भी वार्षिक अमरनाथ तीर्थयात्रा नहीं होगी। हालांकि भक्तों के लिए ‘आरती’ की सुविधा आनलाइन होगी। जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने श्राइन बोर्ड के साथ विचार-विमर्श करने के बाद अमरनाथ यात्रा को रद्द करने का ऐलान किया। यद्यपि इस फैसले के चलते अमरनाथ यात्रा की तैयारी करने वाले श्रद्धालुओं को मायूस होना पड़ेगा। कुछ समय पूर्व जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने अमरनाथ यात्रा के लिए कुछ नियमों और शर्तों को लागू करते हुए एक विशेष आयु वर्ग के लिए रजिस्ट्रेशन शुरू किया था लेकिन अब वो भी बेमतलब हो गया है।
पिछले वर्ष सावन के पहले दिन इतिहास में पहली बार अमरनाथ गुफा में बाबा बर्फानी की आरती का दूरदर्शन पर लाइन प्रसारण किया गया था। जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद आतंकी खतरे के अलर्ट को देखते हुए अमरनाथ यात्रा के कार्क्रम में कटौती कर दी गई थी। सरकार ने तब आदेश जारी कर दिया था कि अमरनाथ यात्री अपने-अपने घरों को वापिस लौट जाएं। इससे पहले 2018 में अमरनाथ यात्रा 60 दिनों की रही थी। अमरनाथ गुफा हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। यह यात्रा आतंकवादियों के निशाने पर भी रही। वर्ष 2017 में अनंतनाग में गुजरात के श्रद्धालुओं की बस पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 7 यात्री मारे गए थे। आतंकियों की धमकियों के बावजूद हर वर्ष देश के कोने-कोने से लाखों की संख्या में श्रद्धालु आते हैं लेकिन कोरोना महामारी के चलते इस बार यात्रा ​निरस्त करना विवेकपूर्ण निर्णय है। इस समय लोगों की जान बचाना केन्द्र और राज्य सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता है। कोरोना की दूसरी लहर का विकराल रूप यह देश झेल चुका है और अब किसी भी हालत में इस कोरोना की तीसरी लहर को आमंत्रित नहीं कर सकते। स्वास्थ्य विशेषज्ञ कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी कर चुके हैं। जिस तरह से कोरोना के डेल्टा प्लस वेरिएंट के मरीज मिल रहे हैं, ऐसे में प्रशासन कोई  भी जो​खिम उठाने को तैयार नहीं है। भारत एक धर्मपरायण देश है और भारतीयों की धर्म में अटूट आस्था है। हर कोई मोक्ष प्राप्त करने, मन वांछित फल पाने, अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए अपने देवों की आराधना करते हैं। प​वित्र नदियों के किनारे धार्मिक आयोजन किए जाते हैं। हम सबने कोरोना विषाणु का कहर झेला है और दूसरी लहर ने पहली लहर के मुकाबले कहीं ज्यादा गहरा रंग दिया है। इस त्रासदी की यादें जल्द मस्तिक से जाने वाली नहीं हैं। हाल ही में उत्तराखंड के हरिद्वार में कुम्भ के दौरान लाखों लोगों के जुटने के मौके पर तमाम सवाल उठाए गए थे कि इससे संक्रमण का खतरा बढ़ सकता है लेकिन धार्मिक आस्थाओं को देखते हुए ऐसे सवालों पर ध्यान देना राज्य सरकार ने जरूरी नहीं समझा। बाद में जब कुम्भ में आए लाेगों की कोरोना जांच प्रक्रिया शुरू हुई तो कायदे से संक्रमितों की पहचान और उनकी सही रिपोर्ट को ध्यान में रखकर बचाव के हर इंतजाम किए जाने थे लेकिन जिस तरह से कोरोना जांच में ही घोटाला सामने आया है उसने पूरे देश में चिंता पैदा कर दी है। मेले में पहुंचे लोगों की आरटी-पीसीआर और एंटीजन जांच की व्यवस्था की गई थी। इसके लिए सरकार ने एक निजी कम्पनी के साथ करार किया था, जिसने कई लाख लोगों की जांच की लेकिन इसी क्रम में भारी संख्या में लोगों की कोविड निगेटिव रिपोर्ट जारी कर दी गई। जिनमें से अधिकांश की जांच ही नहीं की गई। एक ही किट से कई लोगों की जांच की गई। जांच में मानकों का कोई पालन नहीं किया गया। इस मामले का खुलासा होने के बाद लोग सोच रहे थे कि कितनी संख्या में लोग कुम्भ के दौरान संक्रमित हुए होंगे और उसका असर कितना पड़ा होगा। हैरानी तो इस बात पर है कि संक्रमण की चेन तोड़ने के लिए राज्य सरकारों ने पूर्ववर्ती जैसे कदम उठाए लेकिन इसी बीच धार्मिक आयोजन के नाम पर लोगों के जमावड़े काे नियंत्रित नहीं किया जा सका। पिछले वर्ष ज्यादातर ईसाइयों ने ईस्टर बिना चर्च गए ही मनाया। मुस्लिमों के लिए पवित्र स्थल मक्का-मदीना में भी हज की अनुमति बहुत ही कम लोगों को दी गई। भारत में लाॅकडाउन के दौरान मंदिरों के कपाट बंद रहे। ईश्वर की पूजा और इबादत के नाम पर लोगों के एकत्रित​ होने को लोग धार्मिक स्वतंत्रता से जोड़कर देखते हैं लेकिन धार्मिक स्वतंत्रता की भी सीमाएं होती हैं। किसी की धार्मिक स्वतंत्रता की आजादी वहां तक होती है  ​जब किसी दूसरे की आजादी या सार्वजनिक स्वास्थ्य को नुक्सान नहीं पहुंचाती हो। बिना सख्त नियमों और पाबंदियों के लोगों के व्यवहार को बदलना मुश्किल है। लाॅकडाउन खुलते ही लोगों ने कोरोना प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ानी शुरू कर दी हैं। ऐसी स्थिति में लोगों को धार्मिक आस्थाओं और भावनाओं को नियंत्रण में रखना होगा। ईश्वर की आराधना घर के भीतर रह कर भी की जा सकती है। लोगों को धार्मिक यात्राओं से परहेज करना चाहिए। जान बचेगी तो जहान बचेगा। इसलिए बाबा अमरनाथ के भक्तों को घर बैठकर पवित्र हिमलिंग के दर्शन करने चाहिए और प्रार्थना करनी चाहिए कि जल्द महामारी का अंत हो, ताकि जीवन सामान्य हो सके।

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