हमेशा याद रखे जाएंगे अटल जी! - Punjab Kesari
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हमेशा याद रखे जाएंगे अटल जी!

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क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछुड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिकायत,
यद्यपि छला गया पग-पग में,
एक दृष्टि बीती पर डाले,
यादों की पोटली टटोले,
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनंत कहानी,
पर तन की अपनी सीमाएं,
यद्यपि साै शरदों की वाणी,
इतना काफी है अन्तिम दस्तक पर,
खुद दरवाजा खोले
जीवन मरण अविरल फेरा,
जीवन बंजारों का डेरा
आज यहां, कल कहां कूच है,
कौन जानता किधर सवेरा
अंधियारा आकाश असीमित,
प्राणों के पांवों को तोले,
अपने ही मन से कुछ बोले।

भारतीय राजनीति में कुशल राजनीतिज्ञ, प्रशासक, प्रखर वक्ता, भाषाविद्, कवि, पत्रकार और लेखक अटल बिहारी वाजपेयी का महाप्रयाण हो गया। उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व भारतीय राजनीतिक इतिहास में​ शिखर पुरुष के रूप में दर्ज है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की विचारधारा में पले-बढ़े अटल जी राजनीति में उदारवादी और समता एवं समानता के समर्थक माने जाते रहे। उन्होंने राजनीति को दलगत और स्वार्थ की वैचारिकता से अलग हटकर अपनाया और उसको जिया भी। जिन्दगी में आने वाली हर विषम परिस्थितियों आैर चुनौतियों को स्वीकार किया और नीतिगत सिद्धांतों और वैचारिकता की कभी हत्या भी नहीं होने दी। अटल 13 दिन, 13 महीने और 5 वर्ष यानी तीन बार प्रधानमंत्री रहे। राजनीतिक जीवन में उतार-चढ़ाव में उन्होंने आलोचनाओं के बावजूद अपने को संयमित रखा। राजनीति के धुर विरोधी भी उनकी विचारधारा आैर कार्यशैली के कायल रहे। उनकी आवाज के आगे कोई नहीं टिक पाता था। भारतीय राजनीति का अजातशत्रु कहलाने का गौरव अगर किसी को हासिल हुआ तो वह अटल बिहारी वाजपेेयी ही थे।

पंडित जवाहर लाल नेहरू युग से राजनीति की शुरूआत करने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने विपक्षी नेता के तौर पर सोनिया गांधी को भी देखा। पांच दशक के राजनीतिक जीवन में न जाने कितने उतार-चढ़ाव देखने वाले अटल जी सबके प्रिय बने रहने की कला के महारथी थे। उनकी भाषण शैली ऐसी दमदार थी कि वो विरोधी लोगों के मुंह से बात निकलवा सकने में माहिर थे लेकिन बेहतरीन कार्यों के लिए सत्तापक्ष की सराहना करने से भी परहेज नहीं करते थे। 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधी को दुर्गा का अवतार कहा था। इस बात को लेकर विवाद रहा कि उन्होंने इन्दिरा जी को दुर्गा कहा या नहीं लेकिन लोगों को विश्वास है कि उन्होंने ऐसा कहा होगा क्योंकि उनका व्यक्तित्व ही ऐसा रहा। अटल जी 1957-1977 तक लगातार जनसंघ संसदीय दल के नेता रहे। उन्होंने अपने भाषण से पंडित जवाहर लाल नेहरू को इतना प्रभावित किया कि पंडित जी ने उन्हें भावी प्रधानमंत्री तक बता दिया था। वह दक्षिणपंथी राजनीति की धुरी थे। जिस पार्टी को कभी अछूत माना जाता था लेकिन यह उनके व्यक्तित्व का ही परिणाम था कि उन्होंने दक्षिणपंथी पार्टी को अन्य दलों के लिए स्वीकार्य बनाया और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का नेतृत्व किया।

1980 में जनता पार्टी से असंतुष्ट होकर भाजपा की स्थापना में मदद की और पार्टी को स्वीकार्य बनाया। सत्ता में आए तो पोखरण में आणविक परीक्षण कर दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के साथ दूसरे मुल्कों को भी भारत की ताकत का अहसास कराया। 1977 में मोरारजी देसाई की सरकार में अटल जी विदेश मंत्री थे। इस दौरान उन्होंने संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में हिन्दी में भाषण दिया था आैर दुनियाभर में हिन्दी भाषा को पहचान दिलाई। हिन्दी में भाषण देने वाले अटल जी भारत के पहले विदेश मंत्री थे। बाबरी मस्जिद को ध्वस्त किए जाने के बाद अटल जी की अग्निपरीक्षा थी कि धर्मनिरपेक्षता के पैमाने पर वह कहां खड़े हैं। वह लोकसभा में विपक्ष के नेता थे। उन्होंने अन्य भाजपा नेताओं के रुख के विपरीत स्पष्ट शब्दों में इसकी निन्दा की थी। उनकी निजी निष्ठा पर कभी गम्भीर सवाल नहीं उठाए गए।
मेरे और अटल जी के सम्बन्ध काफी मधुर रहे। मुझे उनके साथ विदेश यात्राओं का भी अवसर मिला। वह न केवल राष्ट्रीय मुद्दों पर मुझसे चर्चा करते थे और हमारे पारिवारिक सम्बन्धों पर भी कभी-कभी खुलकर चर्चा करते थे। मुझे सितम्बर 2003 के अन्तिम सप्ताह की याद आती है जब संयुक्त राष्ट्र जनरल असैम्बली को पाक के तत्कालीन सर्वेसर्वा परवेज मुशर्रफ आैर अटल जी ने सम्बोधित किया था। मुशर्रफ पहले बोले और अटल जी बाद में। हम सभी पत्रकार बन्धु टकटकी लगाए अटल जी की तरफ देख रहे थे। जब अटल जी बोले तो उन्होंने मुशर्रफ के अन्त​िर्वरोधों से भरे ​भाषण को अपने शब्दों से काट डाला। मुझे उनके शब्द आज भी याद हैं ः

‘सीजफायर’ शब्द का इस्तेमाल तब ही होता है जब दो देश युद्ध लड़ रहे हों। भारत और पाक में युद्ध नहीं हो रहा है। हमारी सेनाएं इसी भाग में खड़ी हैं, जो अपना भूभाग है, पाकिस्तान का नहीं। इसका मतलब क्या पाकिस्तान हमसे युद्ध कर रहा है? इसके जवाब में इतना ही कहना चाहिए कि निःसंदेह पाक हमसे युद्ध कर रहा है और अघोषित युद्ध कर रहा है।जब अटल जी दोस्ती का पैगाम लेकर बस से पाकिस्तान गए थे तब मुझे उनके साथ जाने का मौका मिला था। जब पा​किस्तान ने हमारी पीठ में छुरा घोंपकर लाहौर घोषणापत्र की धज्जियां उड़ाते हुए कारगिल में घुसपैठ की तो अटल जी काफी भावुक हो गए थे। उनका मिशन पाक से सम्बन्धों का सुधारना था लेकिन आगरा शिखर वार्ता विफल हो गई थी।

कई बार मैंने अटल जी के नाम खुले पत्र के रूप में सम्पादकीय लिखे तो उनका उत्तर भी जरूर आया। यह सत्य है कि अटल जी की पार्टी के भीतर कुछ लोग ऐसे उभर आए जो छोटेपन पर उतर आए थे और स्वयं को कौटिल्य का अवतार समझने लगे थे। मुझे ऐसे लोग भी याद आते हैं जिन्होंने अटल जी काे मुखौटा करार दिया था। सियासत को काजल की कोठरी कहा जाता है लेकिन अटल जी ने काजल की कोठरी में रहकर अपनी छवि पर कोई दाग नहीं लगने दिया। हर व्यक्तित्व की राजनीति में विरोधाभास मिल जाते हैं। अटल जी राजनीतिक जीवन में भी विरोधाभास रहे लेकिन उनका व्यवहार ऐसा था कि लोग आपत्ति नहीं कर पाते थे। वे तो प्रयोगधर्मिता की हद तक जाते थे आैर बेहद आसानी से उसे उचित भी ठहरा दिया करते थे। आज भी लोग कहते हैं कि हमें एक और अटल चाहिए लेकिन अब अटल जी लौटकर नहीं आएंगे।

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