मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक - Punjab Kesari
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मणिपुर पर सर्वदलीय बैठक

पूर्वोत्तर के छोटे परन्तु बहुत ही संवेदनशील भौगोलिक स्थिति वाले राज्य मणिपुर के बारे में केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री

पूर्वोत्तर के छोटे परन्तु बहुत ही संवेदनशील भौगोलिक स्थिति वाले राज्य मणिपुर के बारे में केन्द्रीय गृहमन्त्री श्री अमित शाह ने आगामी 24 जून को सर्वदलीय बैठक बुलाई है जिसमें वह सभी राजनैतिक दलों के समक्ष  पिछले लगभग दो महीने से इस राज्य में जारी जातीय हिंसा से उपजी समस्या के बारे में विचार-विमर्श करेंगे और सभी दलों से इसके हल करने के सुझाव भी मागेंगे। श्री शाह ने लोकतन्त्र के तकाजे को समझते हुए इस बैठक को बुलाया है जिससे राष्ट्रीय सहमति बना कर मणिपुर में हिंसा का दौर समाप्त करके शान्ति व चैन का वातावरण स्थापित किया जा सके। पिछले पांच वर्ष से पूर्ण शान्ति के माहौल में रह रहे मणिपुर वासियों के जीवन में जिस प्रकार अचानक हिंसा ने पैठ बनाई है उससे सभी देशवासी भी अचम्भे में हैं और सोच नहीं पा रहे हैं कि बिना किसी ‘कसैली’ सामाजिक परिस्थितियों के विगत 3 मई को हिंसक वारदातों में उबाल कैसे आ गया और हालत यहां तक पहुंच गई कि राज्य की भाजपा सरकार के हाथ से स्थिति नियन्त्रण से बाहर होने लगी जबकि लगभग एक वर्ष पहले ही राज्य के लोगों ने इसे सत्ता सौंपी थी।
 दरअसल राज्य में दो जनजातियों मैतेई व कुकी के बीच जिस प्रकार की कशीदगी और बे-यकीनी पैदा हुई उससे पूरा नागरिक प्रशासन ठप्प पड़ गया और समाज के लोगों के बीच आपसी युद्ध जैसा होने लगा। लोग अपना गुस्सा चुने हुए प्रतिनिधियों पर उतारने लगे और उनके आवास तक फूंके जाने लगे। कुकी और मैतेई की यह जंग मणिपुर के एक राज्य होने की पहचान को ही चुनौती देती सी लगने लगी। पिछले पचास से अधिक दिनों के दौरान इस जातीय हिंसा में 110 से अधिक लोगों की मृत्यु हो चुकी है और करोड़ों रुपए की सम्पत्ति जल कर राख होने के अलावा पचास हजार से अधिक लोग बेघर हो चुके हैं। मणिपुर की स्थिति बहुत संजीदा है क्योंकि इसकी पहाड़ी सीमा सीमावर्ती देश म्यांमार से लगती है। राज्य के उच्च न्यायालय द्वारा यह सुझाव देने भर से राज्य में कुकी व मैतेई समाज के लोग एक-दूसरे की जान के प्यासे बन गये कि मैतेई समाज को भी जनजातीय दर्जा देने पर राज्य सरकार विचार करे और इस बाबत केन्द्र से अनुशांसा करे। मैं पहले भी मणिपुर की भौगोलिक व सामाजिक संरचना के बारे में लिख चुका हूं जिसे पुनः दोहराना नहीं चाहता। कुकी लोग राज्य के पहाड़ी क्षेत्र में रहते हैं और पड़ोसी देश म्यांमार में भी इस जनजाति के लोग रहते हैं।  म्यांमार से भारतीय कुकी क्षेत्र में ये लोग अवैध घुसपैठ करके यहां के जंगलों में अपना कब्जा करते रहे हैं और अफीम की खेती में भी संलग्न रहे हैं। 
राज्य की भाजपा की एन. बीरेन सिंह सरकार ने पहाड़ी क्षेत्रों में अवैध घुसपैठ के मुद्दे पर भी कड़ा रुख अपनाते हुए सर्वेक्षण का काम किया था और अफीम की खेती को रोकने का काम भी किया था। यह काम बहुत टेढ़ा था क्योंकि 1971 के बाद जो भी व्यक्ति इस राज्य में कुकी बनकर आया है वह अवैध व घुसपैठिया है। हालांकि पूर्व में मणिपुर मे विशेष सेना अधिनियम (आफप्सा) के विरुद्ध आन्दोलन होते रहते हैं जो कि राज्य में अलगाववादी गतिविधियों को रोकने के लिए लगाया जाता रहा है परन्तु पिछले पांच साल से राज्य में आतंकवादी या अलगाववादी गतिविधियां भी पूरी तरह से बन्द थीं जिससे यह समझा जा रहा था कि राज्य के लोग लोकतान्त्रिक वातावरण में अपने नागरिक अधिकारों के बारे में सजग होकर अपने व क्षेत्रीय विकास पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। परन्तु मैतेई समाज को जनजाति का दर्जा दिये जाने के मुद्दे पर जिस कदर हिंसा भड़की उसने पूरे लोकतान्त्रिक ढांचे को ही चरमरा रख दिया और सुरक्षा बलों से लेकर राज्य पुलिस तक के सामने परेशानी खड़ी कर दी। राज्य में इस समय 40 हजार सुरक्षा बल मौजूद हैं और इसे संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत केन्द्रीय निगरानी में भी ले लिया गया है। इसके बावजूद सामाजिक जातीय विद्वेष नियन्त्रित नहीं हो रहा है। स्वयं गृहमन्त्री विगत 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद इस महीने के अन्त में चार दिन तक मणिपुर मे रहे थे और उन्होंने  वहां नागरिकों की शान्ति समितियां तक स्थापित की थीं परन्तु नतीजा सकारात्मक नहीं निकला। 
मणिपुर समस्या का हल सैनिक नहीं हो सकता क्योंकि इससे कुकी व मैतेई समाज के बीच सौहार्द पैदा होने की जगह दूरियां बढ़ने का खतरा ज्यादा रहेगा और किसी एक पक्ष को स्वयं पीड़ित पक्ष कहने का विकल्प मिल सकता है। अतः बहुत जरूरी है कि इसका हल लोकतान्त्रिक ढांचे में ही खोजा जाये। श्री शाह ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर वैसे साफ कर दिया है कि वह समस्या का हल प्रजातान्त्रिक तरीकों से ही खोजना चाहते हैं और सबकी राय से करना चाहते हैं जिससे मणिपुर अपनी पहचान को मजबूती के साथ बनाये रख सके और मैतेई व कुकी अथवा मैदानी व पहाड़ी पहचान का मुद्दा मनमुटाव का कारण न बन सके। मणिपुर उच्च न्यायालय ने भी अपने पुराने फैसले में परिमार्जन करने की प्रक्रिया शुरू की है। सभी राजनैतिक दलों को भी पूरे निष्ठा के साथ दल-गत हितों से ऊपर उठ कर समस्या के समाधान में हाथ बंटाना चाहिए। 

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